Tattoos : जो लड़की गुदना नहीं गुदवाती थी उसकी शादी नहीं होती थी। (Wikimedia Commons) 
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पहले टैटू से ही किया जाता था पहचान, हजारों साल पुरानी है ये परंपरा

न्यूज़ग्राम डेस्क

Tattoos : शरीर पर टैटू बनवाने का चलन कई सालों पुराना है। लेकिन इसकी शुरुआत कब हुई ये खोज का विषय है। टैटू बनवाने का चलन धीरे-धीरे फैशन बनकर दुनियाभर पर छाने लगा। खास कर पश्चिमी देशों में इसे आवश्यक फैशन का एक हिस्सा माना जाता है, जिसमें लोग शरीर के अधिकतर हिस्से को टैटू के इंक से रंगा लेते हैं। भारत की बात करे तो पिछले कुछ वर्षों में यहां भी यह फैशन तेजी से बढ़ने लगा है। आइए जानते हैं टैटू से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें।

बताया जाता है कि 2000-2500 साल से ज्यादा पुरानी है। बीएचयू के एक शोध में इसको लेकर कई चौकानें वाले तथ्य सामने आए हैं। बीएचयू प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की टीम ने गुदना यानी टैटू गुदवाने की परंपरा पर बड़ा शोध किया है।

लड़कियों के लिए जरूरी था गुदवाना

इस शोध के अनुसार, प्राचीन समय में भी लड़कियां गुदना गुदवाती थी। यह परंपरा के अनुसार जो लड़की गुदना का दर्द नहीं सह पाती थी वो समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। उस समय की ऐसी धारणा थी कि जो गुदना का दर्द नहीं सह सकती वो विवाह के बाद प्रसव के दर्द कैसे सकेगी। इसलिए जो लड़की गुदना नहीं गुदवाती थी उसकी शादी नहीं होती थी।

यह भी तथ्य सामने आया कि समाज में अलग-अलग कम्युनिटी के लोगो की पहचान भी उनके गुदने से होती थी। (Wikimedia Commons)

हजारों साल पुरानी है ये परंपरा

बीएचयू की रिसर्च स्कॉलर प्रीति रावत ने बताया कि सोनभद्र, मिर्जापुर, बिहार समेत पूर्वांचल के कई जिलोक आदिवासी क्षेत्र से इसके लिए दुर्लभ तथ्य जुटाए गए हैं। प्रीति ने बताया कि सोनभद्र जिले के पंचमुखी क्षेत्र से 5 किलोमीटर के दायरे में 2000 हजार साल पुराने शैलचित्रों से इसका खुलासा होता है कि गुदना गुदवाने की परंपरा करीब 2000- 2500 साल पुरानी है।

टैटू से किया जाता था पहचान

रिसर्च स्कॉलर प्रीति रावत ने बताया कि इसी शोध के दौरान यह भी तथ्य सामने आया कि समाज में अलग-अलग कम्युनिटी के लोगो की पहचान भी उनके गुदने से होती थी। बिहार के सासाराम में ताराचंडी मंदिर के करीब गोंड समाज की महिलाओं के हाथों में एक जैसा गुदना दिखा। जबकि वैश्य समाज की महिलाओं के हाथ मे जालीनुना गुदना नजर आया।

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