न्यूज़ग्राम हिंदी: केरल उच्च न्यायालय(Kerala High Court) ने सोमवार को एक महिला कार्यकर्ता के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज कर दिया, जिस पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाया गया था। उसके खिलाफ अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक वीडियो पोस्ट करने के लिए मामला दर्ज किया गया था जिसमें उसके दो नाबालिग बच्चे, एक 14 साल का लड़का और एक 8 साल की लड़की, उसके अर्ध-नग्न धड़ पर पेंटिंग करते दिख रहे थे।
अदालत ने कहा कि नग्नता और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते हैं और याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के लिए यौन मंशा एक आवश्यक घटक है।
अदालत ने खुली अदालत में वीडियो देखा और कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने वीडियो के नीचे एक विस्तृत संदेश दिया था, जहां उसने तर्क दिया कि नग्न शरीर एक नियंत्रित, यौन कुंठित समाज की प्रतिक्रिया स्वरूप था।
वीडियो के विवरण के मुताबिक, कोई भी बच्चा जो अपनी मां की नग्नता और शरीर को देखकर बड़ा हुआ है, वह किसी दूसरी महिला के शरीर के साथ गलत नहीं कर सकता।
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का पितृसत्ता से जूझने का एक लंबा इतिहास रहा है और वह नैतिक पुलिसिंग के खिलाफ कोच्चि में एक आंदोलन का हिस्सा थी।
इसलिए, अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वीडियो पोस्ट किया था, जिस पर कई लोगों ने बड़े पैमाने पर आक्रोश व्यक्त किया था। उनका आरोप था कि महिला अपने बच्चों से अशलील कृत्य करवा रही है।
उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था और ट्रायल कोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा करने के बाद कार्यवाही शुरू की थी।
उसने आरोपमुक्त किए जाने के लिए एक आवेदन दायर किया लेकिन निचली अदालत ने उसे खारिज कर दिया। इसके बाद उसने उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी।
--आईएएनएस/VS