Kamakhya Temple : कामाख्या देवी का मंदिर 22 जून से 25 जून तक बंद रहता है। (Wikimedia Commons) 
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माता कामाख्या मंदिर 51 शक्तिपीठों में से है एक, जानें इस मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें

इस मंदिर में माता की कोई भी मूर्ति नहीं है, यहां केवल एक कुंड है, जो हमेशा ही फूलों से ढका हुआ रहता है। इस मंदिर में देवी की योनी की पूजा होती है। आज भी माता यहां पर रजस्वला होती हैं।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Kamakhya Temple : माता कामाख्या देवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 10 किमी दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर में माता की कोई भी मूर्ति नहीं है, यहां केवल एक कुंड है, जो हमेशा ही फूलों से ढका हुआ रहता है। इस मंदिर में देवी की योनी की पूजा होती है। आज भी माता यहां पर रजस्वला होती हैं। पूरे भारतवर्ष के लोग इसे अघोरियों और तांत्रिक का गढ़ मानते हैं। यहां के अघोरी किसी पर किए काला जादू को उतार देते है। आइये जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें।

क्यों नहीं है कोई मूर्ति ?

मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार, जब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे, तो जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया। यहां माता की योनी गिरी थी, इसलिए यहां उनकी कोई मूर्ति नहीं बल्कि योनी की पूजा होती है। यहां दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादऊल, बसंती पूजा, मदान देऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर की रौनक में और चार चांद लगा देते है।

यह मंदिर तंत्र विद्या के लिए मशहूर है। यहां पर तांत्रिक बुरी शक्तियों को बड़ी आसानी से दूर कर देते हैं। (Wikimedia Commons)

क्या होता है अम्बुवाची ?

कामाख्या देवी का मंदिर 22 जून से 25 जून तक बंद रहता है। इन दिनों में माता सती रजस्वला अवस्था में रहती हैं। इन 3 दिनों में पुरुषों का प्रवेश निषेध रहता हैं। इस समय में माता के दरबार में सफेद कपड़ा रखा जाता है, जो 3 दिनों में लाल रंग का हो जाता है ये बहुत ही रहस्यमयी होता है। इस कपड़े को अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। इसे ही प्रसाद के रूप में भक्तों को बाट दिया जाता है।

मनोकामना पूरी होने के बाद देते है बलि

यह मंदिर तंत्र विद्या के लिए मशहूर है। यहां पर तांत्रिक बुरी शक्तियों को बड़ी आसानी से दूर कर देते हैं। यहां के साधुओं के पास चमत्कारिक शक्ति होती है। इन्हें भगवान शिव की नववधू के रूप में पूजा जाता है। भक्तों की मनोकामना पूरी होने के बाद वे यहां आकर कन्या भोजन करवाते है। वहीं कुछ लोग यहां जानवरों की बलि देते हैं लेकिन यहां मादा जानवरों की बलि नहीं दी जाती।

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