भारतीय संस्कृति और इतिहास को युवाओं तक पहुँचाना है आवश्यक। (Wikimedia Commons)  
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सैफई महोत्सव की जगह भव्य दीपोत्सव, क्यों समय लग गया अपनी संस्कृति को समझने में?

Shantanoo Mishra

चंद साल पहले उत्तरप्रदेश में सैफई महोत्सव हुआ करता था, जिसकी गूंज और चमक-धमक चारों ओर नज़र आती थी। यहाँ तक कि 2014 में केवल सैफई महोत्सव में ही 334 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, जिस पर बहुत हंगामा भी हुआ था। उस समय सरकार में थे अखिलेश यादव जिनको उत्तर प्रदेश के लिए सबसे अच्छा नेता बताया गया। किन्तु अब उसी उत्तरप्रदेश में दीपावली के पर्व पर भव्य दीपोत्सव का आयोजन और नवरात्रों में भव्य रामलीला का आयोजन किया जाता है। जिसके उत्साह और भव्यता को देखने के लिए लोग विदेशों से भी आते हैं।

कभी सोचा था कि हरियाणा के कुरुक्षेत्र में गीता महोत्सव का आयोजन किया जाएगा, जिसमे लाखों विद्यार्थी अपने प्रतिभा को दिखाने के लिए एक मंच पर आएंगे। भारतीय संस्कृति और उसको बढ़ावा देने में इतना समय क्यों लग गया? इसके कारण कई हैं किन्तु जवाब देने वाले धर्मनिरपेक्ष होने का ढोंग रच देते हैं। भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना इन सबको एक मानसिकता को थोपने जैसा समझ आता है। गीता का ज्ञान अगर कोई विद्यार्थी पढ़ ले तो उसे हिन्दू मानसिकता से लिप्त बता दिया जाता है। जो कि गलत है क्योंकि ऐसे कई अन्य धर्म, सम्प्रदाय के भी लोग हैं जिन्हे गीता और वेद-पुराणों को पढ़ने और सीखने में मन लगता है। लेकिन केवल एक धर्म पर निशाना साधना उस धर्मनिरपेक्ष तबके के लिए बहुत आसान है।

कुछ समय पहले श्री राम मंदिर के निर्माण का उद्घोष हुआ है। जिस वजह से देश एवं विदेश में रह रहे भारतीय, खासा उत्साहित हैं और लगभग सभी ने निर्माण पूर्ण होने के पश्चात रामलला के दर्शन का मन भी बना लिया है। किन्तु आश्चर्य इस बात का है कि अभी भी राम मंदिर के विषय पर लोगों में मतभेद है, जिसको और बढ़ावा नेताओं के भड़काऊ बयान भी दे रहें हैं। लेकिन, उनका जवाब भी दोनों मोर्चों पर जागरुक जनता दे रही है। एक तो टीवी या कहीं भी इंटरव्यू में और सोशल मीडिया पर। आज देश में युवा क्या सोचता है वह सोशल मीडिया से ही पता चल जाता है। जिसका प्रमाण स्वयं राम जन्मभूमि के फैसले का समय था, जिसमे हर वक्त #ramjanmabhoomi यह हैश-टैग ट्रैंडिंग सूचि में शीर्ष पर रहता था।

आज युवा भी आवाज़ उठाने में पीछे नहीं हैं और कई 'तथाकथित असहिष्णुता' के माहौल में साहस कर के आवाज़ भी उठा रहे हैं। अगर कोई भारत या भारतीय संस्कृति के खिलाफ कहता भी है, तो तुरंत उसे जवाब दे दिया जाता है। या तो ट्रोल के रूप में या फिर ट्रैंडिंग के रूप में।

किन्तु ट्विटर भी हमारी बर्दाश्त की सीमा मापने में लगा हुआ है? कभी भारत के शीर्ष नेताओं का अकॉउंट बंद करके या कभी लद्दाख को चीन की सीमा बताकर। खैर, इस विषय पर भी चर्चा करेंगे। मगर आज के लिए हमे कुछ असरदार कदम उठाने की जरूरत है। जिस से भड़काने वालों पर लगाम लगाई जा सके और भारतीय संस्कृति का विश्वभर में बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार हो सके।

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