इतिहास के पन्नों में अक्सर ऐसी दासताएं मिल जाती हैं, जिसके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानतें। अब इसी बात को ले लीजिए कि दुबई (Dubai) भी कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था, ये बात आखिर कितने लोग जानतें है ? जी हां! दुबई (Dubai) जो आज पूरी दुनियां में टूरिज्म (Tourism)और अपने अद्भुद कल्चर के लिए प्रचलित है वह एक समय भारत का हिस्सा हुआ करता था। दुबई (Dubai) के सभी प्रशासनिक कार्य ( Administrative Work) भारत से होते थे, यहां तक कि भारत के सैनिक भी अरब देशों की सुरक्षा के लिए तैनात रहते थें। इतिहास के पन्नों से गायब अरब देशों की यह कहानी आखिर कैसे आई सबके सामने? आइए जानतें है कि कैसे अरब देश भारत का हिस्सा थें और कैसे ब्रिटिश राज ने इसे भारत से अलग कर दिया?
जब दुबई भारत का हिस्सा था!
1956 में एक लेखक डेविड होल्डन ( David Holden)बहरीन पहुंचे थे जो उस वक्त ब्रिटिश ( British) के संरक्षक में ही था। उन्होंने अपनी लेख में बताया कि उन दिनों दुबई, अबू धाबी और ओमान जैसे जगह पर ब्रिटिश राज्य के निशान नजर आते थे। ओमान के सुल्तान राजस्थान से पढ़े लिखे थे और काफी अच्छी उर्दू भी बोलते थे। इसके साथ ही दुबई, अबू धाबी और ओमान जैसे शहरों में काफी पुरानी संस्कृति अपनाई जाती थी।
जिस तरह भारत में काम के अनुसार लोगों के नाम बटे हुए हैं, कुछ उसी तरह अरब देशों में भी लोगों को उनके काम के अनुसार बुलाया जाता था। यहां तक कि पूर्वी यमन के एक हिस्से में क़ुआइती राज्य था, जहां के सिपाही उस वक्त हैदराबादी सेना की पुरानी वर्दी पहनकर मार्च करते नजर आए। डेविड होल्डन को यह देखकर ऐसा लगा जैसे हैदराबाद के रास्ते दिल्ली का जुड़ाव सीधे अरब के दक्षिणी किनारे तक है। आपको बता दें कि भले ही इतिहास के पन्नों में अरब देश का भारत के साथ कोई मेल नजर नहीं आता लेकिन सच्चाई यह है कि 20वीं सदी तक अरब देश का एक तिहाई हिस्सा भारत का हिस्सा था, और यहां का प्रशासन भारत के दिल्ली से होती थी।
अरब का भारत से अलग होना ब्रिटिश की चाल या मजबूरी?
अब जैसे कि सबको पता है की 20वीं सदी तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ( British East India Company) ने लगभग पूरी दुनिया पर राज किया है। अदन से लेकर कुवैत तक अरब में जितने भी देश शामिल थे वे सभी ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत आते थे, और उनका प्रशासन भारत के दिल्ली (Delhi) से होता था। इन देशों पर भारतीय राजनीतिक सेवा यानी इंडियन पॉलिटिकल सर्विस के ज़रिये शासन होता था। इन देशों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत पर थी और भारत के सैनिक इन देशों में होने वाली किसी भी घटना के लिए जवाबदेही होते थे।
आपको बता दे की 1889 में इंटरप्रिटेशन एक्ट पारित हुआ था जिसके बाद अदन से लेकर कुवैत तक अरब के सभी देश भारत के हिस्सा माने जाते थे। यहां तक की लॉर्ड कर्जन ने अपनी समिति में यह सुझाव भी दिया था की अरब देशों को भारत में पूरी तरह से मिला दिया जाए लेकिन ऐसा ना हो सका। सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि उस समय लोगों को यह पता ही नहीं था कि अरब देश भारत का हिस्सा है, क्योंकि अंग्रेज उसे छुपा कर रखते थें। यूं समझ लीजिए कि जिस तरह एक शेख अपनी प्रिय पत्नी को पर्दे में लोगों से छुपा कर रखता है कुछ इस प्रकार अंग्रेज अरब देशों को छुपा कर रखते थे, और इसका मुख्य कारण यह था कि अरब देशों से अंग्रेजों को काफी मुनाफा होता था और वह नहीं चाहते थे कि भारत भी इन बातों को जानें।
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1937 में ही अलग हो गई थी खाड़ी
1920 तक आते-आते भारत एक अलग ही राजनीतिक और स्वतंत्र होने की भावना की दिशा में था। वे अपनी जड़े महाभारत में खोजने लगे थे और भारत को अंग्रेजों से पूर्ण रूप से स्वतंत्र करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे थे। इसी बीच मौका परस्त अंग्रेजों ने 1937 में अदन को भारत से अलग करने का निर्णय ले लिया और 100 वर्षों से भारत का हिस्सा रही खड़ी पर अपना औपनिवेशिक शासन कर लिया। जब भारत विभाजन हो रहा था और भारत और पाकिस्तान में हिस्से का बटवारा हो रहा था तब अंग्रेजों ने विचार विमर्श किया कि क्या फारस की खाड़ी की जिम्मेदारी भारत और पाकिस्तान को दी जाए? लेकिन दिल्ली के अधिकारियों की फारस की खाड़ी पर कोई रुचि नहीं थी और इसलिए भारत ने उसकी जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया। आपको बता दें कि 1 अप्रैल 1947 को यानी भारत की आज़ादी से पहले ही दुबई से लेकर कुवैत तक के राज्य (देश) भारत से औपचारिक रूप से अलग कर दिए गए।
आज का दुबई (Dubai), जो कभी ब्रिटिश भारत का एक छोटा सा हिस्सा हुआ करता था, अब नया मिडल ईस्ट का चमकता हुआ शहर बन चुका है। यहां रहने वाले लाखों भारतीय और पाकिस्तानी शायद इस बात से अनजान हैं कि एक समय ऐसा भी था जब भारत या पाकिस्तान खाड़ी देशों के वारिस बन सकते थे – जैसे वे जयपुर, हैदराबाद या बहावलपुर रियासतों के बने थे। लेकिन फिर ब्रिटिश हुकूमत के आखिरी दिनों में एक चुपचाप लिया गया प्रशासनिक फैसला सब कुछ बदल गया। इस फैसले ने भारत और खाड़ी देशों के बीच का गहरा रिश्ता तोड़ दिया। आज उस पुराने रिश्ते की सिर्फ़ हल्की सी झलक और यादें ही बाकी हैं। Rh/SP