न्यूज़ग्राम हिंदी: सनातन धर्म में मनुस्मृति के भाग में लिखा गया है ‘धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥’ जिसका अर्थ है जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म ( Hindu Dharma ) की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है। इसलिए मरा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी नहीं करना चाहिए।
हिन्दू धर्म के विषय में लिखने वाली प्रख्यात लेखिका मारिया वर्थ ( Maria Wirth ) ने लिखा है कि 'मैं वैदिक ज्ञान या सनातन धर्म को ब्रह्मांड का वास्तविक सत्य, सबसे प्राचीन और पूर्ण ज्ञान मानती हूं।' इसके साथ वह कहती हैं कि आज इसे अपर्याप्त रूप से 'हिंदू धर्म' कहा जाता है। जिसे एक सिद्धांत या संप्रदाय के रूप में देखा जाता है, जबकि हिंदू धर्म इसके बिल्कुल विपरीत है।
वहीं ईसाई धर्म और इस्लाम ( Christianity and Islam ) ने अपने सिद्धांत को व्यक्तिगत विवेक से ऊपर रखा है। धार्मिक विश्वास प्रणाली, जो बाद में समय में आई, या तो सीमाएं हैं या विकृतियां हैं। हिंदू धर्म की शाखाएं, बौद्ध धर्म की तरह, ज्ञान के विशाल महासागर की सीमाएं हैं, क्योंकि वे अनुयायी से केवल एक ऋषि या ग्रंथों के एक समूह के साथ पहचान करने की मांग करते हैं।
मारिया वर्थ की यह बात इसलिए भी तर्कयुक्त है क्योंकि सनातन धर्म में कहा गया है भगवान से जुड़ने के कई मार्ग है किन्तु इस्लाम एवं ईसाई धर्म में यह बताया गया है कि भगवान एक है और न मानने वाले या तो काफिर या फिर नॉन कैथलिक हैं।
मारिया ( Maria Wirth ) लिखती हैं कि 'हिंदू धर्म में, यह मायने रखता है कि क्या कहा जाता है और क्या यह समझ में आता है, किसने कहा है उसका भी महत्व है। फिर भी ईसाई धर्म और इस्लाम में यह केवल किसने कहा है इसको तवज्जो दी जाती है। इन दोनों धर्म के संस्थापकों ने जो कहा, उसकी जांच नहीं की जानी चाहिए बल्कि उसपर विश्वास किया जाना चाहिए।'
इस्लाम में 'जिहाद' शब्द का उल्लेख है और ईसाई धर्म में धर्मांतरण को जोर दिया गया है। जबकि हिन्दू धर्म में 'वसुधैव कुटुंबकम' का पालन किया गया है। कई इस्लामिक धर्मगुरु जो देश छोड़कर और जो देश में रहकर नफरत फैला रहें केवल यही कहते हैं कि हिन्दुओं से बड़ा काफिर और कोई नहीं है। और नफरत की भावना को इस हद लेकर जा रहे हैं कि वो नवयुवकों को आतंक फैलाने या लव जिहाद से जघन्य अपराध को करने के लिए उकसा रहे हैं। जबकि सनातन धर्म में ऋषि-मुनियों ने यह कहा है कि 'अथाहिंसा क्षमा सत्यं ह्रीश्रद्धेन्द्रिय संयमाः। दानमिज्या तपो ध्यानं दशकं धर्म साधनम् ॥' अर्थात अहिंसा, क्षमा, सत्य, लज्जा, श्रद्धा, इंद्रियसंयम, दान, यज्ञ, तप और ध्यान – ये दस धर्म के साधन है।
मारिया वर्थ लिखती हैं " हिन्दू धर्म में ऋषियों की अंतर्दृष्टि सामान्य नहीं थी। उन्होंने ब्रह्मांडीय जागरूकता में जो कुछ "देखा" था, उसे साझा किया या दूसरे शब्दों में, वेदों में विस्तृत किया। माना यह भी जाता है कि ज्ञान ब्रह्मांड के शुरुआत से है। इसके विपरीत, पश्चिमी इतिहासकारों का दावा करते हैं कि मनुष्य हजारों साल पहले आदिम थे। वेदों का ज्ञान देने वाले महान संत निश्चित रूप से अधिक उन्नत थे, और मैं चाहती थी कि भारतीय इतिहासकार अपने विरासत में प्राप्त ज्ञान के साथ खड़े होने का साहस रखते।'