हिंदू (Hindu) धर्म में बहुत तरह के रीती रिवाज, पर्व आदि मनाएं जाते हैं। इन्हीं में से एक है प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) जिसका हिंदू धर्म में बहुत अधिक मान होता है। यह व्रत भगवान शंकर (Shankar) को समर्पित होता है। इस व्रत में पूरे विधि-विधान से भगवान शंकर की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत में इस व्रत की कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। कथा का पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और वह आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं। आज के इस लेख में हम आपको प्रदोष व्रत की कथा के बारे में बताएंगे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक नगर में एक गरीब ब्राह्मणी (Brahmani) रहती थी। ब्राह्मणी के पति का स्वर्गवास हो चुका था और उसका कोई सहारा नहीं था। इस कारण वह सुबह होते ही अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल जाया करती थी और दिन भर भीख मांग कर अपना और अपने पुत्र का पेट भरती थी। एक दिन वह भीख मांग कर लौट रही थी तो उसे घायल अवस्था में एक लड़का मिला। ब्राह्मणी को उस पर दया आ गई और वह उसे अपने घर ले आई। वह लड़का कोई और नहीं बल्कि विदर्भ का राजकुमार था। उसके राज्यों पर शत्रु सैनिकों ने हमला कर दिया था और उसके पिता को बंदी बना लिया था। इसीलिए वह लड़का मारा मारा फिर रहा था। राजकुमार उस ब्राह्मणी और उसके पुत्र के साथ उसी के घर पर रहने लगा।
इसी बीच एक दिन एक गंधर्व (Gandharva) कन्या अंशुमति (Anshumati) ने राजकुमार को देखा और वह उससे आकर्षित हो गई। अगले दिन वह अपने पिता को राजकुमार से मिलवाने लाई उसके पिता को भी वह राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिन बाद जब अंशुमति के माता और पिता को भगवान शंकर स्वप्न में आएं और उन्हें आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाएं तो उन्होंने वैसा ही किया। वहीं दूसरी ओर ब्राह्मणी प्रदोष व्रत और भगवान शंकर का पूजा पाठ किया करती थी। उसी के प्रभाव से गंधर्वराज की सेना की सहायता लेकर राजकुमार ने अपने राज्य विदर्भ से शत्रु को खदेड़ दिया और अपने पिता के साथ रहने लगा। उसने ब्रह्माणी के पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष व्रत के प्रभाव से ही ब्राह्मणी के दिन बदले और इसी प्रकार भगवान शंकर अपने सभी भक्तों के दिन फेर देते हैं।
(PT)