तिरंगे की शान [Sora Ai] 
इतिहास

तिरंगे की शान और स्वतंत्रता दिवस की परंपराएं

तिरंगे की शान और स्वतंत्रता दिवस की परंपराएं हमें हमारे गौरवशाली इतिहास और एकता की याद दिलाती हैं। लाल क़िले से भाषण, पतंगबाज़ी, सांस्कृतिक कार्यक्रम और बीटिंग रिट्रीट, हर परंपरा के पीछे है एक खास कहानी।

न्यूज़ग्राम डेस्क

लाल क़िले से भाषण की शुरुआत

1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तब हमारे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने आधी रात को मशहूर भाषण “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” (Tryst With Destiny) दिया। लेकिन लाल क़िले से भाषण देने की परंपरा 15 अगस्त 1947 की सुबह शुरू हुई, जब नेहरू जी (Nehru Ji) ने पहली बार वहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया और पूरे देश को संबोधित किया। लाल क़िला (Red Fort) इसलिए चुना गया क्योंकि यह भारत के सैकड़ों साल के इतिहास का गवाह रहा है, राजाओं के समय से लेकर आज़ादी की लड़ाई तक। यहीं से दुनिया को संदेश दिया गया कि “भारत अब आज़ाद है।” तब से हर साल प्रधानमंत्री यहीं से झंडा फहराते हैं और देश के अब तक के सफर और भविष्य के बारे में बात करते हैं।

पतंगबाज़ी का रंगीन जश्न

दिल्ली और गुजरात में 15 अगस्त को पतंग उड़ाने की परंपरा बहुत खास है। यह 1947 के बाद शुरू हुई, जब लोग अपनी खुशी को रंग-बिरंगे तरीके से दिखाना चाहते थे। आसमान में ऊँची उड़ती पतंगें आज़ादी का प्रतीक बनीं, बिना बंधन के, खुले आसमान में उड़ती हुई। दिल्ली में तो लोग पतंग उड़ाकर एक-दूसरे की पतंग काटने की दोस्ताना प्रतियोगिता भी करते हैं। आज भी 15 अगस्त के दिन आसमान लाल, हरे, पीले और नीले रंग की पतंगों से भर जाता है।

हमारी शान, हमारी पहचान

आज़ादी से पहले के झंडे और बदलाव की वजह

आज़ादी से पहले भारत का एक तय राष्ट्रीय ध्वज नहीं था। समय-समय पर अलग डिज़ाइन बनाए गए। 1906 में कोलकता (Kolkata) में पहला झंडा फहराया गया, जिसमें हरे, पीले और लाल रंग के साथ सूरज और चाँद के निशान थे। 1921 में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने लाल और हरे रंग वाला झंडा सुझाया, जिसमें बाद में सफेद रंग और बीच में चरखा जोड़ा गया। 1931 में केसरिया, सफेद और हरे रंग का तिरंगा अपनाया गया, जिसमें बीच में चरखा (Chakra) था। ये हमारे मौजूदा झंडे जैसा दिखता था। झंडे इसलिए बदले गए क्योंकि हमारे नेता ऐसा डिज़ाइन चाहते थे जो पूरे भारत कि विभनता को दर्शाता हो और किसी एक समूह तक सीमित न हो।

मौजूदा तिरंगे का चुनाव और उसका अर्थ

22 जुलाई 1947 को मौजूदा तिरंगा चुना गया, ऊपर केसरिया, बीच में सफेद, नीचे हरा और बीच में नीला अशोक चक्र। केसरिया रंग वीरता और बलिदान का प्रतीक है, सफेद रंग शांति और सच्चाई को दर्शाता है, जबकि हरा रंग समृद्धि, खेती और प्रकृति के संरक्षण का संदेश देता है। अशोक चक्र में 24 तीलियां हैं, जो दिन के 24 घंटों का प्रतीक हैं और हमें निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देते हैं। यह चक्र अशोक स्तंभ से लिया गया है, जो भारत के प्राचीन इतिहास और न्याय का प्रतीक है।

लाल क़िले से भाषण

सांस्कृतिक कार्यक्रमों का उत्साह

स्वतंत्रता दिवस पर देशभर में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। स्कूलों और मोहल्लों में बच्चे आज़ादी के सेनानियों पर गाने, नृत्य और नाटक करते हैं। बच्चे गांधी, नेहरू और अन्य वीरों के रूप में सजते हैं। यह एक तरह का कहानी सुनाने का तरीका होता है, लेकिन संगीत और रंगीन पोशाकों के साथ। इन कार्यक्रमों के जरिए अगली पीढ़ी को स्वतंत्रता संग्राम की कहानियां सुनाई और दिखाई जाती हैं।

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बीटिंग रिट्रीट का गरिमापूर्ण समापन

स्वतत्रता दिवस के बाद एक खास आयोजन होता है जिसे “बीटिंग रिट्रीट” कहते हैं। इसमें सेना, नौसेना और वायुसेना के बैंड देशभक्ति की धुनें बजाते हैं। यह एक तरह से कहने का तरीका है, “उत्सव तो खत्म हो गया, लेकिन हमारा गर्व हमेशा बना रहेगा।” यह कार्यक्रम हमारे सैनिकों की अनुशासन और संगीत कला का सुंदर मेल है और आज़ादी के जश्न का गरिमापूर्ण समापन करता है।

हमारी शान, हमारी पहचान

तिरंगे की शान और स्वतंत्रता दिवस की परंपराएं हमें हमारे गौरवशाली इतिहास और एकता की याद दिलाती हैं। ये परंपराएं सिर्फ उत्सव नहीं हैं, बल्कि हमारे साहस, त्याग और सपनों की जीती-जागती कहानी हैं, जिन्हें हम हर साल नए जोश के साथ मनाते हैं। [Rh/BA]

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