सोचिए, अगर किसी इंसान को अपना ही नाम पढ़ना न आता हो या दुकान से दवाई लेते समय उसके इस्तेमाल की पर्ची समझ न आए, तो ज़िंदगी कितनी मुश्किल हो जाएगी। आज के समय में शिक्षा सिर्फ डिग्री पाने का साधन नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी जीने का आधार है। मोबाइल चलाने से लेकर बैंक का फॉर्म भरने तक, हर जगह पढ़ना-लिखना ज़रूरी है। शिक्षा इंसान को आत्मनिर्भर बनाती है, उसके आत्मविश्वास को बढ़ाती है और समाज में समानता लाती है। यही कारण है कि हर साल 8 सितम्बर को विश्व साक्षरता दिवस (World Literacy Day) मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि शिक्षा का प्रकाश हर व्यक्ति तक पहुँचना चाहिए। जब हर बच्चा, हर महिला और हर पुरुष पढ़-लिख पाएंगे, तभी असली विकास संभव होगा।
शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह इंसान के जीवन की दिशा तय करती है। एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपनी समस्याओं का हल आसानी से खोज सकता है, जबकि अशिक्षित व्यक्ति छोटी-सी चुनौती के सामने भी असहाय हो जाता है। आज के समय में शिक्षा का महत्व (Importance of Education) और भी बढ़ गया है, क्योंकि दुनिया तकनीक से जुड़ चुकी है। मोबाइल फोन, इंटरनेट, बैंकिंग, नौकरी हर जगह शिक्षा की ज़रूरत पड़ती है।
शिक्षा (Education) व्यक्ति को सोचने, समझने और सही-गलत की पहचान करने की ताकत देती है। यह हमें आत्मनिर्भर बनाती है और जीवन में आत्मविश्वास भरती है। इसके साथ ही शिक्षा समाज में समानता और भाईचारे का आधार भी है। जब हर वर्ग के लोग शिक्षित होंगे तो भेदभाव और असमानता भी कम होगी। यही कारण है कि हर साल विश्व साक्षरता दिवस (World Literacy Day) हमें यह संदेश देता है कि शिक्षा सिर्फ व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय विकास की कुंजी है।
विश्व साक्षरता दिवस की शुरुआत 1965 में यूनेस्को (UNESCO) द्वारा की गई थी। उस समय दुनिया के कई देशों में निरक्षरता की समस्या बहुत बड़ी थी। करोड़ों लोग पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे, जिसकी वजह से वे अपने अधिकारों से वंचित रहते थे और समाज में पीछे रह जाते थे। शिक्षा को हर व्यक्ति तक पहुँचाने के उद्देश्य से यूनेस्को ने 8 सितम्बर को विश्व साक्षरता दिवस (World Literacy Day on 8 September) के रूप में घोषित किया। पहली बार यह दिवस 1966 में मनाया गया और तब से हर साल इसे अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है।
इस दिन दुनिया भर में शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम, जागरूकता अभियान और कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं। भारत में भी साक्षरता अभियान और सरकारी योजनाओं को इस दिन विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है। इस दिन का इतिहास हमें यह याद दिलाता है कि शिक्षा केवल व्यक्तिगत विकास का साधन नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन की शक्ति भी है। जब लोग पढ़-लिख पाते हैं तो वे अपने अधिकारों को समझते हैं, रोजगार के अवसर पाते हैं और समाज को आगे बढ़ाते हैं। यही वजह है कि विश्व साक्षरता दिवस का महत्व (World Literacy Day) आज और भी बढ़ गया है।
विश्व साक्षरता दिवस (World Literacy Day) हर साल 8 सितम्बर को मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करना और निरक्षरता को समाप्त करना है। शिक्षा केवल ज्ञान का साधन नहीं, बल्कि यह आत्मनिर्भरता, समानता और समाज में जागरूक नागरिक बनाने का आधार है। इस दिन पूरी दुनिया में विभिन्न कार्यक्रम, अभियान और चर्चाएँ आयोजित की जाती हैं ताकि शिक्षा हर व्यक्ति तक पहुँच सके।
भारत ने पिछले कुछ दशकों में शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है। वर्ष 2011 की जनगणना (2011 Census) के अनुसार भारत की साक्षरता दर लगभग 74% थी, जिसमें पुरुषों की साक्षरता दर 82% और महिलाओं की 65% थी। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच अब भी बड़ा अंतर है। सरकार ने "सर्व शिक्षा अभियान"("Education for all campaign"), "राष्ट्रीय साक्षरता मिशन" ("National Literacy Mission") और "नई शिक्षा नीति 2020" ("New Education Policy 2020") जैसे कदम उठाए हैं ताकि सभी बच्चों और वयस्कों तक शिक्षा पहुँच सके। फिर भी, आज भी भारत में करोड़ों लोग पूरी तरह साक्षर नहीं हैं। विशेषकर महिलाएँ और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इसलिए विश्व साक्षरता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि जब तक हर व्यक्ति पढ़-लिख नहीं पाता, तब तक असली विकास संभव नहीं है।
इस साल विश्व साक्षरता दिवस (8 सितम्बर) का विषय है: “डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना” (Promoting Literacy in the Digital Era)। आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में डिजिटल तकनीक हर क्षेत्र में फैल चुकी है| शिक्षा, कामकाज, संचार और मनोरंजन इसलिए साक्षरता का मतलब अब सिर्फ पढ़ना-लिखना नहीं रहा। डिजिटल साक्षरता से हमारा अभिप्रेत है, डिजिटल सामग्री को समझना, मूल्यांकन करना, सुरक्षित तरीके से उपयोग करना और उसमें रचनात्मक रूप से भाग लेना।
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इस विषय का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि डिजिटल विभाजन (Digital Divide) से कई लोग खासकर वंचित समूह दोहरी तरह से पीछे रह सकते हैं: न केवल पारंपरिक साक्षरता से, बल्कि डिजिटल ज्ञान से भी। इसलिए डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना हमें ऐसे समाज की ओर ले जाता है जहाँ हर व्यक्ति समान रूप से प्रभावित, सक्षम और जुड़ा हुआ हो यह एक न्यायपूर्ण और समावेशी भविष्य की दिशा है। (Rh/Eth/SP)