Pausha Putrada Ekadashi - एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है। (Wikimedia Commons) 
धर्म

कब है पौष पुत्रदा एकादशी ? जानिए क्यों किया जाता है?

ऐसा माना जाता है कि व्रत कथा का पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं,हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। पौष माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Pausha Putrada Ekadashi - हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। पौष माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।

एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है।एकादशी व्रत के पारण से पहले व्रती को एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि व्रत कथा का पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। साल 2024 में पौष पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी को है।

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 20 जनवरी को संध्याकाल 07 बजकर 26 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 21 जनवरी को संध्याकाल में 07 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 21 जनवरी को पौष पुत्रदा एकादशी मनाई जाएगी। साधक 22 जनवरी को सुबह 07 बजकर 14 मिनट से लेकर 09 बजकर 21 मिनट के मध्य पूजा-पाठ कर पारण कर सकते हैं।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा- पुत्रदा एकादशी की कथा द्वापर युग के महिष्मती नाम के राज्य और उसके राजा से जुड़ी हुई है। (Wikimedia Commons)

एकादशी व्रत कथा

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा- पुत्रदा एकादशी की कथा द्वापर युग के महिष्मती नाम के राज्य और उसके राजा से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिष्मती नाम के राज्य पर महाजित नाम का एक राजा शासन करता था। इस राजा के पास वैभव की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। जिस कारण राजा परेशान रहता था। राजा अपनी प्रजा का भी पूर्ण ध्यान रखता था। संतान न होने के कारण राजा को निराशा घेरने लगी। तब राजा ने ऋषि मुनियों की शरण ली। इसके बाद राजा को एकादशी व्रत के बारे में बताया गया है। राजा ने विधि पूर्वक एकादशी का व्रत पूर्ण किया और नियम से व्रत का पारण किया। इसके बाद रानी ने कुछ दिनों गर्भ धारण किया और नौ माह के बाद एक सुंदर से पुत्र को जन्म दिया। आगे चलकर राजा का पुत्र श्रेष्ठ राजा बना।

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