हमारी जिंदगी में रंगों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। सोचिए अगर रंग ना होते तो हमारा जीवन कैसा फीका और बेरंग सा लगता। इसी प्रकार प्रत्येक रंग का भी अपना एक महत्व और कहानी है। आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे भगवा (Saffron) रंग हिंदुओं की शान बन गया।
वैदिक (Vaidik) काल के दौरान ऋषि मुनि प्रकृति से अत्यधिक प्रभावित थे। जब उन्होंने शुरूआती धार्मिक ग्रंथों और वेदों सबका रंग देखा तो उन्होंने यह पाया कि सूर्यास्त (Sunset) से लेकर अग्नि तक सबका रंग नारंगी ही है। बस यहीं से शुरूआत हुई भगवा रंग या नारंगी रंग को सनातन धर्म में बलिदान, शुद्धता, ज्ञान, त्याग और सेवा के प्रतीक के रूप में माने जाने की।
संस्कृत का एक श्लोक
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
यह बताता है कि लाल रंग का सिंदूर शोभा, सौभाग्य और सुख बनाने वाला होता है।
आदि शंकराचार्य (Shankracharya) जिन्होंने सनातन (Sanatan) धर्म की पुनः स्थापना की वस्त्र के तौर पर मात्र भगवा रंग का चोला धारण किया हुआ है।
• छत्रपति शिवाजी महाराज (Chatrapati Shivaji Maharaj) भी जब मुगलों (Mughals) के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे तो उन्होंने भगवा रंग के ध्वज को ही अपनी सेना का घोतक बनाया था।
• वहीं दूसरी ओर स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने स्वयं के वस्त्र और हिंदुत्ववादी संगठन आरएसएस (RSS) के ध्वज का रंग भी भगवा ही चुना था।
• इसके बाद धीरे-धीरे से यह भगवा रंग हिंदुओं के साथ जुड़ता चला गया यह उनकी भावनाओं से जुड़ गया और आज यही भगवा रंग हिंदू धर्म का पर्याय हैं।
(PT)