एक कलाकार, जो सपनों को परदे पर उतारता था
भारतीय सिनेमा के सुनहरे दौर में एक नाम हमेशा के लिए अमर हो गया, गुरु दत्त (Guru Dutt)। वो सिर्फ एक निर्देशक ही नहीं थे, बल्कि एक ऐसे संवेदनशील कलाकार थे जो अपने मन के भावों को सिनेमा के ज़रिए बखूबी ज़ाहिर कर देते थे।‘प्यासा’, ‘कागज़ के फूल’, ‘साहब बीवी और ग़ुलाम’ जैसी फिल्में उनके भीतर की तकलीफ, मोहब्बत और अकेलेपन की परछाइयाँ थीं। उनकी ज़िंदगी का एक गीत जो बाद में उनकी सच्चाई बन गया वो गीत है "वक़्त ने किया क्या हसीं सितम, तुम रहे न तुम, हम रहे न हम..."
फिल्म 'बाज़ी' (1951) की शूटिंग के दौरान गुरु दत्त की मुलाकात हुई जानी-मानी गायिका गीता रॉय से हुई। गीता की आवाज़ में जादू था और गुरु दत्त की आँखों में कलात्मक जुनून। दोनों ने एक-दूसरे को जाना, समझा और फिर प्यार में पड़ गए। "गीता सिर्फ मधुर आवाज़ की मल्लिका नहीं थीं, वो बेहद सुंदर और आत्मीय भी थीं। उसके बाद गुरु दत्त (Guru Dutt)और गीता ने शादी अपने अपने परिवार माता पिता से बात की लेकिन गीता के परिवार को यह रिश्ता मंजूर नहीं था, लेकिन फिर भी 26 मई 1953 को दोनों ने सादगी से शादी कर ली। शादी के कुछ ही सालों में उनके तीन बच्चे हुए तरुण, अरुण और नीना। उसके बाद गुरु दत्त (Guru Dutt) फिल्मों में खो गए, और गीता परिवार में। वो अपने गायन करियर को धीमा कर चुकी थीं और अब सिर्फ अपने पति की फिल्मों में गाने गा रही थीं।
भूतिया बंगला और टूटते सपने
शादी के बाद दोनों पाली हिल स्थित एक सुंदर बंगले में रहने लगे। लेकिन गीता को लगता था कि वह बंगला अपशकुन लाता है। उन्होंने गुरु दत्त (Guru Dutt) से कहा कि वह घर भूतिया है और उनकी शादी को नुकसान पहुँचा रहा है। गुरु दत्त (Guru Dutt) का एक सपना था, एक खूबसूरत बंगला, जहाँ वे सुकून से अपने परिवार के साथ रह सकें। मुंबई के पाली हिल में उन्होंने यह सपना पूरा किया भी। वह बंगला हरा-भरा, शांत और खूबसूरत था। गुरु दत्त (Guru Dutt) को वह जगह बेहद पसंद थी। वो अक्सर कहते थे, "इस घर में बैठकर ऐसा लगता ही नहीं कि हम बॉम्बे में हैं।" लेकिन उनकी पत्नी गीता दत्त (Geeta Dutt) को इस बंगले से अजीब सा डर लगता था। उन्हें लगता था कि इस घर में कुछ अशुभ है। एक पेड़ के बारे में उनका मानना था कि उसमें कोई आत्मा रहती है जो उनकी शादी को नुकसान पहुँचा रही है। उन्होंने घर में रखी बुद्ध की एक मूर्ति पर भी शक जताया था। धीरे-धीरे उन्होंने यह तय कर लिया कि यह बंगला उन्हें और उनके रिश्ते को बर्बाद कर रहा है।
एक दोपहर गीता दत्त (Geeta Dutt) बंगले के गेस्ट हाउस में आराम कर रही थीं। शाम के करीब 4 बजे एक तेज़ आवाज़ से उनकी नींद खुली। उन्होंने देखा कि मजदूर घर को तोड़ रहे हैं। हैरान होकर उन्होंने तुरंत गुरु दत्त को फोन किया, जो स्टूडियो में काम कर रहे थे। उन्होंने कहा,"क्या हो रहा है ? घर टूट रहा है!" तो उन्हें तोड़ने दो "उन्हें अपना काम करने दो। उनको मैंने ही कहा है इसे गिरा दो!" गीता के कहने पर, उन्होंने अपने सपनों का घर खुद ही तुड़वा दिया।
गुरु दत्त (Guru Dutt) की बहन ललिता लाजमी ने बताया कि इस फैसले ने गुरु दत्त (Guru Dutt) को भीतर से तोड़ दिया था। उन्होंने कहा, "मैं हमेशा अपने घर में खुश रहना चाहता था। वह पाली हिल का सबसे सुंदर घर था। लेकिन मैं वहाँ ज़्यादा समय नहीं बिता सका।" इस घटना का जिक्र यासर उस्मान की लिखी गई जीवनी में भी है, जिसमें बताया गया है कि गुरु दत्त पहले से ही मानसिक तनाव, अवसाद और नशे की लत से जूझ रहे थे। इस घर को खोना उनके लिए भावनात्मक रूप से बहुत बड़ा झटका था। जिस घर को गुरु दत्त (Guru Dutt) ने प्यार से बसाया था, वह अंधविश्वास और टूटते रिश्तों की भेंट चढ़ गया। यह घटना उनकी जिंदगी में एक और गहरी दरार की तरह थी कुछ ऐसा जिसे वह शायद कभी भुला नहीं पाए।
उसके बाद 1950 के दशक के अंत में खबरें आने लगीं कि गुरु दत्त (Guru Dutt) अभिनेत्री वहेदा रहमान के क़रीब हो रहे हैं। इससे गीता बहुत आहत हुईं।उनके बीच झगड़े बढ़ने लगे। गीता कई बार बच्चों को लेकर मायके चली जाती थीं। गुरु दत्त (Guru Dutt) उन्हें मनाने की कोशिश करते, लेकिन विश्वास की डोर कमजोर पड़ चुकी थी। गुरु दत्त पहले ही दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुके थे। एक बार तो वो तीन दिन तक कोमा में रहे। होश में आते ही उन्होंने पहला शब्द कहा, "गीता!"
एक अनकहा अंत : गुरु दत्त की मौत
एक रात, जब गुरु दत्त (Guru Dutt) की शूटिंग रद्द हो गई थी, उन्होंने गीता से फोन पर कहा कि बच्चों को भेज दो। लेकिन गीता ने मना कर दिया। अगली सुबह उनका शव उनके फ्लैट में मिला। नींद की गोलियों और शराब का मिला-जुला असर, और वह भी खाली पेट यह एक जानलेवा मिश्रण बन गया। किसी ने नहीं सोचा था कि गुरु दत्त इस (Guru Dutt) तरह चले जाएंगे। आज तक यह रहस्य बना हुआ है कि उनकी मौत आत्महत्या थी या हादसा। जब वहेदा रहमान को खबर मिली की गुरु दत्त (Guru Dutt) की मृत्यु हो गई है तो वो तत्काल शूटिंग छोड़कर अंतिम दर्शन के लिए आईं, बिल्कुल समय पर, जब उनका शव श्मशान ले जाया जा रहा था।
पति की मौत के बाद गीता पूरी तरह टूट गईं। बंगाली रीति-रिवाज के अनुसार उन्होंने एक साल तक सफेद कपड़े पहने, 10 दिन तक सिर्फ कांजी खाया। लेकिन अकेलापन, पश्चाताप और तन्हाई ने उन्हें धीरे-धीरे शराब की तरफ धकेल दिया। बोतलें छुपा-छुपाकर पीने लगीं, बाथरूम में, अलमारी में, किताबों के पीछे वो बोतलें छुपाने लगी। इन सब घटनाओ के बाद उनकी आर्थिक स्थिति भी बिगड़ने लगी और उन्हें लीवर सिरोसिस हो गया। 20 जुलाई 1972 की शाम, गीता दत्त ने अंतिम साँस ली। उनके शरीर से खून निकलकर दीवारों तक जा पहुँचा। एक समय की सबसे प्यारी, मुस्कुराती और सुरीली गायिका, इस तरह दुनिया से विदा हो गई।
एक अधूरी मोहब्बत जो अमर हो गई
गुरु दत्त (Guru Dutt) और गीता दत्त (Geeta Dutt) दो अद्भुत कलाकार थे , और दोनो जुनूनी दिल भी थे । उन्होंने एक-दूसरे से बेपनाह मोहब्बत की, लेकिन साथ जी नहीं पाए।
उनकी प्रेम कहानी हमें सिखाती है कि प्रतिभा और प्रसिद्धि के बावजूद, अगर जीवन में भावनात्मक स्थिरता और आपसी विश्वास न हो, तो प्यार भी दम तोड़ देता है। उनकी अधूरी मोहब्बत आज भी जीवित है, हर उस गीत में, हर उस फिल्म में और हर उस शख्स की यादों में जो सच्चे प्रेम की कद्र करता है।
"दिल तो आखिर दिल है, तन्हा ही धड़कता है…" एक प्यार, जो परदे पर अमर हुआ, लेकिन असल ज़िंदगी में अधूरा रह गया। [Rh/PS]