श्रावण मास का पवित्र महीना भगवान शंकर के लिए अति पवित्र बताया गया है। यह मास भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय। पुराणों में दो कारण बताए गए हैं कि श्रावण भगवान शंकर को क्यों प्रिय है। पहला कारण तो यह है कि जब भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकला हुआ विष पीया था तब देवताओं ने उनके अंदर उत्पन्न हो रही विष के अग्नि को शांत करने के लिए जल और दूध से अभिषेक किया था। यह श्रावण वही समय था। दूसरा कारण यह बताया जाता है कि इसी मास में माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए घोर तप किया था। अतः यह मास व्रत-उपवास, धर्म-कर्म, दान-पुण्य आदि के लिए श्रेयस्कर है।
श्रावण मास के व्रत का आध्यात्मिक कारण तो आपको पता चल गया। लेकिन अब हम जानेंगे कि विज्ञान की दृष्टि इसके लिए क्या कहती है।
यह हर कोई जानता है कि सावन के महीने में हमारा पाचन तंत्र थोड़ा ढीला पड़ जाता है। ऐसे में व्रत रखने से उसे सुचारुता में आने का मौका मिलता है। ऐसा करने से स्वास्थ्य बिगड़ता नहीं है।
चूंकि सावन माह में कीड़े-मकौड़े, बैक्टीरीया आदि ज्यादा मात्रा में पत्तेदार सब्जियों में बढ़ जाते हैं। इसलिए इस मौसम में पालक, मैथी, लाल भाजी, बथुआ, गोभी, पत्ता गोभी जैसी सब्जियां खाने से परहेज किया जाता है।
व्रत एक प्रकार से शरीर को डेटॉक्स करने का माध्यम है। आजकल लोग जिस इन्टर्मिटेंट फास्टिंग का चलन अपना रहे हैं, वो हमारे सनातन संस्कृति में बहुत पहले से निहित था।
दरअसल व्रत के दौरान फैट बर्निंग प्रोसेस तीव्र हो जाता है। इसकी मदद से शरीर में चर्बी की अधिकता खत्म होती है और मन भी शांत रहता है। विपरीत परिस्थिति में भी दिमाग ठंडा रहता है।
कुल मिलाकर व्रत-उपवास व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को शक्तिशाली बनाते हैं। कई अध्ययन बताते हैं कि व्रत करने से मेटाबॉलिक रेट में 3 से 14 फीसदी तक बढ़ोत्तरी होती है। और, पाचन क्रिया और कैलोरी बर्न होने में लगने वाले समय में कमी आ जाती है।
व्रत एक प्रकार का संकल्प होता है, अतः इसको धारण करने वाला व्यक्ति सकारात्मकता, दृढ़ता और एकनिष्ठता से ओत-प्रोत हो जाता है। और धर्म अथवा आध्यात्म की मानें तो व्रत करने से देवी, देवता प्रसन्न होते हैं तथा कष्टों और परेशानियों को दूर करके, मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।