महात्मा गांधी ने कहा था कि ' असली स्वराज ' कुछ लोगों द्वारा अधिकार के अधिग्रहण करने से नहीं आएगा, बल्कि सभी के द्वारा सत्ता का दुरुपयोग होने पर विरोध करने की क्षमता से होगा।
आज हम आपको सूचना का अधिकार की महत्ता के बारे में बताने जा रहे हैं। आपको बता दें कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 (1) ए भारत के नागरिकों को सूचना का अधिकार देता है। सूचना का अधिकार किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक सुरक्षा कवच की तरह काम करता है। यह अधिकार लोकतंत्र के सही अर्थ व उसे सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है। आरटीआई नागरिकों को सरकार व जनता से जुड़े सभी जानकारियों को उपलब्ध कराने में मदद करता है।
सूचना के अधिकार का इतिहास क्या है?
1987 में राजस्थान में कुछ मजदूरों के खराब प्रदर्शन के आरोप में उनका वेतन देने से इंकार कर दिया गया था। अरुणा रॉय द्वारा स्थापित एक कार्यकर्ता समूह "मजदूर किसान शक्ति संगठन" ने इन श्रमिकों के लिए लड़ाई लड़ी और मांग उठाई की उन्हें उचित और समान वेतन दिया जाए। कई बार विरोध के बाद, श्रमिकों ने प्रदर्शन किया, जिससे अधिकारियों के बीच मौजूद भ्रष्टाचार का भी उजागर हुआ। धीरे – धीरे विरोध ने गति पकड़ी, जिसने राष्ट्रीय रूप धारण किया। इसके बाद ही सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम 2002 पारित हुआ, जो 2005 में आरटीआई अधिनियम (Right to Information Act) बन गया।
जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त यह हर जगह लागू है। सही मायनों में देखा जाए तो यह अधिकार हमें राज्य या केंद्र के कार्यालयों और विभागों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार देता है। लेकिन क्या आपको लगता है कि आरटीआई (RTI) के तहत आज हमें सही और सटीक जानकारियां दी जाती है?
आपको बता दें कि समय – समय पर सरकार ने इस अधिनियम में अपने अनुसार परिवर्तन कर इसकी प्रासंगिता को खत्म किया है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था, जिसमें 2005 (RTI) के तहत राजनीतिक दलों को सार्वजनिक प्राधिकरण (Public Authorities) घोषित करने की मांग की गई ताकि उन्हें पारदर्शी और जनता के प्रति जवाबदेह बनाया जा सके। आरटीआई अधिनियम के तहत राजनीतिक दलों को शामिल करने की मांग करने वाले कार्यकर्ताओं का भी तर्क है कि राजनीतिक दलों को जनता द्वारा चुना जाता है। चुनावों में भाग लेकर व सरकार का चुनाव कर वह एक सार्वजनिक कार्य कर रहे हैं। ऐसे में इन दलों को आरटीआई कानून के तहत जवाबदेह होना चाहिए।
इससे पहले 2013 में केंद्र सूचना आयोग द्वारा छह राष्ट्रीय दलों को आरटीआई अधिनियम के तहत लाने का आदेश जारी किया गया था। जिसमें भारतीय जनता पार्टी (BJ,P) कांग्रेस (Congress), बहुजन समाज पार्टी (BSP), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (CPI) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिआ (मार्क्सवादी) (CPM) थी। लेकिन उस समय राजनीतिक दलों द्वारा सीआईसी के आदेश का विरोध किया गया था, देखा जाए तो आज भी यह मामला लंबित है।
राजनीतिक दलों द्वारा आज भी विभिन्न कारणों से इसका विरोध जारी है। इन दलों का कहना है कि आरटीआई अधिनियम के तहत केवल सार्वजनिक प्राधिकरण ही जवाबदेह हैं और राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकरण के तहत नहीं आती है। इन दलों का कहना है कि हम सभी चीजों का खुलासा नहीं कर सकते हैं। भाजपा ने सीआईसी के आदेश का विरोध करते हुए अगस्त 2015 में कहा की राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम (RTI Act) के तहत लाने से उनके अंतरिक कामकाज और राजनीतिक कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा केंद्र ने यह भी कहा की राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी गलत इरादे से आरटीआई आवेदन दायर कर इसका दुरुपयोग कर सकते हैं।
राजनीतिक दलों द्वारा आरटीआईटी के तहत आने का विरोध करने के बाद देश भर से लोगों ने इसके लिए आरटीआई डालीं की राजनीतिक दल आरटीआई के तहत आए। लेकिन अगर 31 जुलाई 2020 तक का डाटा देखें तो करीब 2, 33, 384 अपीलें लंबित पड़े हैं। रिक्त पदों को भी जानबूझ कर भरा नहीं जाता है।
भारत का नागरिक होने के तहत छाया मंत्रिमंडल (Shadow Cabinet India) जनता को जागरूक करना चाहता है कि आज के दौर में किस प्रकार राजनीतिक दलों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। इन दलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी अनदेखा किया जा रहा है। यह अधिकार इन दलों की जवाबदेही को जनता के प्रति सुनिचित करता है। फिर यह बड़ा सवाल है कि आज जनता द्वारा चुनी गई सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होने से क्यों डरती हैं?
सूचना का अधिकार वास्तव में किसी भी लोकतंत्र की जीवन रेखा है, क्योंकि यह नागरिकों को और सशक्त बनाता है। भ्रष्टचार पर रोक लगाता है और सरकारी कार्यालयों में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाता है। आज जनता बड़ी संख्या में सरकार को टैक्स देती है और इन राजनीतिक दलों को यहां से भी छूट दी गई है। जनता की भागीदारी अगर पूर्ण रूप से है तो सरकार अपनी भागीदारी से क्यों भाग रही है?
यह सवाल आज हर नागरिक का राजनीतिक दलों से होना चाहिए की क्यों आज वह आरटीआई (RTI) के तहत आकर अपनी ज्वाबदेही सुनिश्चित नहीं करते हैं? भ्रष्टचार पर अंकुश क्यों नहीं लगाते हैं?
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