सुप्रिया पाठक (Supriya Pathak) एक ऐसा नाम है जिसे भारतीय टेलीविज़न, थिएटर और सिनेमा में अपने अलग अंदाज़, गंभीर अभिनय और चुलबुले किरदारों के लिए जाना जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सुप्रिया कभी एक्ट्रेस बनना ही नहीं चाहती थीं। उनका सपना था डांस में एमए और पीएचडी करना। पढ़ाई और किताबों से उनका लगाव बचपन से ही था।
सुप्रिया का जन्म 7 जनवरी 1961 को मुंबई में हुआ था। वे जानी-मानी अभिनेत्री दीना पाठक की बेटी हैं और उनकी बड़ी बहन हैं मशहूर अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह। लेकिन बचपन में ही सुप्रिया को समझ में आ गया था कि उनके जीवन में माँ की मौजूदगी बहुत सीमित रही है और आगे भी सिमित रहेगी। ज़्यादातर समय वो अपने मामा-मामी के घर पर ही बिताती थीं। वो कहती हैं, की "मेरी मामी ने ही मुझे जीवन का असली अर्थ सिखाया।" क्योकि वो मामी के साथ अधिक समय रहीं हैं।
सपना किताबों का, सफर एक्टिंग का
सुप्रिया बताती हैं कि माँ ने उन्हें दो चीजें दीं जो आज उनके व्यक्तित्व की नींव हैं,पहला खुद कमाकर आत्मनिर्भर बनना और दूसरा है पढ़ना। जब सुप्रिया ने पॉकेट मनी बढ़ाने की बात की तो माँ ने साफ कह दिया, "अगर ज़्यादा पैसे चाहिए तो खुद कमाओ।" उसी समय सुप्रिया ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और समझ गईं कि आत्मनिर्भर होना कितना ज़रूरी है। बचपन में जन्मदिन पर उन्हें सिर्फ किताबें मिलती थीं, जिससे वो नाराज़ हो जाती थीं। लेकिन अब वही किताबें उनके जीवन की सबसे अनमोल पूँजी बन चुकी हैं। वो कहती हैं, “मेरे पास कभी बोरियत की जगह नहीं होती, क्योंकि मेरे पास हमेशा एक किताब होती है।” जो की माँ ने उनको दिया है।
एक्टिंग की शुरुआत : न चाहते हुए भी सुप्रिया का अभिनय की ओर झुकाव
सुप्रिया का अभिनय की ओर झुकाव उनकी माँ की वजह से हुआ। माँ ने एक गुजराती नाटक 'मेना गुर्जरी' किया, जिसमें ‘मेना’ का किरदार निभाने के लिए सुप्रिया को चुना गया। सुप्रिया को तब कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन जब उन्होंने मंच पर परफॉर्म किया, तो उन्हें वही शांति महसूस हुई जो उन्हें बचपन में मंदिर जाकर मिलती थी। उन्हें इस नाटक से काफी तारीफ़ मिली और यही पहला कदम बना उनके एक्टिंग करियर का।
श्याम बेनेगल की 1981 में आई फ़िल्म 'कलयुग' में उन्होंने 'सुभद्रा' का किरदार निभाया। इसके बाद 1983 में फ़िल्म 'बाज़ार' आई, जो उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट बनी। इस फ़िल्म से कई दर्शकों का भावनात्मक जुड़ाव बन गया, यहाँ तक कि उन्हें लव लेटर भी मिलने लगे। एक ख़त के ज़रिए उन्हें महसूस हुआ कि किरदारों की भावनाएं दर्शकों के दिल में कितनी गहराई से उतर जाती हैं। 2002 में टेलीविज़न शो 'खिचड़ी' ने सुप्रिया को एक नई पहचान दी। शो में उन्होंने 'हंसा पारेख' का किरदार निभाया, एक भोली-भाली और मासूम बहू, जिसकी मासूमियत और एकदम अलग सोच दर्शकों को खूब पसंद आई।
वो कहती हैं, "उस समय टीवी पर सास-बहू के झगड़े छा गए थे। लेकिन 'खिचड़ी' में अलग तरह की पारिवारिक कहानी थी, जिसमें मेरा किरदार था अपने पति प्रफुल्ल को दुनिया का सबसे अच्छा आदमी मानना।" उसके बाद सुप्रिया की मुलाक़ात अभिनेता पंकज कपूर से एक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान पंजाब में हुई। वह फ़िल्म तो कभी रिलीज़ नहीं हुई, लेकिन दोनों के बीच प्यार जरूर हो गया। सुप्रिया कहती हैं, “वो फ़िल्म शायद सिर्फ़ हमें मिलवाने के लिए बनी थी।”
उन्होंने अपने रिश्ते के लिए कई बाधाओं को पार किया। माँ की असहमति के बावजूद उन्होंने पंकज कपूर का साथ नहीं छोड़ा। आज दोनों की शादी को लगभग 37 साल हो चुके हैं। सुप्रिया और पंकज कपूर (Pankaj Kapoor) की जब शादी हुई थी उस समय शाहिद कपूर (Shahid Kapoor) बहुत छोटे थे, पंकज कपूर (Pankaj Kapoor) के बेटे शाहिद कपूर (Shahid Kapoor)के साथ सुप्रिया का रिश्ता हमेशा से एक माँ और बेटे जैसा है। जब वो पहली बार शाहिद से मिलीं, वह सिर्फ़ 6 साल के थे। सुप्रिया कहती हैं, “शाहिद, रूहान और सना, ये तीनों सिर्फ़ मेरे बच्चे नहीं, मेरे दोस्त भी हैं। मैं इनसे झगड़ सकती हूं, नाराज़ हो सकती हूं और उतना ही प्यार भी कर सकती हूं।”
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सुप्रिया पाठक (Supriya Pathak) की कहानी किसी फिल्मी या ड्रामा जैसी नहीं है, बल्कि बहुत सच्ची, सरल और ज़मीन से जुड़ी हुई है। उन्होंने कभी शोहरत की चाह में अभिनय नहीं चुना। वो तो बस काम करती रहीं, जिस समय जैसा ज़रूरत पड़े, उन्होंने समय की मांग के अनुसार ही काम किया , और यही उनकी खासियत बन गई। सुप्रिया पाठक (Supriya Pathak) आज भी वही कहती हैं,"मैं कभी एक्ट्रेस नहीं बनना चाहती थी। लेकिन ज़िंदगी ने मुझे वो बना दिया, जो शायद मैं असल में थी, ज़िंदगी ने मुझे एक कलाकार बना दिया।"
निष्कर्ष
सुप्रिया पाठक (Supriya Pathak) की ज़िंदगी हमें यह सिखाती है कि ज़िंदगी की दिशा हमेशा हमारी योजना के अनुसार नहीं चलती। लेकिन अगर दिल साफ हो, काम के प्रति समर्पण हो और रिश्तों में सच्चाई हो, तो हर मोड़ पर रोशनी मिलती है। सुप्रिया एक ऐसी कलाकार हैं जिन्होंने परदे पर हँसाया भी है, रुलाया भी और सिखाया भी है, उनका मानना है की सादगी सबसे बड़ी खूबसूरती होती है। [Rh/PS]