यूपीएससी पर भरोसा AI Generated
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यूपीएससी पर भरोसा: 1999 की एक घटना जो बाकी परीक्षा संस्थानों को सबक देती है

1999 में एक उम्मीदवार की गलत अंकतालिका सुधारकर यूपीएससी ने न केवल उसका करियर बचाया, बल्कि लाखों छात्रों का भरोसा भी मज़बूत किया। आज जब अन्य परीक्षाओं में पेपर लीक और रद्दीकरण की घटनाएँ आम हो गई हैं, तो सवाल उठता है, क्या सभी संस्थानों को यूपीएससी से सीख नहीं लेनी चाहिए?

न्यूज़ग्राम डेस्क

1999 में पहली बार यूपीएससी (UPSC) का परिणाम इंटरनेट पर घोषित किया गया। लाखों अभ्यर्थी साइबर कैफ़े जाकर अपनी किस्मत जाँच रहे थे। इन्हीं में एक उम्मीदवार थे आशुतोष अग्निहोत्री (Ashutosh Agnihotri), जिनकी अखिल भारतीय रैंक (All India Rank) 277 आई। यह एक सम्मानजनक रैंक थी, लेकिन आईएएस (IAS) सेवा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। उन्होंने इसकी ट्रेनिंग लेनी शुरू की, लेकिन कुछ ही दिनों बाद जब उन्हें परिणाम पत्र मिली तो वे हैरान रह गए।

सभी विषयों में उनके अंक अच्छे थे, 300 में से 160–170 तक, लेकिन वैकल्पिक विषय में उन्हें केवल 70 अंक दिए गए थे। यह अंतर इतना असामान्य था कि उन्हें संदेह हुआ कि कहीं कोई गलती हुई है। उन्होंने हार मानने के बजाय यूपीएससी (UPSC) के अध्यक्ष (Chairperson) को एक हस्तलिखित पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने शालीनता से अपनी समस्या बताई।

कुछ समय बाद अखबारों में खबर आई कि रिज़ल्ट में गलती हुई है। करीब एक महीने बाद उनकी मार्कशीट ठीक कर दी गई। पहले उनके वैकल्पिक विषय (Optional) में 70 नंबर लिखे थे, लेकिन असली नंबर 171 थे। इस सुधार से उनकी रैंक बदलके 26 हो गई और उन्हें आईएएस (IAS) का पद मिल गया

वर्षों बाद जब उन्होंने उस समय के यूपीएससी (UPSC) अध्यक्ष से मुलाक़ात की तो उन्होंने कहा कि: “संस्थाएँ विश्वास पर चलती हैं। अगर हम यह गलती न सुधारते, तो लाखों छात्र यूपीएससी पर भरोसा करना बंद कर देते। एक उम्मीदवार का परिणाम सुधारना केवल उसके लिए नहीं था, बल्कि पूरे तंत्र की विश्वसनीयता के लिए आवश्यक था। यही वजह है कि आज भी यूपीएससी पर भरोसा कायम है।

अन्य संस्थानों की स्थिति

जब यूपीएससी (UPSC) की इस पारदर्शिता को हम अन्य परीक्षा संस्थानों से तुलना करते हैं, तो तस्वीर निराशाजनक हो जाती है। हाल के वर्षों में शिक्षक भर्ती परीक्षाओं (Teacher Recruitment Exam) से लेकर रेलवे (Railway), राज्य लोक सेवा आयोग (State Public Service Commission) और यहाँ तक कि राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं तक में पेपर लीक (Paper Leak), तकनीकी गड़बड़ियाँ, स्थगन और रद्दीकरण (Cancellation) की घटनाएँ लगातार सामने आई हैं।

छात्र महीनों–सालों तक मेहनत करते हैं और अंत में पता चलता है कि प्रश्न पत्र (Question Paper) सोशल मीडिया (Social Media) पर पहले ही लीक हो चुका था, या पूरी भर्ती प्रक्रिया रद्द कर दी गई। यह केवल परीक्षा की विफलता नहीं है, बल्कि लाखों युवाओं के विश्वास के साथ किया गया एक अन्याय है।

अन्य संस्थानों की स्थिति

zzzभरोसे का महत्व

परीक्षा केवल ज्ञान का आकलन नहीं है, यह राज्य और युवाओं के बीच ये समाज और लोगों के बीच किया गया वादा है। युवा यह मानकर तैयारी करते हैं कि उन्हें निष्पक्ष मौका मिलेगा। जब यह भरोसा टूटता है, तो केवल एक परीक्षा नहीं बल्कि पूरा सिस्टम सवालों के घेरे में आ जाता है।

1999 की यूपीएससी (UPSC) की घटना हमें याद दिलाती है कि संस्थानों की उत्तमता से नहीं बल्कि पारदर्शिता (Trasparency) और जवाबदेही से बनती है।

सुधार

यदि अन्य परीक्षा संस्थान छात्रों का विश्वास वापस पाना चाहते हैं, तो उन्हें यूपीएससी (UPSC) से सीख लेनी होगी। मार्कशीट, कट-ऑफ और चयन सूची जारी होनी चाहिए। अगर कोई गलती हो जाए, तो उसे तुरंत मानकर ठीक करना चाहिए। परीक्षा का टाइम-टेबल सही और भरोसेमंद होना चाहिए। प्रश्नपत्र पूरी तरह सुरक्षित रखा जाए ताकि वह चोरी या लीक न हो सके। साथ ही, छात्रों की शिकायत सुनने और हल करने के लिए एक अलग व्यवस्था या सवतंत्र संस्था भी होनी चाहिए।

1999 की वह घटना

निष्कर्ष

1999 की वह घटना केवल एक उम्मीदवार की कहानी नहीं है। यह इस बात का सबूत है कि यूपीएससी पर भरोसा क्यों कायम है। जब एक संस्था अपनी गलती स्वीकार कर उसे सुधारती है, तो वह न केवल एक करियर बचाती है बल्कि पूरे समाज और छात्रों का विश्वास उस संस्था पर वापिस कायम करती है।

आज ज़रूरत है कि देश के अन्य परीक्षा संस्थान भी यही सबक सीखें। क्योंकि अंततः परीक्षा केवल करियर तय नहीं करती, वह यह भी तय करती है कि हमारे युवा अपने संस्थानों पर कितना भरोसा करते हैं। (Rh/BA)

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