उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में किसान अब आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किसानी के लिए कर रहे हैं। यहां के किसान अब बीज बोने के लिए ड्रोन चलाना सीख रहे हैं। कृषि विज्ञान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के निदेशक रमेश चंद के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम ने हाल ही में खेती के दौरान ड्रोन के उपयोग का प्रदर्शन करने के लिए खुटहन गांव का दौरा किया।
वाराणसी शहर का गगा घाट । ( Wikimedia commons )
चंद ने मीडिया को बताया, "प्रौद्योगिकी किसानों को खेती की लागत को कम करने और उनकी दक्षता बढ़ाने में मदद करेगी।" उन्होंने कहा कि किसान इस प्रयोग से काफी संतुष्ट हैं। उन्होंने कहा कि ड्रोन्स का इस्तेमाल 'राइस-व्हीट क्रॉपिंग सिस्टम' के खेतों में किया जा रहा है, जहां गीली मिट्टी के कारण ट्रैक्टरों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। चंद ने कहा कि चावल और गेहूं की खेती के लिए अलग-अलग मिट्टियों की आवश्यकता होती है।
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चावल को स्थिर पानी की आवश्यकता होती है, तो गेहूं को नमी, हवा और थर्मल रिजाइम के साथ अच्छी तरह से चूर्णित मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके कारण 'राइस-व्हीट क्रॉपिंग सिस्टम' की एक प्रमुख विशेषता एरोबिक से अनएरोबिक और फिर वापस एरोबिक स्थितियों में मिट्टी का वार्षिक रूपांतरण है। उन्होंने कहा कि ड्रोन का उपयोग न केवल समग्र प्रदर्शन को बढ़ा सकता है, बल्कि किसानों को अन्य मिश्रित बाधाओं को हल करने और सटीक कृषि के लिए बहुत सारे लाभ प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन लर्निग (एमएल) और रिमोट सेंसिंग फीचर्स से लैस ड्रोन तकनीक की मांग इसके फायदों की वजह से बढ़ रही है। (आईएएनएस)