यह खबर जितनी चौंकाने वाली है, उतना ही यह खबर सवालों से भरा हुआ भी है। भारत के विवादित (Controversy) डॉक्टर केतन देसाई, जिन पर रिश्वतखोरी (Bribery) और आपराधिक षड्यंत्र के गंभीर आरोप लगे हैं, और उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सा संस्था विश्व चिकित्सा संघ (World Medical Association - WMA) का अध्यक्ष चुना गया है। आपको बता दें यह वही संगठन है जो दुनिया भर के डॉक्टरों के लिए नैतिक मानक तय करता है। अब सवाल यह उठता है की जब उन पर भ्रष्टाचार (Corruption) के केस अब भी अदालत (Court) में लंबित हैं, तो आखिर कैसे वो इस वैश्विक संस्था के सर्वोच्च पद तक पहुँच गए ? आइये इस पूरी कहानी को विस्तार से जानते हैं।
कौन हैं डॉ. केतन देसाई ?
आपको बता दें डॉ. केतन देसाई (Dr. Ketan Desai) एक प्रसिद्ध यूरोलॉजिस्ट हैं और कभी भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) के अध्यक्ष भी रहे हैं। 1990 के दशक से ही उनका नाम चिकित्सा शिक्षा और संस्थागत राजनीति में प्रभावशाली रहे हैं। कभी उनकी छवि भारत के सबसे ताकतवर चिकित्सा प्रशासकों में गिनी जाती थी। लेकिन इस ताकत के साथ ही उनके करियर पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगे हैं, जो आज तक उनका पीछा नहीं छोड़ पाया है।
क्या है विवाद की जड़ ?
वर्ष 2010 में नई दिल्ली में दर्ज एक मामले ने देसाई के करियर की दिशा बदल दी, और उन पर आरोप लगा कि उन्होंने पंजाब के एक निजी मेडिकल कॉलेज से ₹2 करोड़ की रिश्वत ली थी, ताकि उन्हें मेडिकल काउंसिल से अधिक छात्र भर्ती करने की अनुमति दिलाई जा सके। यह आरोप केवल रिश्वत (Bribery) का नहीं था, बल्कि यह आरोप पूरा षड्यंत्र रचने का भी था, आपको बता दें जिसमें सरकारी पद और निजी संस्थान के बीच लाभ का सौदा छिपा हुआ था। इसके बाद सीबीआई ने उन्हें उसी साल गिरफ्तार कर लिया, और फिर वो कई हफ्तों तक जेल में रहे, बाद में उन्हें जमानत पर रिहा तो किया गया, लेकिन मुकदमे आज भी अदालतों में लंबित हैं।
डॉ. देसाई (Dr. Ketan Desai) को 2009 में विश्व चिकित्सा संघ के भावी अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। लेकिन 2010 में गिरफ्तारी के बाद WMA ने उनका पद निलंबित कर दिया। आपको बता दें यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि WMA, जो विश्व स्तर पर चिकित्सकों के नैतिक आचरण की निगरानी करता है, वो अपने शीर्ष पद पर किसी विवादित व्यक्ति को नहीं रखना चाहता था। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है की 2013 में कहानी ही पलट गई।
क्योकिं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) जो की WMA का सदस्य संगठन है उन्होंने WMA को एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें यह कहा गया है कि देसाई के खिलाफ सभी आरोप वापस ले लिए गए हैं। इसी रिपोर्ट के आधार पर WMA ने उनका निलंबन हटाया और बाद में 2015 में उन्हें फिर से अध्यक्ष नियुक्त करने का फैसला कर लिया।
रॉयटर्स की जांच और खुलासा
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने 2015 में एक तफ्तीशी रिपोर्ट प्रकाशित की थी, आपको बता दें इस रिपोर्ट में भी एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया खुलासा यह हुआ की IMA ने WMA को गलत जानकारी दी थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि देसाई के खिलाफ केस अभी भी अदालत में लंबित हैं, लेकिन IMA ने दावा किया कि वो सभी मामले खत्म हो चुके हैं। IMA ने इस आरोप से इनकार कर दिया, लेकिन रॉयटर्स की रिपोर्ट ने चिकित्सा जगत में नैतिकता बनाम राजनीति की नई बहस छेड़ दी है।
21 अक्तूबर 2016 को ताइवान में आयोजित WMA की वार्षिक बैठक में डॉ. देसाई ने अध्यक्ष के रूप में अपना उद्घाटन भाषण दिया।यह पल उनके लिए व्यक्तिगत उपलब्धि थी, लेकिन वैश्विक स्तर पर कई डॉक्टर संगठनों ने इसे "नैतिक विडंबना" कहा। इसके बाद रॉयटर्स ने जब WMA से पूछा कि चल रहे मुकदमों के बावजूद भी देसाई की नियुक्ति कैसे की गई, तो संगठन के प्रवक्ता नाइजेल डंकन ने जवाब में कहा की "हमें जो कहना था, वह हम पहले ही कह चुके हैं।" इस बयान ने और भी सवाल खड़े कर दिए हैं, जिसमें की सबसे बड़ा सवाल यह है की क्या WMA जैसी प्रतिष्ठित संस्था ने अपनी नैतिक जवाबदेही से समझौता किया ?
आपको बता दें दिल्ली में यह केस दर्ज है और अब भी अदालत (Court) में लंबित है। सीबीआई सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में लंबित अपील के कारण सुनवाई रुकी हुई है, लेकिन देसाई को जिला अदालत में नियमित रूप से पेश होना पड़ता है। इसके बाद 3 अगस्त 2016 को उन्होंने बीमारी का हवाला देकर अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होने से छूट के लिए आवेदन किया था, और अगली सुनवाई 4 नवंबर को तय की गई थी। बता दें की कानूनी प्रक्रिया की धीमी रफ्तार ने इस केस को वर्षों तक बीच में लटका दिया है जैसा कि भारत की न्यायपालिका में अक्सर देखा जाता है।
WMA क्या है और क्यों अहम है ?
विश्व चिकित्सा संघ (WMA) का मुख्यालय फ्रांस में है और यह दुनिया भर के डॉक्टरों का सबसे बड़ा नैतिक संगठन है। आपको बता दें इसमें अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन, ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जैसे प्रमुख सदस्य शामिल हैं। इसका उद्देश्य है, चिकित्सा व्यवसाय में नैतिक मानकों का निर्माण, डॉक्टरों के अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा, वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों पर सलाह देना। इस संस्था का प्रमुख बनने का अर्थ होता है वैश्विक चिकित्सा नैतिकता का चेहरा बनना और यही कारण है कि देसाई की नियुक्ति को लेकर सवाल और विवाद दोनों अभी भी जारी हैं।
डॉ. देसाई का मामला एक बड़े नैतिक विरोधाभास को उजागर करता है। आपको बता दें एक ओर वो भारत और दुनिया के लाखों डॉक्टरों के प्रतिनिधि हैं, तो वहीं दूसरी ओर, वो खुद ऐसे आरोपों का सामना कर रहे हैं जिनका सीधा संबंध भ्रष्टाचार और चिकित्सा शिक्षा में अनियमितता से है। उनकी नियुक्ति ने यह सवाल फिर उठाया है की "क्या किसी व्यक्ति को, जिसके खिलाफ गंभीर आपराधिक मुकदमे चल रहे हों, उनको नैतिक संस्था का प्रमुख बनना चाहिए ?"
निष्कर्ष
डॉ. केतन देसाई (Dr. Ketan Desai) की कहानी भारत की न्याय व्यवस्था, चिकित्सा राजनीति और नैतिक मानदंडों के टकराव की जीवित मिसाल है। जहाँ एक ओर वो भारतीय चिकित्सा जगत के प्रभावशाली चेहरों में से एक हैं, वहीं दूसरी ओर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार (Corruption) के बादल अब भी काट-छाँट वाली नहीं हैं। विश्व चिकित्सा संघ जैसे सम्मानित मंच पर उनका चुना जाना इस बात का संकेत है कि प्रतिष्ठा और नैतिकता के बीच की रेखा आज कितनी धुंधली हो चुकी है।
ताइवान में दिया गया उनका भाषण शायद एक "जीत" की तरह दिखे, लेकिन उनके पीछे लंबित मुकदमे अब भी एक ऐसे "प्रश्नचिह्न" की तरह हैं, जो विश्व चिकित्सा समुदाय की नैतिक आत्मा को झकझोरते हैं। [Rh/PS]