Shravan Month 2022: कैसे स्थापित हुआ प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ? सोमनाथ मंदिर (Wikimedia Commons)
धर्म

Shravan Month 2022: कैसे स्थापित हुआ प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ?

Shravan Month 2022: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से की गई है। चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है, और चंद्रमा ने भगवान शिव को अपना नाथ मानकर यहीं तपस्या की थी। अतः इस पुण्य धाम को सोमनाथ कहा जाता है।

Prashant Singh

Shravan Month 2022: श्रावण मास अति पवित्र और भगवान शंकर का अति प्रिय महीना माना गया है। शस्त्रों में कहा गया है-

द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ:। श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत:।।

श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:। यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत:।।

अर्थात्, मासों में श्रावण मास मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है, इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है।

श्रावण के इस पवित्र मास में हम पढ़ेंगे एक-एक करके सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में। इस कड़ी में आज पढ़ेंगे प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के बारे में। जी हाँ ये वही मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि महमूद गजनवी ने 5000 लोगों के साथ सन 1025 में मंदिर पर हमला किया था और मंदिर को लूटने के साथ ही उसे तकरीबन नष्ट ही कर दिया था। इसके बाद राजा भोज ने उसका जीर्णोद्धार करवाया।

1297 में सोमनाथ मंदिर ने एक बार पुनः विध्वंस का सामना किया, इसके बाद ये पुनर्निर्माण और विध्वंस की कहानी सदियों चलती रही, जिसकी इतिश्री 1950 में तब हुआ जब, भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसे दुबारा बनवाया। मंदिर को 1 दिसंबर 1995 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। सोमनाथ की इस लंबी विध्वंस और पुनर्निर्माण की कहानी के बीच एक चीज जो जैसी की तैसी रही वो थी भक्तों की श्रद्धा। कई आक्रांता आए पर भक्तों की भक्ति को थोड़ा भी क्षतिग्रस्त नहीं कर पाए।

इस अद्भुत ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के पौराणिक कथा को आज हम विस्तार से जानेंगे।

यह अद्भुत मंदिर गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित है। इस क्षेत्र को प्रभासक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह वही स्थान है जहां भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने अपनी लीला का संवरण करने के लिए जरा नामक व्याध के बाण को निमित्त बनाया था। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में पुराण कहते हैं कि-

दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याओं का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। चंद्रदेव अपनी सभी रानियों में सबसे अधिक प्रेम केवल रोहिणी को करते थे। उनके इस रवीए को देखकर बाकी की रानियाँ अप्रसन्न रहने लगीं और दुःखी होकर एक दिन अपने पिता से चंद्रदेव की शिकायत की। इसपर प्रजापति ने चंद्रदेव को समझाया पर, चंद्रदेव रोहिणी के प्रेम में इस कदर डूबे हुए थे कि उनपर दक्ष के समझाने का कोई असर नहीं हुआ। यह देखकर दक्ष ने चंद्रदेव को 'क्षयग्रस्त' होने का शाप दे दिया।

परिणाम ये हुआ कि शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए। इससे सृष्टि पर त्राहि-त्राहि मच गई। देवी-देवता दुःखी और चिंतित हो गए। तत्पश्चात इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सभी बातों को विस्तार में सुनने के बाद ब्रह्माजी ने चंद्रमा को अपने शाप-विमोचन के लिए अन्य देवताओं के साथ प्रभासक्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान्‌ शिव की आराधना करने का सुझाव दिया। ब्रह्माजी ने कहा कि शिव की कृपा से निश्चित ही यह शाप नष्ट हो जाएगा।

ब्रह्माजी के कथनानुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान्‌ की आराधना की और दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान दे दिया और कहा, 'चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी।'

दरअसल भगवान शंकर ने चंद्रमा को आशीर्वाद देते हुए प्रजापति दक्ष के शाप की महिमा का भी माँ रखा। जिसके कारण कृष्ण पक्ष में चंद्रमा की प्रतिदिन एक-एक कला क्षीण होती है और शुक्ल पक्ष में एक-एक कला बढ़ती है। इस तरह पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूर्ण होता है और अमावस्या को आँखों से ओझल होता है। भगवान शंकर के इस आशीर्वाद से सृष्टि पुनः पूर्ववत हो गया।

शाप मुक्ति के बाद चंद्रमा सहित सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना किया कि वो माता पार्वती के साथ सदा के लिए यहाँ वायस करें, जिससे कि सृष्टि के लोगों का उद्धार होता रहे। तभी से भगवान शिव माता पार्वती के साथ यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से की गई है। चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है, और चंद्रमा ने भगवान शिव को अपना नाथ मानकर यहीं तपस्या की थी। अतः इस पुण्य धाम को सोमनाथ कहा जाता है।

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