Krishna Janmashtami: आज पूरा देश श्रीकृष्ण जन्माष्टमी धूम-धाम से माना रहा है। पर क्या आपको पता है कि आज ही के दिन प्रसिद्ध माँ विंध्यावासिनी का भी जन्मदिवस बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। विंध्यावासिनी देवी, मिर्जापुर स्थित विंध्याचल पर्वत पर स्थापित हैं। इनके जन्म कि कथा भगवान श्री कृष्ण के जन्म से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तब उसी समय गोकुल में यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ। यह और कोई नहीं स्वयं भगवती योगमाया थीं। वासुदेव जी कृष्णजी को गोकुल लेकर गए और वहाँ नंदरानी यशोदा के पास पुत्र को लिटाकर उनकी पुत्री को लेकर वापिस आ गए।
जब कंस को देवकी के आठवें पुत्र का समाचार ज्ञात हुआ तब वो कारागार पहुँचा और ज्यों ही उस कन्या को उठाकर पटकने के लिए उद्यत हुआ तभी वह कन्या आकाश में उड़ गई और भगवती योगमाया के रूप में प्रकट हो गई। भगवती ने कहा, 'रे कंस! तेरा काल तो गोकुल में पल रहा है।' यह कहकर भगवती जगदंबा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गईं।
कहा जाता है कि इसके बाद देवताओं ने योगमाया से कहा कि, 'अब आपका कार्य सिद्ध हो चुका है, अतः देवलोक चलकर निवास करें।' इसपर योगमाया ने कहा कि नहीं वो धरती पर ही भिन्न-भिन्न रूप में रहेंगी। जो भी भक्त जिस भी रूप में भगवती का ध्यान करेगा उसे वो उसी रूप में दर्शन देंगी। कहा जाता है कि देवताओं ने यह आज्ञा मानकर विंध्य पर्वत पर एक शक्तिपीठ का निर्माण किया जिसे आज लोग विंध्याचल अथवा विंध्यावासिनी के नाम से जाना जाता है। श्रीमद्भागवत पुराण में उन्हें ही विंध्यावासिनी कहकर बुलाया गया है। जबकि शिव पुराण में इन्हें सती का अंश बताया गया है।
भारत के अन्य शक्तिपीठों में माँ भगवती का आंशिक दर्शन ही प्राप्त होता है जबकि यहाँ माँ अपने सम्पूर्ण शरीर के साथ विराजमान हैं। दोनों पैर शेर पर रखकर यह देवी सदा खड़ी रहती हैं। इनकी इस भंगिमा का अर्थ है कि भक्त जैसे ही उनको याद करता है, वो अविलंब वहाँ पहुँच जाती हैं। यहाँ दूर-दूर से साधक सिद्धियाँ प्राप्त करने आते हैं, जो यहाँ आकर संकल्प मात्र करने पर ही अपनी सिद्धि सम्पूर्ण पाते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार इन्हें नंदजा और कृष्णानुजा के नाम से भी जाना जाता है। श्रीकृष्ण की इस बहन ने आजीवन श्रीकृष्ण की रक्षा की। इन्हीं योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कई दैत्यों का दलन किया।
गर्गपुराण के अनुसार इन्हीं योगमाया देवी ने देवकी के सातवें गर्भ को रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया था, जिससे बलराम का जन्म हुआ था। विंध्याचल पर्वत पर विंध्यावासिनी के निकट ही कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान हैं। यह चमत्कारिक मंदिर पतितपावनी गंगा के कंठ पर विंध्य शृंखला की पहाड़ी पर बसा हुआ है। मार्कण्डेय पुराण के श्री दुर्गा सप्तशती की कथा के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी इन्ही भगवती की मातृभाव से साधना और उपासना करते हैं, जिसके फलस्वरूप वे सृष्टि को सुचारु रूप से चलाने में समर्थ होते हैं।