अक्सर एक सवाल उठता है: क्या द्वितीय विश्व युद्ध इस विभाजन (Division) के लिए जिम्मेदार था? इसका जवाब इतना सीधा नहीं है क्युकि विभाजन के लिए कोई एक व्यक्ति या घटना जिम्मेदार नहीं थी। यह लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मतभेदों का परिणाम था, जिसे कुछ निर्णायक घटनाओं ने अंतिम रूप दिया। जिस में द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) को इसका कारण बताया जा सकता है क्यूकि लम्बे समाये से चलते आ रहे युद्ध ने ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर दीं जिसने इस विभाजन की प्रक्रिया को अपरिवर्तनीय (Irreversible) और तीव्र बना दिया।
विभाजन के मुख्य कारण
अंग्रेज़ों की 'फूट डालो और राज करो' (Divide and Rule) की नीति ने हिंदू और मुसलमानों के बीच की खाई को जान-बूझकर चौड़ा किया था। सर सैयद अहमद खान जैसे नेताओं ने मुसलमानों के लिए अलग पहचान की बात शुरू की। बाद में, मुहम्मद इकबाल और फिर मुहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) ने इस विचार को और मजबूत किया। जिन्ना ने 1940 के लाहौर अधिवेशन में स्पष्ट रूप से कहा कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और उनके लिए अलग-अलग मातृभूमि (पाकिस्तान) होनी चाहिए।
द्वितीय विश्वयुद्ध: वह तूफान जिसने सदियों पुराने पेड़ की जड़ें हिला कर रख दी
द्वितीय विश्वयुद्ध (Second World War) ने ब्रिटेन की कमर तोड़ दी। अब वह भारत जैसे बड़े देश पर शासन करने की स्थिति में नहीं था। उसे जल्दी थी- जल्द से जल्द भारत छोड़कर जाने की। लेकिन वह एक मज़बूत, एकजुट भारत को छोड़ने से उन्हें डर था कि वह सोवियत संघ के प्रभाव में आ सकता है। इसलिए, उन्होंने ऐसा रास्ता चुना जिससे भारत विभाजित हो और कमजोर पड़े।
जब 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' (Quit India Movement) के बाद अंग्रेजों ने कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं को जेल में ठूंस दिया था। तो इसका मतलब यह हुआ कि युद्ध के सबसे अहम वर्षों (1942-45) में जब राजनीतिक बातचीत होनी चाहिए थी, कांग्रेस का कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं था। इस खालीपन का फायदा उठा कर मुस्लिम लीग ने अपना प्रभाव बढ़ाया और खुद को मुसलमानों का एकमात्र नेता साबित कर दिया।
फिर आया 1946 का चुनाव और 'सीधी कार्रवाई' (Direct Action) का खौफनाक दिन जब युद्ध के बाद हुए चुनावों में मुस्लिम लीग ने मुस्लिम सीटों पर शानदार जीत दर्ज कर खुद को और मज़बूत कर लिया। इस जनादेश के बल पर जिन्ना ने अपनी मांगों पर अड़े रहे। जुलाई 1946 में जब उन्हें लगा कि कैबिनेट मिशन योजना से पाकिस्तान का सपना टूट रहा है, तो उन्होंने 16 अगस्त को 'सीधी कार्रवाई दिवस' मनाने का ऐलान कर दिया। उस दिन कलकत्ता में जो साम्प्रदायिक नरसंहार हुआ, उसने साबित कर दिया कि अब इस दंगों की आग में झुलसकर ही विभाजन होगा। युद्ध के बाद की अराजकता ने इस हिंसा को और हवा दी।
निष्कर्ष
भारत-पाकिस्तान (India–Pakistan) का विभाजन सिर्फ एक भूगोल का टुकड़ा होने भर की घटना नहीं थी। यह एक सभ्यता की स्मृति और मानवीय रिश्तों का विभाजन था। इस त्रासदी के लिए कोई एक 'विलेन' नहीं था, बल्कि यह एक ऐतिहासिक महत्वाकांक्षी राजनीति और साम्राज्यवादी सत्ता की कुटिल चालों का घातक मिलाव था।
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द्वितीय विश्वयुद्ध ने इस परिघटना में एक 'गेम-चेंजर' का रोल निभाया था। उसने ब्रिटिश साम्राज्य को इतना दुर्बल कर दिया कि उनकी नीति 'फूट डालो और राज करो' से बदलकर 'फूट डालो और भागो' हो गई थी। उनकी इस जल्दबाजी ने एक ऐसी अराजकता को जन्म दिया जिसकी कीमत आम लोगों ने अपना खून, अपना घर और अपना वतन देकर चुकाई थी।
आज, दशकों बाद भी, हमारे विभाजन के सामूहिक चेतना में यह एक गहरे घाव की तरह है। शायद इसका सबसे बड़ा सत्य यही है कि यह विभाजन रेखा नक्शे पर तो खिंच गई, लेकिन यह कई अनगिनत दिलों पर भी अंकित हो गई, जो एक अविभाज्य इतिहास (Indivisible History) की निशानी हैं। आज का सबसे बड़ा सवाल यह नहीं है कि यह हुआ क्यों, बल्कि यह होना चाहिए की हमने इस दर्द से क्या सीखा और क्या हम भविष्य में कभी आने वाली ऐसी त्रासदियों को होने से रोकने के लिए सक्षम है ? [RH/SS]