बॉलीवुड की दुनिया जितनी चकाचौंध से भरी है, उतनी ही रहस्यों से भी। [SORA AI] 
मनोरंजन

कहानी बॉलीवुड के उस पिता की, जिसने अपने बेटे को नाम तो दिया पर ‘नाजायज’ शब्द के साथ!

बॉलीवुड की दुनिया जितनी चकाचौंध से भरी है, उतनी ही रहस्यों से भी। पर्दे पर जो सितारे चमकते हैं, उनके पीछे कई बार एक गहरी और दर्दनाक कहानी छुपी होती है। ऐसी ही एक सच्चाई है भारतीय सिनेमा के मशहूर डायरेक्टर नानाभाई भट्ट (Nanabhai Bhatt) की, जिन्होंने हिंदी सिनेमा को तो अनगिनत फिल्में दीं, लेकिन कई कारणों से आज भी उन्हें बदनामी झेलनी पड़ती है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

बॉलीवुड की दुनिया जितनी चकाचौंध से भरी है, उतनी ही रहस्यों से भी। पर्दे पर जो सितारे चमकते हैं, उनके पीछे कई बार एक गहरी और दर्दनाक कहानी छुपी होती है। ऐसी ही एक सच्चाई है भारतीय सिनेमा के मशहूर डायरेक्टर नानाभाई भट्ट (Nanabhai Bhatt) की, जिन्होंने हिंदी सिनेमा को तो अनगिनत फिल्में दीं, लेकिन कई कारणों से आज भी उन्हें बदनामी झेलनी पड़ती है। वहीं जाने-माने निर्माता और निर्देशक महेश भट्ट (Mahesh Bhatt) ने एक से एक बढ़कर ब्लॉकबस्टर, सुपरहिट फिल्में दीं, लेकिन, उनकी अपनी निजी जिंदगी ऐसी रही, जिसपर एक फिल्म बन सकती है।

नानाभाई भट्ट एक ब्राह्मण थें, साथ ही स्वतंत्र सेनानी भी [X]

उनका एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तो दुनिया जानती हैं, लेकिन, क्या उनके पिता को आप जानते हैं? उनकी मां कौन थीं? क्यों अपनी मां को लेकर उन्हें हमेशा मलाल रहा? क्या आप जानते हैं कि उनका बचपन काफी मुश्किलों में गुजरा और उन्हें अक्सर ‘नाजायज बच्चे’ कहकर चिढ़ाया जाता था।

नानाभाई भट्ट: एक सफल लेकिन रहस्यमयी व्यक्तित्व

नानाभाई भट्ट (Nanabhai Bhatt), जिनका असली नाम यशवंत भट्ट था। नानाभाई भट्ट एक ब्राह्मण थें और उन्होंने अपने जीवन में 100 से ज्यादा फिल्में बनाई हैं। 1940 से 1970 के दशक तक हिंदी और गुजराती फिल्मों के मशहूर निर्माता-निर्देशक रहे। खासतौर पर धार्मिक और सामाजिक फिल्मों के लिए पहचाने जाने वाले नानाभाई ने अपने करियर में हनुमान पाहिले (1939), श्री गणेश महिमा (1950), हनुमान विजय (1974) जैसी कई हिट फिल्में दीं।

Mr X a film by nanabhai bhatt [X]

बॉलीवुड में उनकी पहचान एक मेहनती और कुशल फिल्मकार की थी, लेकिन निजी जीवन में उन्होंने अपने रिश्तों को पर्दे के पीछे ही रखा। सबसे बड़ा रहस्य था उनका दूसरा परिवार, वो परिवार जिसे उन्होंने कभी दुनिया के सामने खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया।

एक रिश्ता जो कभी दुनिया के सामने नहीं आया

नानाभाई भट्ट (Nanabhai Bhatt) की शादी पहले से हो चुकी थी और उनके चार बच्चे थे। लेकिन इसके बावजूद, वे मशहूर गुजराती एक्ट्रेस शिरीन मोहम्मद अली के करीब आए। शिरीन एक मुस्लिम अभिनेत्री थीं और दोनों के बीच गहरा रिश्ता बना। इस रिश्ते से जन्म हुआ महेश भट्ट का हां, वही महेश भट्ट, जिन्होंने आगे चलकर 'सारांश', 'आशिकी', 'जख्म', 'राज़', 'जिस्म' जैसी चर्चित फिल्में बनाई और एक नई सोच की शुरुआत की। लेकिन उस समय, महेश भट्ट एक ऐसे बच्चे के रूप में बड़े हो रहे थे, जिसे पिता का नाम तो मिला लेकिन समाज में जगह नहीं।

महेश भट्ट एक ऐसे बच्चे के रूप में बड़े हो रहे थे, जिसे पिता का नाम तो मिला लेकिन समाज में जगह नहीं। [X]

नानाभाई और शिरीन की वजह से महेश भट्ट को ‘नाजायज औलाद’ भी कहा जा चुका है। महेश भट्ट ने बताया कि उन्हें कभी पिता का प्यार नसीब नहीं हुआ। पारिवारिक क्लेश की वजह से नानाभाई दो फैमिली के बीच बंट कर रह गए थे। महेश को उनकी मां शीरीन ने ही पाला। महेश को इस बात का भी मलाल है कि उनकी मां को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली और साल 1998 में उनकी मां का देहांत हो गया था।

"हम उनके बेटे तो थे... लेकिन उनके परिवार का हिस्सा नहीं!"

महेश भट्ट (Mahesh Bhatt) ने कई इंटरव्यूज़ में खुलकर बताया कि उन्हें अपने पिता से प्यार तो मिला, लेकिन समाज में मान्यता नहीं। वो कहते हैं,

"मेरे पिता हफ्ते में एक-दो बार मिलते थे। वो प्यार करते थे, लेकिन समाज के डर से हमें कभी खुलकर अपनाया नहीं।"

महेश बताते हैं कि कैसे वो हमेशा अपने दोस्तों से अपने पिता के बारे में झूठ बोलते थे। वो कहते हैं:

"मेरे दोस्त पूछते थे कि तुम्हारे पापा क्या करते हैं, तो मैं कहता था – बिज़नेस करते हैं। क्योंकि मैं कह नहीं सकता था कि मेरे पापा तो डायरेक्टर हैं, पर मेरे साथ नहीं रहते।"

जब कब्र में लेटी पत्नी के मांग में नानाभाई ने भरा सिंदूर

महेश भट्ट (Mahesh Bhatt) बताते हैं कि उनकी मां और नानाभाई की शादी नहीं हुई थी और पिता ने भी उन्हें समाज के सामने कभी नहीं स्वीकारा था। जब महेश भट्ट की मां का देहांत हुआ, तो उनकी आखिरी इच्छा हिंदू परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार की नहीं बल्कि दफन करने की थी। अंतिम संस्कार के लिए जब नानाभाई भट्ट वहां पहुंचे तो उन्होंने पहली बार उनकी मांग में सिंदूर लगाया था। यह देखकर महेश भट्ट हैरान हो गए थे।

महेश भट्ट बताते हैं कि उनकी मां और नानाभाई की शादी नहीं हुई थी [X]

उन्होंने कहा, ‘मुझे याद है कि जब वह मर गई और मेरे पिता अपनी पत्नी के साथ आए, उस समय उन्होंने उसकी मांग में सिंदूर लगाया और मैंने कहा, ‘टू लिटिल टू लेट’. इसने मुझे तोड़ दिया। वह हमेशा सार्वजनिक रूप से उसे स्वीकार करते हुए उसकी एक तस्वीर चाहती थी।

आख़िरी दिनों में अंधे हो गए थे नानाभाई भट्ट

नानाभाई भट्ट (Nanabhai Bhatt) ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष अकेलेपन में गुजारे। वे धीरे-धीरे अंधे हो गए थे, और सबसे दिल तोड़ने वाली बात यह है कि जब वे अंतिम समय में थे, तब वो महेश भट्ट को पहचान भी नहीं पाए थे। महेश उस समय उनसे मिलने गए, पर उनके पिता की आँखों में रोशनी नहीं थी और रिश्ते में पहचान खो चुकी थी। यह एक गहरी चुभन थी, एक बेटा, जो हमेशा अपने पिता की पहचान चाहता था, और एक पिता, जो उसे अंत तक समाज के डर से खुलकर अपना नहीं सका।

नानाभाई भट्ट ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष अकेलेपन में गुजारे। [X]

पिता का नाम, पर अपनापन नहीं

महेश भट्ट का जीवन अपने पिता की परछाई में ही बीता। उन्होंने अपनी फिल्म 'जख्म' में उस दर्द को बयां किया, जो उन्होंने बचपन में सहा था। एक मुस्लिम माँ, एक हिंदू पिता और एक अस्वीकारा हुआ रिश्ता। महेश भट्ट ने कहा था –

"प्यार मिला, पर सुरक्षा नहीं। समाज का डर इतना हावी था कि मेरे पिता खुद ही पीछे हट गए।"

उनका यह अनुभव उन्हें बतौर फिल्मकार और इंसान गहराई देने का काम करता रहा, और शायद यही कारण है कि उनकी फिल्मों में अक्सर असहज रिश्तों की झलक देखने को मिलती है।

नानाभाई भट्ट का जीवन बताता है कि प्रसिद्धि, पैसा और शोहरत सब कुछ नहीं होता। [X]

यह भी पढ़ें

नानाभाई भट्ट (Nanabhai Bhatt) का जीवन बताता है कि प्रसिद्धि, पैसा और शोहरत सब कुछ नहीं होता। अगर कोई चीज सबसे बड़ी है, तो वो है अपनेपन का अहसास। महेश भट्ट आज एक सफल फिल्मकार हैं, लेकिन उनके जीवन का वो अधूरा हिस्सा हमेशा नानाभाई भट्ट के नाम से जुड़ा रहेगा। एक पिता, जो बेटे के जीवन में तो था, पर उसके साथ नहीं। [Rh/SP]

विंस्टन चर्चिल: युद्ध का हीरो या भारत का भूखा कातिल ?

डॉक्टर डेथ: Nishant Bharihoke की किताब से सामने आया गुड़गांव का गुप्त मेडिकल स्कैंडल!

हिंदू मंदिर के लिए बौद्ध देशों में हो रही है लड़ाई! जानें क्यों लड़ रहें है थाईलैंड और कंबोडिया?

कारगिल विजय दिवस: शौर्य और बलिदान की गाथा

साज़िश, सत्ता और संतुलन: कैसे चंद्रशेखर को दरकिनार कर वीपी सिंह बने प्रधानमंत्री