'हर घर तिरंगा' से लोगों का बना औपचारिक से अधिक व्यक्तिगत संबंध
'हर घर तिरंगा' से लोगों का बना औपचारिक से अधिक व्यक्तिगत संबंध Wikimedia Commons
विशेष दिन

'हर घर तिरंगा' से लोगों का बना औपचारिक से अधिक व्यक्तिगत संबंध

Prashant Singh

इस बार का स्वतंत्रता दिवस बहुत ही खास रहा। भारत सरकार की 'हर घर तिरंगा' का नारा देश के लिए एक नई पहल थी। यह पहली बार है जब लोगों का तिरंगे के साथ औपचारिक से अधिक व्यक्तिगत संबंध बना है। इसीके तहत भारत सरकार ने घोषणा की थी कि ‘‘जहाँ ध्वज खुले में प्रदर्शित किया जाता है या किसी नागरिक के घर पर प्रदर्शित किया जाता है, इसे दिन-रात फहराया जा सकता है।’’

इससे पहले भी भारत सरकार ने ध्वज संहिता में संशोधन करते हुए मशीन से बने और पॉलिएस्टर के झंडे के उपयोग को अनुमति दिया था। इस संशोधन के बाद अब गृह मंत्रालय ने भारतीय ध्वज संहिता, 2002 में संशोधन किया जिससे कि रात में भी राष्ट्रीय ध्वज को फहराया जा सके।

आइए जानते हैं कि भारतीय ध्वज संहिता, 2002 के बारे में

इसके तहत ध्वज के सम्मान और उसकी गरिमा को बरकरार रखते हुए तिरंगे के अप्रतिबंधित प्रदर्शन की अनुमति दी। ध्वज के सही प्रदर्शन को नियंत्रित करने वाले पूर्व मौजूदा नियमों को प्रतिस्थापित नहीं करती है। यह सब पिछले सभी कानूनों, परंपराओं और प्रथाओं को एक साथ लाने का प्रयास था।

भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बाँटा गया है:

पहला भाग राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है।

दूसरा भाग जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताता है।

तीसरे भाग में केंद्र और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के विषय में बताया गया है।

संहिता में यह उल्लेख किया गया है कि तिरंगे का उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त ध्वज का उपयोग उत्सव के रूप में या किसी भी प्रकार की सजावट के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता। यदि बात आधिकारिक प्रदर्शन कि है तो इसके लिए केवल भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित विनिर्देशों के अनुरूप चिह्न वाले झंडे का उपयोग किया जा सकता है।

यदि हम तिरंगे के इतिहास पर नज़र डालें तो पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में लोअर सर्कुलर रोड के पास पारसी बागान स्क्वायर पर फहराया गया था। इसमें लाल, पीले और हरे रंग की तीन क्षैतिज पट्टियाँ शामिल थीं।

इसके बाद 1921 में एक बार फिर से बदलाव आया, जिसमें स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकय्या ने महात्मा गांधी से मुलाकात की और ध्वज के एक मूल डिज़ाइन का प्रस्ताव रखा। इस झंडे में दो लाल और हरे रंग की पट्टियाँ थीं।

1931 तक यह ध्वज कई बदलावों से गुजरा, और 1931 में कराची में कॉन्ग्रेस कमेटी की बैठक में तिरंगे को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया।

इसके बाद अंततः 22 जुलाई, 1947 को हुई संविधान सभा की बैठक में भारतीय ध्वज को उसके वर्तमान स्वरूप में अपनाया गया।

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