न्यूजग्राम हिंदी: झारखंड (Jharkhand) आज उस महान जनजातीय नायक और आजादी के सेनानी तेलंगा खड़िया को उनकी 217वीं जयंती पर याद कर रहा है, जिन्होंने तीर-धनुष, कुल्हाड़ी और फरसे जैसे हथियारों से लैस आदिवासियों की बड़ी फौज तैयार कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध (Guerrilla warfare) छेड़ दिया था। मौजूदा झारखंड के गुमला जिले के मुरगू गांव में 09 फरवरी 1806 ई. को जन्मे तेलंगा खड़िया ने पूरे जनजातीय क्षेत्र में अंग्रेजी हुकूमत को नकारते हुए ऐलान कर दिया था- जमीन हमारी, जंगल हमारे, मेहनत हमारी, फसलें हमारी, तो फिर जमींदार और अंग्रेज कौन होते हैं हमसे लगान और मालगुजारी वसूलने वाले। जनजातीय इतिहासकारों के मुताबिक तेलंगा खड़िया ने मौजूदा गुमला जिले के आसपास के दो दर्जन से भी ज्यादा गांवों में जोड़ी पंचैत नामक संगठन की स्थापना की थी। यह एक ऐसा संगठन था, जिसमें विद्रोहियों को तमाम तरह की युद्ध विद्याओं समेत रणनीति बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। रणनीतिक दस्ता युद्ध की योजनाएं बनाता और लड़ाके जंगलों, घाटियों में छिपकर गुरिल्ला युद्ध करते। वह जोड़ी पंचैत में आदिवासियों को यह कहते हुए ललकारते थे कि अंग्रेजों के पास अगर गोली-बारूद हैं, तो हमारे पास भी तीर-धनुष, कुल्हाड़ी, फरसे हैं।
झारखंड सरकार के जनजातीय शोध संस्थान ने भी तेलंगा खड़िया के जीवन और अंग्रेजों के खिलाफ उनके संघर्ष पर शोध कराया है। 1850-60 के आसपास अंग्रेजों ने जनजातीय इलाकों के बाशिंदों पर जमींदारों के जरिए कई तरह के टैक्स लगा दिए थे। तेलंगा खड़िया ने इस अत्याचार व शोषण के विरुद्ध आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। गांव-गांव जाकर लोगों को गोलबंद करना शुरू किया। अधिकतर गांव जमींदारी और अंग्रेजी शोषण से पीड़ित थे। इसलिए विद्रोहियों को ग्रामीणों का भारी समर्थन मिल रहा था। हर गांव में जोड़ी पंचैत बनने लगे। अखाड़े में युवा युद्ध का अभ्यास करने लगे। जोड़ी पंचैत के योद्धाओं ने गुरिल्ला शैली से युद्ध करते हुए जमींदारों के लठैतों और अंग्रेजी सेना में दहशत पैदा कर दी थी। तेलंगा ने छोटे स्तर पर ही सही, मगर अंग्रेजों के सामानांतर सत्ता का विकल्प खोल दिया था। परेशान अंग्रेज सरकार ने तेलंगा को पकड़ने के लिए फरमान जारी कर दिया गया। एक दिन जब तेलंगा बसिया थाना क्षेत्र के कुम्हारी गांव में जोड़ी पंचैत का गठन कर रहे थे, स्थानीय जमींदारों व दलालों ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया। इसके बाद उन्हें कोलकाता जेल में डाल दिया गया।
लोहरदगा के कोर्ट में मुकदमा चला और तेलंगा को चौदह साल कैद की सजा सुनाई गई। चौदह साल बाद जब तेलंगा जेल से निकले, तो उनके विद्रोही तेवर और भी तल्ख हो गए। विद्रोहियों की दहाड़ से जमींदारों के बंगले कांप उठे। जोड़ी पंचैत फिर से जिन्दा हो उठा और युद्ध प्रशिक्षणों का दौर शुरू हो गया। झारखंड में बसिया से कोलेबिरा तक विद्रोह की लपटें फैल गईं। अंग्रेजी हुकूमत इस आंदोलन के कारण फिर दहशत में थी।
जनजातीय शोध संस्थान
जनजातीय शोध संस्थान ने तेलंगा खड़िया की जो जीवनी तैयार की है उसके मुताबिक, 23 अप्रैल 1880 ई को सुबह के छह बजे तेलंगा खड़िया गुमला जिले के सिसई स्थित अखाड़ा में अपनी संस्कृति के अनुसार पूजा करने पहुंचे थे। वे सरना आदिवासी धर्म के प्रतीक सफेद झंडे का जैसे ही नमन करने के लिए झुके, झाड़ियों में छिपकर अंग्रेजों के दलाल जमींदार बोधन सिंह ने गोली मारकर उनकी हत्या करवा दी। तेलंगा का शव गुमला प्रखंड के सोसो गांव में दफन किया गया, जो स्थल आज तेलंगा टांड़ के नाम से प्रसिद्ध है। गुमला शहर से तीन किमी दूर चंदाली में उनका समाधि स्थल बनाया गया है। वहीं, पैतृक गांव मुरगू में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। खड़िया लोकगीतों में आज भी तेलंगा जीवित हैं। आज उनके समाधि स्थल पर मेला का भी आयोजन किया गया।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तेलंगा खड़िया की जयंती पर उन्हें नमन करते हुए कहा है कि वह अंग्रेजी शोषण और अत्याचार के खिलाफ विद्रोह करने वाले झारखंड की माटी के वीर सपूत थे।
आईएएनएस/PT