Tees maar Khan: आपने अक्सर कहावत में लोगों को कहते हुए सुना होगा कि “ ज्यादा ‘तीसमार खां’ न बनो।” कई लोग तो तीसमार खां का अर्थ भी नहीं जानते हैं। दरअसल, इसका शाब्दिक अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जिसने तीस जानवर या आदमी मारे हों। कई बार बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाले शख़्स के लिए हम व्यंगात्मक रूप में भी इस कहावत का उपयोग करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि असली तीसमार खां कौन था? जिसका नाम ही एक कहावत बन गया।
तीसमार खां नाम से जुड़ी तमाम किवदंतियां हैं और अलग-अलग दावे हैं, लेकिन सबसे पुष्ट दावा हैदराबाद के छठवें निजाम मीर महबूब अली खान से जुड़ा है, जो साल 1869 से 1911 तक निजाम रहे। उस समय में शिकार पर पाबंदी नहीं थी। राजा, महाराजा, नवाब और निजाम खुलेआम शिकार किया करते थे और अक्सर अपनी रियासत में कैंप लगाकर कई-कई दिन शिकार करते थे। मीर महबूब अली खान ने साल 1869 के बाद कुर्सी पर रहने तक अपनी रियासत में 30 बाघों का शिकार किया, जो उन दिनों बहुत बहादुरी का काम माना जाता था। इसके बाद महबूब अली खान का नाम बहादुर के प्रतीक के तौर पर ‘तीसमार खां’ यानी 30 जानवरों को मारने वाला पड़ गया।
तीसमार खां की तरह दो और जुमले बहुत प्रसिद्ध हैं, फन्ने खां और तुर्रम खां। फन्ने खां या फन्ने खान मंगोल शासक चंगेज खान के दरबार का एक सिपाही था और उनका निजी सेवक भी। कहा जाता है कि फन्ने खां बड़ी-बड़ी बातें करता था और उसे खुशामद पसंद थी। वहीं कई दस्तावेजों में जिक्र मिलता है कि फन्ने खां बहुत बलशाली और बाहुबली आदमी था। युद्ध में कई सैनिकों को अकेले ढेर कर देता था और अपनी बहादुरी के लिए मशहूर हो गया। इसलिए उसका नाम कहावत के तौर पर उपयोग होने लगा।
तुर्रम खां की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। तुर्रम का असली नाम तुर्रेबाज खां था और वह हैदराबाद के स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने साल 1857 में स्वतंत्रता की पहली क्रांति में भी भाग लिया और अंग्रेजों से लड़े। तुर्रम खान अंग्रेजों के साथ-साथ हैदराबाद के निजाम के भी खिलाफ थे, जो ब्रिटिश हुकूमत के करीबी थे। एक दिन उन्होंने रात के अंधेरे में अंग्रेजों पर हमला कर दिया, हालांकि वो सफल नहीं हो सके। इसके बाद धोखे से उन्हें पकड़ लिया गया और सरेआम हत्या कर दी गई।