कब और कैसे होती है रथ यात्रा की शुरुआत ?
जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है। यह नौ दिन तक चलने वाली यात्रा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का भव्य पर्व है। जिसे पूरी दुनिया जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) के नाम से जानती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ को उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर से बाहर लाया जाता है और एक विशाल रथ पर बैठाकर पूरे नगर में भ्रमण कराया जाता है।
इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जो श्रीमंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित है। मान्यता है कि यह मंदिर भगवान की मौसी का घर है। इसलिए इसे "मौसी बाड़ी" भी कहा जाता है। यही वह जगह है, जहां भगवान अपनी बहन और भाई के साथ सात दिनों तक रुकते हैं। यह समय भक्तों के लिए बहुत खास होता है क्योंकि इस दौरान भगवान मंदिर के गर्भगृह से बाहर आकर आम लोगों के बीच होते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवी सुभद्रा ने भगवान जगन्नाथ से नगर भ्रमण की इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि मैं भी देखना चाहती हूं कि भक्तों का जीवन कैसा है, वो कैसे रहते हैं। इस पर भगवान ने बहन की इच्छा पूरी करने के लिए एक योजना बनाई और भाई बलभद्र को साथ लेकर रथ पर बैठकर नगर भ्रमण के लिए निकल पड़े। तभी से हर साल यह परंपरा चलता आ रहा है।
जब भगवान गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं, तो उनका स्वागत पोड़ा पीठा नामक विशेष खिचड़ी जैसी मिठास वाली डिश से किया जाता है। यह ओडिशा की पारंपरिक रसोई से जुड़ी एक पवित्र भोग सामग्री है। सात दिनों तक भगवान वहीं रुकते हैं और भक्तों को प्रतिदिन दर्शन देते हैं। यहां भी भगवान की उतनी ही श्रद्धा से पूजा होती है जितनी श्रीमंदिर में होती है।
सात दिन बाद भगवान अपनी बहन और भाई के साथ श्रीमंदिर वापस लौटते हैं। इस वापसी की यात्रा को "बहुदा यात्रा" कहा जाता है। जब भगवान वापस लौटते हैं तो उनका रथ, ढोल-नगाड़ों, भजन-कीर्तन और हजारों भक्तों की भीड़ के साथ चलता है। यह दृश्य इतना अद्भुत होता है कि हर साल लाखों लोग इसे देखने के लिए पुरी पहुंचते हैं।
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा से पहले क्यों बीमार हो जाते हैं ?
रथ यात्रा से पहले एक और रोचक परंपरा जुड़ी हुई है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ का विशेष स्नान कराया जाता है जिसे "स्नान पूर्णिमा" कहा जाता है। इस स्नान के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें 15 दिन के लिए एकांतवास में रखा जाता है। इस दौरान भक्तों को उनके दर्शन नहीं होते।
एक बार भक्त माधवदास बहुत बीमार हो गए थे। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि “आप तो जगत के स्वामी हैं, क्या मेरी बीमारी नहीं दूर कर सकते?” भगवान ने कहा कि यह तुम्हारे पिछले जन्म के कर्मों का फल है, तुम्हें यह 15 दिन भोगना ही पड़ेगा। यह सुनकर माधवदास बहुत रोए। उनकी वेदना देखकर भगवान ने उनकी बीमारी खुद पर ले ली। भक्त ठीक हो गया, लेकिन भगवान 15 दिन के लिए बीमार हो गए। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि स्नान पूर्णिमा के बाद भगवान एकांत में रहते हैं और ठीक होने के बाद रथ यात्रा के लिए निकलते हैं।
रथ यात्रा क्यों है इतनी खास ?
भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के लिए तीन विशाल रथ तैयार किए जाते हैं। हर रथ की अलग विशेषता और रंग होता है। रथों को रस्सियों से खींचने की परंपरा है। मान्यता है कि जो भक्त रथ की रस्सी खींचता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह यात्रा धर्म, जाति, वर्ग, ऊंच-नीच से ऊपर उठकर एकता और भक्ति का प्रतीक बन गई है। हर कोई भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य चाहता है। हालांकि जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) की शुरुआत पुरी से होती है, लेकिन आज यह दुनिया के कई हिस्सों में मनाई जाती है। इस्कॉन मंदिरों के जरिए अमेरिका, लंदन, रूस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी यह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
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जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) सिर्फ भगवान की एक शोभायात्रा नहीं है, बल्कि यह भक्ति, करुणा, सेवा और समर्पण की जीवित मिसाल है। इसमें भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं, और उनके सुख-दुख में सहभागी बनते हैं। यह यात्रा यह संदेश देती है कि ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हर हृदय में वास करते हैं। तो अगर आप कभी पुरी न गए हों, तो एक बार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) जरूर देखें – यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, आत्मा को छू लेने वाला अनुभव है। Rh/PS