इस समय देश में कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं बाढ़ की वजह से तबाही छाई हुई है। बाढ़ और सुनामी के वक्त में हमारे देश के आपदा प्रबंधन विभाग का महत्वपूर्ण योगदान बढ़ जाता है। आज हम संक्षिप्त में जानेंगे भारत के आपदा प्रबंधन (Indian Disaster Management) के बारे में।
1999 में जब सूपर चक्रवात (Super Cyclone) ने ओड़िसा के तट को छूते हुए, राज्य के अंदर प्रवेश करके तबाही मचाई और सरकारी तंत्र इसके आगे मजबूर रह गया, तब यह वैश्विक स्तर पर सबसे ख़राब आपदा प्रबंधन का अध्ययन बना। पर यही स्थति जब 2013 में फैलिन चक्रवात (Cyclone Phailin) ने उत्पन्न की तब सरकारी तंत्र के सूझ-बूझ द्वारा लिए गए कदम वैश्विक स्तर पर सबसे अच्छा आपदा प्रबंधन का अध्ययन बना। अतः केवल चक्रवात ही नहीं, ऐसी कोई भी प्राकृतिक दुर्घटना जो मनुष्य के जीवन को तहस-नहस करके उसके अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगा दे वह प्राकृतिक आपदा कहलाती है और सरकारी तंत्र तथा आम जन द्वारा इसके प्रभाव को कम करने के निरंतर प्रयास को आपदा प्रबंधन के रूप में जाना जाता है। आपदा के लिए यह कभी महत्त्वपूर्ण नहीं रहा कि पूर्व में कितने विकास हुए बल्कि यह तो आने वाली कई शताब्दियों के विकास पर भी प्रतिबन्ध लगा देती है।
प्राकृतिक आपदा (Disaster) के लिए आतंरिक तथा बाह्य कारक, विशेष रूप से ज़िम्मेदार होते हैं जोकि वर्तमान के प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुन ह्रास से उत्पन्न असंतुलन के रूप में प्रकट होता है। आज मनुष्य के निजी स्वार्थ ने जो वनों, मैदानों, पहाड़ों, खनिज पदार्थों, आदि का ह्रास किया है, उसी का यह भयानक परिणाम है कि उसे नित तूफान, चक्रवात, बाढ़, सूखा, भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी, भूस्खलन इत्यादि प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। ये आपदाएं भले ही थोड़े समय के लिए आती हों पर मकानों, परिसरों, शहरों को नष्ट करते हुए बड़ी मात्रा में जान-माल को नुक्सान पहुंचाती हैं।
भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA), जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, केंद्रीय जल आयोग आदि की स्थापना की। वर्तमान में प्रधानमंत्री का 10 सूत्रीय आपदा नियंत्रण कार्यक्रम और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन, प्रमुख रूप से कार्य कर रहे हैं। इतना ही नहीं सतत विकास 17 लक्ष्यों की सूची में लक्ष्य संख्या 12 तथा 13 में भी प्रभावी आपदा प्रबंधन की बात कही गयी है। संयुक्त राष्ट्र ने भी इस समस्या पर विशेष ध्यान देते हुए 1989 में 1990 से 1999 तक को अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक विपदा न्यूनीकरण दशक घोषित कर दिया और इसी क्रम में इसका पहला सम्मलेन 1994 में योकोहामा में संपन्न हुआ। 2005 में दूसरा सम्मलेन ह्योगो में तथा 2015 में तीसरा सम्मलेन सेंदाई में हुआ, जहाँ प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण हेतु सेंदाइ फ्रेमवर्क (2015-2030), जोकि 15 वर्षों के लिये स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी समझौता है, को अपनाया गया, जिसके तहत आपदा जोखिम को कम करने के लिये राज्य की भूमिका को प्राथमिक माना जाता है, लेकिन यह जिम्मेदारी अन्य हितधारकों समेत स्थानीय सरकार और निजी क्षेत्र के साथ साझा की जानी चाहिए। प्रतिवर्ष 13 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि केवल सरकार ही नहीं अपितु सभी लोगों को इसके प्रति सचेत होते हुए प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक उपयोग से बचना चाहिए और साथ ही इसके समुचित नियोजन के लिए ज़्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाने चाहिए। हमारे संगठित प्रबंधन द्वारा ही हम इन आपदाओं को कम कर सकते हैं।