Vat Savitri Puja: सावित्री के वो प्रश्न जिसपर यमराज ने लौटा दिया था उनका पति  Wikimedia Commons
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Vat Savitri Puja: सावित्री के वो प्रश्न जिसपर यमराज ने लौटा दिया था उनका पति

भक्ति के विषय में यमराज ने दो प्रकार की भक्ति की व्याख्या की है, जिनसे क्रमशः निर्वाण पद और साक्षात श्री हरी रूप का दर्शन प्राप्त होता है।

Prashant Singh

Vat Savitri Puja: सावित्री (Savitri) और सत्यवान (Satyavan) के संबंध में यह कहानी काफी प्रचलित है कि कैसे सावित्री ने यमराज (Yamraj) से वरदान मांग कर उन्हें धर्मसंकट में डाल दिया था, जिसके फल स्वरूप यमराज को उन्हें उनके पति सत्यवान को लौटाना पड़ा। पर आज हम यहाँ जिक्र करेंगे श्रीमद्‌देवीभागवत महापुराण (Shrimad Devi Bhagwat Mahapurana) में वर्णित यम और सावित्री के उस प्रसंग का, जिसमें सावित्री के अद्भुत ज्ञान और प्रश्न से प्रभावित होकर यमराज ने सत्यवान को लौटा दिया और इसके अतिरिक्त ढेरों आशीर्वाद दिए।

राजा अश्वपति की पुत्री और द्युमत्सेन के एक लौते पुत्र सत्यवान की पत्नी सावित्री, पतिव्रता होने के साथ-साथ एक प्रखर विदुषी भी थीं। भगवती सावित्री के उपासना के फलस्वरूप में उनके पिता ने उनको प्राप्त किया था।

विवाह के एक वर्ष बाद एक बार सत्यवान वन में लकड़ी काटने गए। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे गईं, पर वहाँ दैवयोग से सत्यवान की पेड़ से गिर कर मृत्यु हो गई। शोकाकुल सावित्री ने जब देखा कि यमराज उनके पति के सूक्ष्म स्वरूप आत्मा को अपने साथ लिए जा रहे हैं, तब सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दीं।

प्रकृति से परे और कारण का भी कारण, जो सर्वव्यापी निर्गुण ब्रह्म है, उसे ही परमात्मा कहा गया है।

यमराज ने मुड़कर देखा और अचंभित हो बड़े प्रेम से कहने लगे, 'हे सावित्री! तुम शरीर धारण किए कहाँ जा रही हो? तुम्हारे पति की आयु अब समाप्त हो गई है, पर अभी तुम्हारी आयु शेष है। अपने कर्मों का फल भोगने के लिए अब यह सत्यवान यमलोक जा रहा है।'

इस तरह के कथन सुनकर सावित्री ने कर्म के बारे में, हेतु कौन है, देही और देह कौन है, कर्म को करवाने वाला कौन है, ज्ञान और बुद्धि क्या है, प्राण और इंद्रियाँ क्या है, देवता और भोक्ता कौन है, जीव और परमात्मा कौन है, इत्यादि प्रश्न पूछे। इसके बाद सभी प्रश्नों के उचित उत्तर देकर, यमराज ने सावित्री को संतुष्ट किया।

धर्मराज (Dharmraj) बोले, 'वेद में वर्णित आचार, धर्म है और वही कर्म मंगलकारी है। "वेदप्रणिहितो धर्मः कर्म यन्मंगलं परम्।" (श्रीमद्‌देवीभागवत महापुराण) ब्रह्म की भक्ति करने वाला जन्म-मृत्यु, जरा, व्याधि, शोक तथा भय से मुक्त हो जाता है।' भक्ति के विषय में यमराज ने दो प्रकार की भक्ति की व्याख्या की है, जिनसे क्रमशः निर्वाण पद और साक्षात श्री हरी रूप का दर्शन प्राप्त होता है। कर्म, परमात्मा भगवान श्रीहरी तथा परा प्रकृति का स्वरूप हैं। वो परमात्मा ही कर्म के कारणरूप हैं।

विविध विषयों पर प्रकाश डालते हुए धर्मराज ने अंततः कहा, 'जो प्राण तथा देह को धारण करता है, उसे जीव कहा गया है। प्रकृति से परे और कारण का भी कारण, जो सर्वव्यापी निर्गुण ब्रह्म है, उसे ही परमात्मा कहा गया है। "कर्मरूपश्च भगवांपरात्मा प्रकृति: परा।" (श्रीमद्‌देवीभागवत महापुराण) शासत्रानुसार मैंने तुम्हें सभी ज्ञान दे दिया। अब तुम सुखपूर्वक चली जाओ।'

इसके बाद सावित्री ने पुनः प्रश्न किया, 'किस कर्म से मुक्ति होती है, तथा किस कर्म से गुरु के प्रति भक्ति होती है? किन कर्मों का क्या फल होता है? नरक कितने प्रकार के और कौन-कौन से होते हैं?' कर्म आधारित इस तरह के विस्तृत प्रश्नों को सुनकर यमराज अचंभित हो गए और उत्तर देते हुए बोले, 'पुत्री! तुम्हारा ज्ञान अद्भुत है जो बड़े-बड़े विद्वानों, ज्ञानियों, और योगियों से भी बढ़कर है। मैं तुमसे प्रसन्नचित हूँ। मेरा आशीर्वाद है तुम सती सावित्री के नाम से विख्यात हो। इसके अतिरिक्त तुम और जो भी दूसरा वर माँगना चाहो माँग लो; मैं तुम्हें सभी अभिलषित वर दूंगा।'

इस पर सावित्री ने सौ पुत्र और अपने अंधे श्वसुर की नेत्रों की ज्योति और उनके लिए राज्य मांगा। इसके अतिरिक्त सावित्री ने कहा, 'हे प्रभु! अंत में एक लाख वर्ष बीतने के बाद मैं अपने पति सत्यवान के साथ भगवान श्री हरि के धाम चली जाऊँ, ऐसा वर मुझे प्रदान कीजिए।'

यमराज ने प्रसन्नता से कहा, 'हे महासाध्वि! तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण हों।' ऐसा कहकर यमराज ने सावित्री के सभी प्रश्नों के उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट किया और अपने लोक को चले गए।

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