30 सितंबर (History Of 30th September) वह दिन है जिसे इतिहास ने अलग-अलग रूपों में याद किया है। इस तिथि पर जन्म, मृत्यु, राष्ट्र-निर्माण, युद्ध और सामाजिक आंदोलनों जैसी घटनाएँ घटी हैं। भारत और विश्व दोनों स्तरों पर इस दिन की घटनाएँ हमारी संस्कृति, राजनीति, विज्ञान और कला पर गहरी छाप छोड़ती हैं। कभी यह दिन स्वतंत्रता, पहचान, संघर्ष और विजय का प्रतीक रहा है। 30 सितंबर की घटनाएँ यह दिखाती हैं कि कैसे एक दिन में विश्व बदल सकता है और किस तरह मानव समाज समय के साथ विकसित होता है। आइए जानते हैं 30 सितंबर (History Of 30th September) के दिन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं, उपलब्धियों और व्यक्तित्वों के बारे में।
30 September 1965 को इंडोनेशिया में एक सैनिक संवैधानिक (Military Coup) प्रयास हुआ, जिसे (30 September Movement) कहा गया। इस आंदोलन में छह सेना जनरलों का अपहरण और हत्याएँ हुईं। आंदोलनकारियों ने दावा किया कि वे राष्ट्रपति (Sukarno) पर ग्रहण होने वाले तख्तापलट को रोकना चाहते थे। लेकिन इसके परिणामस्वरूप व्यापक राजनीतिक उथल-पुथल हुई और देश में बड़े पैमाने पर उन्मूलन (anti-communist purge) हुई, जिसमें अनुमानतः 5००,००० से अधिक लोगों की जान गई। यह घटना इंडोनेशिया की राजनीति और सत्ता संघर्ष में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का बिंदु बनी।
30 September 1399 को इंग्लैंड में (Richard II) ने राजगद्दी त्याग दी और (Henry IV) सिंहासन पर आया। यह घटना इंग्लैंड के मध्यकालीन इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ थी। राजाश्रित उथल-पुथल, राजनीतिक संघर्ष और दावों की राजनीति ने उस समय की इंग्लिश राजनीति का स्वरूप बदला। इस घटना ने इंग्लिश राजशाही और शासन संरचना को नए तरीके से प्रभावित किया।
30 September 1687 को मुगल बादशाह (Aurangzeb) ने हैदराबाद क्षेत्र के (Golconda Fort) पर अधिकार कर लिया। यह विजय दक्षिण भारत में मुगल साम्राज्य की विस्तार योजना का हिस्सा थी। गोदकोंडा क़िला उस समय बहुत प्रसिद्ध धन और खनिज संपदा का केंद्र था। इस विजय ने दक्कन की राजनीति को प्रभावित किया और प्रादेशिक सत्ता संतुलन में बड़ा परिवर्तन लाया।
30 September 1744 को (Battle of Madonna dell’Olmo) की लड़ाई शुरू हुई, जो (War of the Austrian Succession) के दौरान हुई। इसमें फ्रांस और स्पेन ने सर्दीनिया (Kingdom of Sardinia) को पराजित किया। यह युद्ध उस समय की यूरोपीय शक्ति संतुलन की लड़ाई थी, जिसमें यूरोपीय राजशाहियों ने क्षेत्रीय दावों और राजनीतिक गठबंधनों के आधार पर युद्ध किए। यह घटना यह दिखाती है कि कैसे शक्ति और साम्राज्य विस्तार की घटनाएँ १८वीं शताब्दी में यूरोप का भाग थीं।
30 September 1938 को जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने (Munich Agreement) पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत जर्मनी को (Sudetenland) नामक चेकोस्लोवाकिया का इलाका सौंपा गया। ब्रिटिश प्रधानमंत्री (Neville Chamberlain) ने इसे “peace for our time” कहकर सफलता बताया। लेकिन यह समझौता विश्व युद्ध की अगली घटनाओं की दिशा में एक पतली डोर साबित हुआ। यह घटना यह दिखाती है कि कैसे यूरोपीय शक्तियों ने जर्मन विस्तार को कूटनीति द्वारा रोकने की कोशिश की, पर असल में यह युद्ध के लिए जमीन तैयार करने जैसा था।
30 September 1949) को (Berlin Airlift) का ऑपरेशन औपचारिक रूप से समाप्त हुआ। (Berlin Blockade) के दौरान सोवियत संघ ने पश्चिमी बर्लिन को ज़मीनी मार्ग से काट दिया था। इसके जवाब में अमेरिका और उसके सहयोगियों ने हवाई मार्ग से खाद्य एवं अन्य आवश्यक चीज़ें भेजी। करीब 15 महीनों में २.३ मिलियन टन से अधिक सामग्री पहुंचाई गई। यह सफल अभियान शीत युद्ध (Cold War) की प्रारंभिक चुनौतियों में से एक था और पश्चिमी समर्थित लोकतंत्र के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।
30 September 1954 को (USS Nautilus, SSN-571), दुनिया की पहली (nuclear-powered submarine) पनडुब्बी को कार्यान्वित किया गया। यह घटना सैन्य और समुद्री तकनीक में क्रांतिकारी कदम थी। परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ अधिक समय तक समुद्र में रह सकती हैं और लंबी दूरी तय कर सकती हैं। इसने नौसेना युद्ध नीति, रणनीति और तकनीकी संतुलन को बदलने में योगदान दिया।
30 September 1980) को इज़राइल की पूर्व प्रधानमंत्री (Golda Meir) का निधन हुआ। वे विश्व की पहली महिला नेताओं में से एक थीं, जिन्होंने (1969–1974) तक देश का नेतृत्व किया। उन्हें “Iron Lady of Israeli politics” कहा जाता था।
30 September 2001 को भारत की राजनीति को एक बड़ा आघात पहुँचा, जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता (Madhavrao Scindia) की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। यह हादसा (Uttar Pradesh) के (Mainpuri) ज़िले में हुआ था। दुर्घटना में पायलट सहित कुल आठ लोगों की जान चली गई। माधवराव सिंधिया कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक थे और उन्हें भविष्य में पार्टी का बड़ा चेहरा माना जाता था। वे ग्वालियर के राजघराने से संबंध रखते थे और अपनी सादगी व जनता के बीच लोकप्रियता के लिए जाने जाते थे। उनके निधन ने न सिर्फ कांग्रेस पार्टी को, बल्कि पूरे देश को हिला दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि यदि वे जीवित रहते तो राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका और भी मजबूत होती। यह दुखद घटना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अपूरणीय क्षति साबित हुई और आज भी उन्हें दूरदर्शी नेता के रूप में याद किया जाता है।