न्यूजग्राम हिंदी: नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) के नाम से तो आप सभी वाकिफ होंगे। जी हां, वही नाथूराम गोडसे जिन्होंने बापू (Bapu) की हत्या की थी। गोडसे का जन्म 19 मई 1910 को मुंबई–पुणे रेलमार्ग के पास स्थित उकसान गांव में हुआ था। यह एक ब्राह्मण (Brahmin) परिवार से ताल्लुक रखते थे और इनके पिता विनायक गोडसे डाक विभाग में एक कर्मचारी के रूप में कार्य कर रहे थे। अशोक कुमार पांडे (Ashok Kumar Pandey) ने अपनी पुस्तक "उसने गांधी को क्यों मारा?" में लिखा है कि विनायक के परिवार में बेटियों के जन्म पर बेटियां तो बच जाती थी लेकिन पुत्रों के जन्म के कुछ वक्त बाद ही मृत्यु हो जाती थी। नाथू से पहले भी उनके परिवार में 3 पुत्रों की मृत्यु हो चुकी थी। इसलिए नाथू के जन्म के बाद उन्हें बेटी की तरह ही रखा गया और नथ भी पहनाई गई। इसलिए उसका नाम नाथूराम पड़ा।
जैसे-जैसे नाथूराम बड़े होने लगे। उनकी रुचि शारीरिक कसरत, तैराकी आदि में बढ़ने लगी। एक बार उन्होंने कुएं में डूबते हुए अछूत बालक को बचाया जिस पर उन्हें बहुत डांट पड़ी। उनकी रुचि पढ़ाई में नहीं थी लेकिन धार्मिक किताबें पढ़ना उन्हें पसंद था। अंग्रेजी उन्हें पसंद नहीं थी इसलिए उन्होंने नौकरी ना करने का फैसला लिया और बिजनेस में किस्मत आजमाने की सोची जिसके लिए उन्होंने पुणे छोड़ दिया और पिता के पास कर्जट चले गए। वहां पर उन्होंने 2 साल तक बढ़ई का काम सीखा। जिसके बाद पिता का तबादला हो गया और वो लोग रत्नागिरी (Ratnagiri) चले गए। दूसरी ओर इसी वक्त वीर सावरकर को अंडमान निकोबार में काला पानी की सजा से मुक्त कर दिया गया। उन्हें अंग्रेजो द्वारा रत्नागिरी में नजरबंद किया हुआ था।
सावरकर किसी राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं ले सकते थे। लेकिन नाथूराम गोडसे ने सावरकर से मुलाकात की और उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए वही गांधीजी भी सावरकर से मिलने का प्रयास कर रहे थे लेकिन अंग्रेजों द्वारा उन्हें रोक दिया गया। सावरकर अपने हिंदू विचारों की वजह से पूरे महाराष्ट्र में चर्चा का विषय बने हुए थे।
नाथूराम गोडसे
इसके बाद गोडसे सांगली चला गया जहां पर हिंदू संगठनों की शाखा खुली जिससे गोडसे भी जुड़ गया। इसके बाद 1938 में हिंदू महासभा द्वारा निकाले जा रहे जुलूस में गिरफ्तार होने वालों के साथ गोडसे भी गिरफ्तार हुआ और एक साल जेल में रहा। उसे दूसरे विश्व युद्ध के समय आजाद किया गया।
1944 में आए मराठी अखबार अग्रणी के प्रतिबंधित होने के अगले दिन ही हिंदू राष्ट्र नाम का एक और अखबार निकाला गया। विभाजन और संप्रदाय जैसे शब्द तेजी पर थे तो अखबार को भी गति मिल गई। इस अखबार का आखिरी संस्मरण गांधीजी की हत्या से अगले दिन प्रकाशित हुआ और इसके बाद गोडसे का सफर फांसी के फंदे पर जाकर खत्म हो गया।
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