
भारत (India) का पहला आम चुनाव लोकतंत्र की असली शुरुआत थी। यह सिर्फ वोट डालने की प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि एक संदेश था कि आज़ाद भारत अपनी किस्मत खुद लिख सकता है। 1947 में जब आज़ादी मिली, तब हालात बेहद मुश्किल थे, बँटा हुआ देश, विभाजन का दर्द, लाखों शरणार्थियों की समस्या, गरीबी, अशिक्षा और दुनिया की दो महाशक्तियों अमेरिका (America) व सोवियत संघ (Soviet Union) के बीच खड़ा भारत। इन सबके बावजूद 1951-52 में भारत का पहला आम चुनाव (General Elections) हुआ और यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक (Democratic) अभ्यास साबित हुआ।
विभाजन, गरीबी और अशिक्षा के बीच लोकतंत्र का सफर
भारत का पहला आम चुनाव ऐसे वक्त में हुआ जब देश बुरी तरह टूट चुका था। आज़ादी के तुरंत बाद हुए विभाजन से लाखों लोग पाकिस्तान (Pakistan) से भारत (India) आए। हर जगह शरणार्थी कैंप (Refugee Camp), बर्बादी और डर का माहौल था। अर्थव्यवस्था (Economy) बेहद कमज़ोर थी। ज़्यादातर लोग गरीब थे और 80% से ज़्यादा जनता अशिक्षित (Illiterate) थी। लोग पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे, तो सवाल उठा कि वे वोट कैसे देंगे? दुनिया में कई देश जहाँ हालात बेहतर थे, वहाँ लोकतंत्र टिक नहीं पाया, लेकिन भारत ने सबसे बड़े संकट के बीच भी लोकतंत्र का रास्ता चुना। यही भारत के पहले आम चुनाव को ऐतिहासिक बनाता है।
उस दौर में कांग्रेस (Congress) पार्टी सबसे मज़बूत थी। जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) प्रधानमंत्री थे और चाहें तो आसानी से तानाशाही (Dictatorship) स्थापित कर सकते थे। कई देशों में ऐसा हुआ भी था, जहाँ आज़ादी के बाद सबसे बड़ी पार्टी ने लोकतंत्र छोड़कर तानाशाही का रास्ता अपना लिया। लेकिन भारत ने अलग फैसला लिया। नेताओं ने तय किया कि देश का भविष्य सिर्फ लोकतंत्र (Democracy) से ही सुरक्षित रह सकता है। भारत का पहला आम चुनाव इस सोच का सबूत था कि सत्ता जनता की होगी, किसी एक पार्टी या नेता की नहीं।
चुनाव को संभव बनाने वाले लोग और संस्थान
भारत का पहला आम चुनाव बिना मज़बूत नेतृत्व और संस्थागत तैयारी के संभव नहीं था। इस पूरी प्रक्रिया के पीछे सबसे बड़ी भूमिका निभाई संविधान सभा (constitutional Assembly), जिसने हर नागरिक को वोट का अधिकार दिया। सुकुमार सेन (Sukumar Sen), भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त (Election Commissioner), इस चुनाव के असली हीरो थे। उन्होंने चुनाव की पूरी मशीनरी खड़ी की। देशभर में लाखों मतदान केंद्र (Polling Booth) बनाए गए, लाखों अधिकारियों और कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी गई। मतदाता सूची तैयार करना सबसे कठिन काम था। उस समय लगभग 17.3 करोड़ लोगों ने वोट डालने का अधिकार पाया, जिसमें महिलाओं की बड़ी संख्या शामिल थी।
भारत का पहला आम चुनाव इतना आसान नहीं था। न सड़कें थीं, न ढंग का परिवहन। कई जगह बैलगाड़ियों और नावों से बैलेट बॉक्स (Ballet Box) पहुँचाए गए। पहाड़ों और जंगलों में मतदान केंद्र बनाने के लिए कर्मचारियों को कई दिन पैदल चलना पड़ा। लाखों लोगों के नाम पहली बार मतदाता सूची (Voter List) में लिखे गए। जो लोग पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे, उनके लिए अलग-अलग चुनाव चिह्न बनाए गए, ताकि वे पहचान सकें कि किस पार्टी या उम्मीदवार को वोट देना है। ये सब उस दौर की अनोखी सोच और जुगाड़ का हिस्सा था।
लोकतंत्र की जीत और दुनिया को संदेश
1951-52 मै भारत का पहला आम चुनाव (General Assembly Election) पूरी दुनिया के लिए चौंकाने वाला था। अमेरिका (America) और सोवियत संघ (Soviet Union) जैसे महाशक्तियों को भी हैरानी हुई कि एक गरीब और अशिक्षित देश इतनी बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया इतनी सफलतापूर्वक कर सकता है। करीब 45% लोगों ने वोट डाला, जो उस वक्त बहुत बड़ी संख्या थी। चुनाव के बाद दुनिया ने माना कि भारत लोकतंत्र के लिए तैयार है।
निष्कर्ष
भारत का पहला आम चुनाव सिर्फ एक चुनाव नहीं था, यह आज़ाद भारत की असली पहचान था। इतने संकटों, गरीबी, अशिक्षा और विभाजन के बावजूद भारत ने दुनिया को दिखाया कि लोकतंत्र उसकी आत्मा है। भारत का पहला आम चुनाव हमें याद दिलाता है कि हमारी लोकतांत्रिक परंपरा कितनी मज़बूत है और कैसे उस वक्त नेताओं और संस्थानों ने जनता पर भरोसा किया। इसी भरोसे ने भारत को आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना दिया।
(Rh/Eth/BA)