कानपुर में जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर देशभर में मानसून की भविष्यवाणी के लिए जाना जाता है। (Pixabay)  
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कानपुर का रहस्यों से भरा जगन्नाथ मंदिर

Tanu Chauhan

भगवान जगन्नाथ का एक ऐसा मंदिर जो उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित है। ओडिशा और देश के अन्य हिस्सों में स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिरों से सबसे अलग कानपुर का यह जगन्नाथ मंदिर है, जिसका आकार गोल गुंबद जैसा है, जो किसी भी दिशा से देखने पर गुंबदाकार ही दिखाई देता है। यह मंदिर मॉनसून की भविष्यवाणी करने के लिए देश भर में प्रसिद्ध है। भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर 'मॉनसून मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना कब और किसने किया यह किसी को ज्ञात नहीं परंतु भगवान जगन्नाथ का यह मॉनसून मंदिर हजारों किसानों को अपने कृषि कार्य को समय पर शुरू करने की सहूलियत प्रदान करता है। इस मंदिर में रहस्यमय तरीके से पत्थर से टपकती जल की बूंदे कहां से आती है यह किसी को नहीं पता परंतु लोग इस चमत्कार को देखने के लिए उत्सुक रहते हैं।

कानपुर में जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर देशभर में मॉनसून की भविष्यवाणी के लिए जाना जाता है, कहा जाता है कि भगवान की प्रतिमा के ऊपर एक चमत्कारी पत्थर लगा हुआ है जहां से जल की बूंदे टपकती हैं पूरे साल सूखे रहने वाले इस पत्र में मॉनसून शुरू होने के 7 से 15 दिन पहले यह चमत्कारी पत्थर बूंदे बरसाने लगता है। हैरानी की बात तो यह है कि जब पूरा इलाका गर्मी से जूझ रहा होता है तब मंदिर के इस पत्थर से जल की बूंदे कहां से टपकती हैं और मॉनसून शुरू होते ही बूंदों का बरसना बंद हो जाता है, जो किसी रहस्य से कम नहीं। इन बूंदों का आकार मॉनसून की गति को दर्शाता है अगर जल की बूंदे आकार में बड़ी हो तो मॉनसून के बेहतर होने का अनुमान लगाए जाते हैं और छोटी बूंद से मॉनसून में कमी को बताती हैं। आज तक कभी भी इस मंदिर की भविष्यवाणी गलत नहीं हुई। प्रदेश में लाखों किसान मौसम विभाग से ज्यादा इस मंदिर पर भरोसा करते हैं।

मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति काले पत्थरों पर तराश कर बनाई गई हैं। यह मंदिर अनेक अविश्वसनीय, अकल्पनीय रहस्यों से भरा हुआ है। हालांकि वैज्ञानिकों द्वारा इस मंदिर के रहस्य को सुलझाने के लिए अनेक प्रयास किए गए परंतु वह इसमें असफल रहे। बस इतना ही पता चल पाया कि मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 11वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर में मौजूद अयागपट्ट के मूल पर कई इतिहासकार इस मंदिर को लगभग 4,000 साल पुराना बताते हैं।

इस मंदिर के निर्माण काल के विषय में इतिहासकारों और पुरातत्वविदों में मतभेद है। गर्भगृह के भीतर और बाहर जो चित्रांकन किए गए हैं, उनके अनुसार इस मंदिर को दूसरी से चौथी शताब्दी का माना जाता है। मंदिर में कुछ ऐसे चीन्ह मौजूद हैं, जिनसे यह पता लगाया गया है कि मंदिर सम्राट हर्षवर्धन के समय का है। कानपुर के इस मॉनसून मंदिर के निर्माण के विषय में वहां के ग्रामीणों का मानना है कि इसका निर्माण कई सहस्त्राब्दियों पहले महाराजा दधीचि द्वारा करवाया गया था और यहां के ग्रामीणों का मत है कि इस मंदिर के सरोवर के किनारे भगवान राम ने अपने पिता महाराज दशरथ का पिंडदान भी किया था, जिसके बाद यह सरोवर रामकुंड के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि देश के अन्य जगन्नाथ मंदिरों की तरह ही इस मंदिर में भी भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा मौजूद हैं। हर साल देश एवं विदेश में आयोजित की जाने वाली रथयात्रा का उत्सव कानपुर के इस मंदिर में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

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