<div class="paragraphs"><p> 51 शक्तिपीठों में से एक सुरकंडा देवी (Wikimedia Commons)</p><p></p></div>

51 शक्तिपीठों में से एक सुरकंडा देवी (Wikimedia Commons)

 

विश्वेश्वरी देवी मंदिर सुरकंडा देवी

धर्म

जानिए 51 शक्तिपीठों में से एक सुरकंडा देवी के बारे में

Poornima Tyagi

न्यूजग्राम हिंदी: प्रत्येक मनुष्य जो इस पावन धरती पर जन्म लेता है अच्छे और बुरे कर्म दोनों करता है। फिर अपने इन्हीं कर्मों का पश्चाताप करने के लिए वह तीर्थ यात्रा का सहारा लेता है। वैसे तो भारत में बहुत से तीर्थ स्थल है, लेकिन भारत का एक राज्य है उत्तराखंड (Uttarakhand) पुण्य भूमि या फिर देवों की भूमि (Devbhoomi) भी कहलाता जाता है। उत्तराखंड में आपको कदम-कदम पर बहुत से मंदिर देखने को मिल जाएंगे और प्रत्येक मंदिर के पीछे की अपनी एक कहानी गई। जिसमें हम आपको ऐसे ही एक मंदिर विश्वेश्वरी देवी मंदिर सुरकंडा देवी (Surkanda Devi) के पीछे की प्रसिद्ध कहानी बताने जा रहे हैं।

टिहरी (Tehri) जनपद के सुरकुट (Surkut) पर्वत पर स्थित सुरकंडा मंदिर देवी दुर्गा का मंदिर है। देवी सुरकंडा मां दुर्गा की नौ देवी रूपों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठ में से एक है। इस मंदिर के भीतर मां काली की प्रतिमा स्थापित की गई है।

इस मंदिर के साथ यह कथा जुड़ी हुई है कि जब देवी सती (Devi Sati) ने अपने पिता दक्ष (Daksh) द्वारा किए जा रहे यज्ञ के दौरान उसी यज्ञ कुंड में अपने प्राण त्याग दिए थे। तो भगवान शंकर (Shankar) दुःखी होकर देवी के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूम रहे थे। उसी वक्त भगवान विष्णु (Lord Vishnu) द्वारा अपना सुदर्शन चक्र (Sudarshan Chakra) चलाया गया और देवी के शरीर के 51 भाग कर दिए गए। जिसमें से देवी का सिर इस स्थान पर गिरा जहां पर आज सुरकंडा देवी मंदिर है जिस स्थान पर देवी के मृत शरीर के भाग गिरे उन स्थानों को शक्तिपीठ (Shaktipeeth) कहा जाता है।

51 शक्ति पीठ में से एक

इस मंदिर में प्रसाद के रूप में रौंसली वृक्ष की पत्तियां दी जाती हैं। इस वृक्ष को देववृक्ष कहा जाता है। इस वृक्ष की पत्तियां बहुत सी समस्याओं का निवारण कर सकती हैं। यदि इन पत्तियों को घर में रखा जाए तो आपके घर में कभी सुख समृद्धि की कमी नहीं होगी वहीं यदि किसी को कोई बीमारी है तो भी यह पत्तियां बहुत कारगर साबित होती हैं।

यदि आप इस मंदिर में आने का विचार कर रहे हैं तो इसके लिए सबसे बेहतर समय गंगा दशहरा या नवरात्रि के दिनों में होगा। क्योंकि इन दिनों मां के दर्शन करने से ही आपके सभी कष्टों का निवारण हो जाएगा। यहां पर गंगा दशहरे पर मेला भी लगता है।

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