बचपन से ज़रूरी नैतिक मूल्यों का विकास IANS
उत्पीड़न/अपराध

स्कूलों और घरों में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने की ज़रूरत

जब हर सामाजिक प्रतिष्ठान का पतन हो गया है, तो आप लोगों से नैतिक मूल्यों के विकास की उम्मीद कैसे करते हैं।

न्यूज़ग्राम डेस्क

मांड्या के मालवल्ली तालुक में एक ट्यूशन टीचर द्वारा दस साल की बच्ची से रेप (rape) और हत्या की घटना ने कर्नाटक के लोगों को झकझोर कर रख दिया है।

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि स्कूलों और घरों में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा नहीं दिया गया और शिक्षकों को समय-समय पर प्रशिक्षित नहीं किया गया तो इस तरह की जघन्य घटनाएं बढ़ती ही रहेंगी।

मनोवैज्ञानिक डॉ. ए श्रीधर ने आईएएनएस से कहा कि जब हर सामाजिक प्रतिष्ठान का पतन हो गया है, तो आप लोगों से नैतिक मूल्यों के विकास की उम्मीद कैसे करते हैं।

श्रीधर कहते हैं कि अच्छे संस्कार स्कूलों, दैवीय स्रोतों, माता-पिता से आने चाहिए। यदि तीनों स्रोत काम नहीं कर रहे हैं तो बच्चे को सही मूल्य कैसे मिलेंगे।

वह कहते हैं कि जब इनपुट ही गलत है तो आप मानस के सही होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। हिंदू (Hindu) धर्म का मूल यह है कि आप स्वयं अनुभव करते हैं। किसी को नुकसान न पहुंचाने का विचार अब पूरी तरह से गायब है। यही कारण है कि सामूहिक बलात्कार व हत्याओं के मामले में नाबालिगों का नाम सामने आ रहा है।

छात्राएं

श्रीधर कहते हैं कि बिलकिस बानो (Bilkis Bano) मामले में बलात्कार के आरोपियों को रिहा कर दिया जाता है और 'आरती' के साथ उनका स्वागत किया जाता है, तो इससे क्या संदेश जाता है। क्या आप इतने खुश हैं कि दोषी वापस आ गए और सब कुछ भुला दिया गया।

जो लोग वयस्क हो रहे हैं, उनमें व्यक्तिगत नैतिक मूल्यों की कमी है। क्योंकि सामाजिक व शैक्षणिक (educational) क्षेत्र उचित मूल्य प्रदान नहीं कर रहे हैं। श्रीधर ने कहा कि शैक्षिक प्रणाली मात्र अंक और सामाजिक हैसियत हासिल करने के मामले में उपलब्धियों के आसपास केंद्रित है।

फिनलैंड (Finland) में छोटे बच्चों की जगह उनके माता-पिता के लिए नियमित रूप से साक्षात्कार और परीक्षण आयोजित किए जाते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि एक अच्छे परिवार में बच्चा अच्छी तरह से विकसित होगा।

बेंगलुरु सिटी यूनिवर्सिटी एकेडमिक काउंसिल के सदस्य और विद्या संस्कार इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, कॉमर्स एंड मैनेजमेंट (Commerce & Management) के प्रिंसिपल सतीश एम बेजजीहल्ली ने कहा कि शिक्षकों के लिए नियमित इन-सर्विस प्रोग्राम उन्हें बच्चों के प्रति संवेदनशील बनाएगा।

शिक्षकों को जागरूक करने और उन्हें जिम्मेदारियां सिखाने के लिए निरंतर कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।

कई स्कूलों में बिना योग्यता के शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है। उन्होंने कहा कि इस बात का विश्लेषण होना चाहिए कि क्या ये घटनाएं सरकारी संस्थानों में या सहायता प्राप्त या गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में अधिक होती हैं।

वह कहते हैं कि अपराधी की शैक्षिक पृष्ठभूमि का अध्ययन किया जाना चाहिए।

सतीश बताते हैं कि गैर सहायता प्राप्त संस्थाओं में ऐसे मामले अधिक आते हैं। अपराध उन लोगों द्वारा किए जाते हैं जो बाल मनोविज्ञान व मानव मनोविज्ञान को नहीं जानते हैं।

एक प्रवृत्ति यह भी है कि यदि एक व्यक्ति अपराध करता है, तो पूरी बिरादरी को दोषी ठहराया जाता है। सतीश ने सुझाव दिया कि संस्थानों को एहतियाती कदम उठाने चाहिए, सीसीटीवी (CCTV) कैमरे लगाने चाहिए और हर रोज़ उनकी निगरानी करनी चाहिए, शिक्षकों के लिए एक आचार संहिता विकसित करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि कर्मचारियों की निगरानी और ट्रैकिंग महत्वपूर्ण है। माता-पिता के लिए जागरूकता भी जरूरी है। भरोसा बहुत जरूरी है। यदि माता-पिता शिक्षकों पर विश्वास खो देते हैं, तो शिक्षा प्रणाली अपनी रीढ़ खो देगी। सतीश कहते हैं कि सौ में से दो ही ऐसे मामले मिलेंगे, जो अपनी ड्यूटी 98 फीसद पूरी लगन से कर रहे हैं।

आईएएनएस/RS

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