गुप्त नवरात्रि के महाविद्याओं के बारे में चल रही शृंखला में देवी काली और देवी तारा के बारे में पिछले कड़ियों में बात हो चुकी है। अब हम जानेंगे तृतीय महाविद्या माता षोडशी के बारे में। त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाने जाने वाली यह देवी अत्यंत सौम्य कोटी की देवी मानी गई हैं। ग्रंथों में इनको ललिता, राज राजेश्वरी, लीलावती, कामाक्षी, कामेश्वरी, ललिताम्बिका, ललितागौरी इत्यादि नामो से भी किया गया है। माता षोडशी को माता सती का तृतीय महाविद्या स्वरूप बताया गया है।
माँ के अंदर 16 कलाएं विद्यमान हैं, जिसके कारण इन्हें षोडशी के नाम से जाना जाता है। और उनके अत्यंत सुंदर और अद्भुत स्वरूप, जोकि तीनों लोकों में अतुलनीय है, के कारण उन्हें त्रिपुर सुंदरी कहकर बुलाया जाता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में से एक त्रिपुरा में माँ का त्रिपुर सुंदरी नामक शक्तिपीठ है जहां माता सती के वस्त्र गिरे थे।
माँ के स्वरूप का वर्णन किया जाए तो वह कोई आसान सी कलम नहीं कर सकती। पर फिर भी ग्रंथों के अनुसार बताया जाता है कि जिस आसान पर माँ विराजमान हैं, उस आसान को भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा, शिव के ही दो अन्य स्वरूपों ने अपने सिर पर उठाए हुए हैं। उस आसान पर भगवान शिव आरामदायक मुद्रा में लेटे हुए हैं, जिनकी नाभि से एक कमल का पुष्प निकला हुआ है, जिसपर माँ त्रिपुर सुंदरी विराजमान हैं।
माँ का वर्ण स्वर्णिम है और उनके शरीर पर लाल रंग का वस्त्र शोभायमान है। उन्होंने कई अद्भुत आभूषण धारण किए हुए हैं, जिससे उनके चेहरे पर एक अद्भुत तेज उभर कर आ रहा है। माँ के केश खुले हुए हैं जिसके ऊपर माँ ने मुकुट धारण किया हुआ है। महादेव के समान ही उनके माथे पर तीसरा नेत्र है। माँ अपने चतुर्भुजी स्वरूप में विराजमान हैं, जिनके एक हाथ में पुष्प रुपी पांच बाण, दूसरे में धनुष, तीसरे में अंकुश व चौथे में फंदा सुशोभित हो रहा है।
माँ की अनन्य भक्ति से भक्त को सुखी वैवाहिक जीवन प्राप्त होता है। इनके भक्त धैर्यवान, मन को अपने वश में रखने वाले होते हैं। महादेव का षोडशी देवी से संबंधित अवतार रुद्रावतार षोडेश्वर महादेव हैं।