Raghavyadviyam : राघवयादवीयम् वास्तव में एक संस्कृत स्रत्रोत है। इसे कांचीपुरम के 17वीं सदी के कवि वेंकटाध्वरि ने लिखा है। (Wikimedia Commons)  
धर्म

एक ही ग्रंथ में राम और श्याम दोनों है, ऐसे श्लोक जिनको उल्टा भी पढ़ने पर निकलता है अलग अर्थ

इसे कांचीपुरम के 17वीं सदी के कवि वेंकटाध्वरि ने लिखा है। इसके हर श्लोक को सीधा और उल्टा दोनों तरह से पढ़ा जा सकता है और दोनों तरफ से उसका अलग-अलग अर्थ भी निकलता है।

Sarita Prasad, न्यूज़ग्राम डेस्क

Raghavyadviyam : भारतीय हिंदू संस्कृति में बहुत से साहित्य देखने को मिलता है। सैंकड़ों पात्रों को के एक ही ग्रंथ में समाने वाला महाभारत जैसा दूसरी कृति दुनिया में आज तक कोई नहीं बना पाया। आज हम जिस ग्रंथ की बात करने वाले है, इस अनोखा ग्रंथ की सबसे खास विशेषता यह है कि इसे सीधा पढ़ने पर एक कथा, और उल्टा पढ़ने पर दूसरी कथा के अर्थ निकलते हैं। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है राघवयादवीयम्।

राघवयादवीयम् वास्तव में एक संस्कृत स्रत्रोत है। इसे कांचीपुरम के 17वीं सदी के कवि वेंकटाध्वरि ने लिखा है। इसके हर श्लोक को सीधा और उल्टा दोनों तरह से पढ़ा जा सकता है और दोनों तरफ से उसका अलग-अलग अर्थ भी निकलता है। इस तरह से काव्य के 30 श्लोक असल में 60 श्लोक हैं।

सीधा पढ़ने पर श्लोक का अर्थ

इसी खासियत के कारण यह दुनिया का एकमात्र अनूठा ग्रंथ हो गया है। इसे अनुलोम-विलोम काव्य भी कहा जाता है यानी कि इस ग्रंथ का हर श्लोक उल्टा सीधा अलग-अलग अर्थ बताता है। इस ग्रंथ की रोचक बात यह रामायण और कृष्ण भागवत दोनों का समावेश है। इस ग्रंथ का पहला श्लोक है -

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः।

रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे॥

श्लोक को सीधा पढ़ने पर अर्थ निकलता है कि, “मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं जिनके ह्रदय में सीताजी रहती हैं और जिन्होंने पत्नी सीता के लिए सहयाद्रि की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापस लौटे।

इस ग्रंथ की रोचक बात यह रामायण और कृष्ण भागवत दोनों का समावेश है। (Wikimedia Commons)

एक ही श्लोक का उल्टा अर्थ

वहीं जब यह श्लोक उल्टा पढ़ा जाए तो इस तरह से इसका अर्थ निकलता है -

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः।

यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम्॥

इस श्लोक का अर्थ है, “मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं तथा जिनकी शोभा समस्त रत्नों की शोभा को हर लेती है।

इस प्रकार हर श्लोक वास्तव में दो श्लोक हैं और सीधे पढ़ने से ये रामायण की कहानी कहने वाले 30 श्लोक हैं, वहीं जब उल्टा पढ़ने पर ये अलग 30 श्लोक हो जाते हैं।

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