मिथिला पेंटिंग्स की शुरुआत बिहार के एक छोटे से गांव मधुबनी से मानी जाती है। [Pixabay] 
बिहार

जिसे घरों में काम करना पड़ा, आज उसकी कला को दुनिया सलाम करती है – कहानी दुलारी देवी की

आजकल के युवा पीढ़ी को जो हर एक छोटी मुसीबत से डर कर भाग रहे हैं उन्हें दुलारी देवी कि यह कहानी जरूर पढ़नी चाहिए जिससे उनमें आत्म बल और प्रेरणा का विस्तार होगा।

न्यूज़ग्राम डेस्क

आजकल की युवा पीढ़ी अक्सर छोटी-छोटी समस्याओं से परेशान हो जाती है और उनके अंदर खुद को निखारने और जीवन में कुछ अच्छा करने की मनोकामना खत्म हो जा रही है। आजकल के युवा पीढ़ी को जो हर एक छोटी मुसीबत से डर कर भाग रहे हैं उन्हें दुलारी देवी कि यह कहानी जरूर पढ़नी चाहिए जिससे उनमें आत्म बल और प्रेरणा का विस्तार होगा। दुलारी देवी मधुबनी चित्रकला के क्षेत्र में एक ऐसा नाम है, जिन्होंने इस चित्रकला को जीवन दान दिया है यह चित्रकला आज केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी प्रचलित है। मधुबनी चित्रकला यदि आज विदेश में पहुंच पाई है तो उसका सारा श्रेय दुलारी देवी को जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन्होंने कितने संघर्षों के बाद अपनी कला को जीवंत रखा है। इनकी कठोर मेहनत और कला के कारण ही 2025 में निर्मला सीतारमण जी ने वित्तीय बजट के दौरान दुलारी देवी के द्वारा निर्मित साड़ी पहना था। तो आइए जानते हैं दुलारी देवी के जीवन की वह कहानी जो बहुत कम लोगों को पता है।

रामायण में भी मिलता है इस चित्रकला का ज़िक्र

मिथिला पेंटिंग्स की शुरुआत बिहार के एक छोटे से गांव मधुबनी से मानी जाती है। यहां के घर-घर में मिथिला या जिसे मधुबनी चित्रकला भी कहते हैं काफी प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि मिथिला पेंटिंग्स के तार रामायण से जुड़े हैं जब रानी सीता का विवाह श्री राम से हुआ था तब जनकपुर को मिथिला पेंटिंग से सजाया गया था। धीरे-धीरे ये चित्रकलाएं कहीं लुप्त हो गई लेकिन 1934 में आए भूकंप के कारण यह पेंटिंग्स फिर एक बार लोगों के सामने आई।

मिथिला पेंटिंग्स के तार रामायण से जुड़े हैं [Pixabay] [सांकेतिक चित्र]

1934 में आए भूकंप के दौरान जब एक अंग्रेज जनरल ने मधुबनी का दौरा किया तब उन्हें यह पेंटिंग्स काफी पसंद आई और उन्होंने इसे एकत्रित कर ब्रिटिश म्यूजियम में भेज दिया था। इसके बाद ही लोगों ने जाना की मिथिला में रहने वाली महिलाएं यह मधुबनी पेंटिंग्स बनती हैं जिनमें से लोकप्रिय है दुलारी देवी। दुलारी देवी अपने चित्रकला को प्राकृतिक तरीके से यानी की फुल, पत्ते, हल्दी जैसे चीजों से बनाती हैं जिससे उनकी एक अलग ही पहचान बनी।

दुलारी देवी, जिनकी कला को पूरी दुनिया ने सराहा

दुलारी देवी का जन्म बिहार के मधुबनी जिले में एक मछुआरे परिवार में हुआ था, उनका जीवन बचपन से ही काफी संघर्षों से भरपूर था। बड़े ही कम उम्र में उनकी शादी कर दी गई थी और बड़े ही कम उम्र में उनके पति की मृत्यु भी हो गई थी जिसके कारण अकेले ही दुलारी देवी को दो वक्त की रोटी जुटाना के लिए संघर्ष करना पड़ा। दुलारी देवी घर-घर जाकर झाड़ू पोछा का काम करती थी और तभी उनकी मुलाकात हुई महासुंदर देवी से। महासुंदर देवी दुलारी देवी के जीवन की वह प्रेरणा बनी इसके बाद उनका जीवन बदल गया। महासुंदर देवी मधुबनी पेंटिंग्स बनती थी और उन्हें देखकर दुलारी देवी को भी सीखने की इच्छा हुई और इसके बाद उन्होंने मधुबनी चित्रकला को सिखाना और अपनी इस कला को लोगों तक पहुंचना शुरू किया।

दुलारी देवी की कला ने सिर्फ बिहार या भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी सराहना पाई। [Pixabay]

दुलारी देवी का चित्रकला में योगदान

दुलारी देवी ने पारंपरिक 'कचनी' और 'भरनी' शैली में मधुबनी चित्र बनाना शुरू किया। उन्होंने अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से स्त्री जीवन, सामाजिक समस्याओं और लोककथाओं को उकेरा। उनके चित्रों में समाज का यथार्थ, प्रकृति, देवी-देवताओं की कथाएं और स्त्री संघर्षों की छाप होती है। उनकी खास बात यह है कि उन्होंने कागज के साथ-साथ दीवार, कपड़े और साड़ियों पर भी पेंटिंग की। उन्होंने पेंटिंग को एक सीमित फ्रेम से निकालकर आम जीवन से जोड़ा।दुलारी देवी की कला ने सिर्फ बिहार या भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी सराहना पाई। वे कई कला प्रदर्शनियों का हिस्सा बनीं। मधुबनी चित्रकला के क्षेत्र में दुलारी देवी के भूतपूर्व योगदान के कारण उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है।

दुलारी देवी के भूतपूर्व योगदान के कारण उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है। [Wikimedia Commons]

जब जापान पहुंचा मधुबनी चित्रकला

दुलारी देवी की कला केवल भारत में ही नहीं विदेशों में भी अपना डंका बजाया। जापान में मधुबनी चित्रकला को इतना अधिक पसंद किया गया कि वहां पर मधुबनी चित्रकला के लिए एक म्यूजियम का निर्माण भी किया गया है। दुलारी देवी के द्वारा बनाई गई 1500 चित्रकलाएं जापान के उसे म्यूजियम में रखी गई है। जापान के लोगों को इस चित्रकला से एक अलग ही लगाव है वहां के लोग मधुबनी चित्रकला को खूब पसंद करते हैं और इसे संजोग कर रखते हैं। गरीब

भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब संसद में मधुबनी पेंटिंग से सजी साड़ी पहनी [Wikimedia Commons]

जब वित्त मंत्री ने पहनी मधुबनी साड़ी


भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब संसद में मधुबनी पेंटिंग से सजी साड़ी पहनी, तो वह केवल एक परिधान नहीं था, बल्कि एक महिला के संघर्ष और सफलता की कहानी भी थी। वह साड़ी किसी आम डिज़ाइनर की नहीं, बल्कि दुलारी देवी नाम की उस कलाकार की थी, जिसने अपना जीवन कभी दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा लगाकर शुरू किया था। पद्मश्री से सम्मानित दुलारी देवी की बनाई मधुबनी साड़ी को जब वित्त मंत्री ने पहना, तो वह एक साधारण कलाकार के लिए असाधारण पल बन गया। यह पल न केवल उनकी पहचान बना, बल्कि देश को यह एहसास भी कराया कि असली कला और संघर्ष किसी सर्टिफिकेट की मोहताज नहीं होती। [Rh/SP]

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