न्यूजग्राम हिंदी: हिंदुओं का प्रमुख त्योहार होली (Holi) फाल्गुन मास में मनाया जाता है। यह त्यौहार होलिका (Holika) दहन के साथ शुरू होकर अगले दिन रंगों और गुलाल के साथ होली खेलकर खत्म होता है। हमारे देश में फाल्गुन शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पूर्णिमा (Purnima) तिथि के अगले दिन ही होली मनाई जाती है। सब एक दूसरे से मिलते हैं, रंग लगाते हैं और खुशियां बांटते हैं। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। लेकिन इसके अलावा भी हिंदू धर्म में और भी कई कहानियां प्रचलित हैं। आज के इस लेख में हम आपको इनमें से एक कहानी बताएंगे तो आइए जानते हैं कामदेव (Kamdev) की कथा के बारे में
ऐसा कहा जाता है माता पार्वती (Parvati) शिवजी (Shiv ji) से विवाह करने की इच्छा रखती थी। वहीं दूसरी ओर शिव अपनी तपस्या में लीन होने के कारण पार्वती पर ध्यान नहीं दे पाएं। पार्वती की तमाम कोशिशों को देखकर प्रेम के देवता कामदेव उनसे प्रसन्न हुए और और उन्होंने भगवान शिव पर पुष्प बाण चलाया। जिससे भगवान शिव की तपस्या में भंग पड़ गया। तपस्या में भंग पड़ जाने से भगवान शिव नाराज हो गए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। शिव जी के क्रोध से कामदेव अग्नि में भस्म हो गए। अंततः शिवजी की नजर माता पार्वती पर पड़ी और उन्होंने हिमवान की पुत्री को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
वहीं दूसरी ओर कामदेव शिव जी के क्रोध से भस्म हो गए थे। उनकी पत्नी रति (Rati) असमय ही विधवा हो गई थी। इससे दुखी होकर उन्होंने शिव जी की आराधना करना शुरू कर दिया और जब शिवजी अपने निवास स्थान पर लौटे तो रति ने अपनी आपबीती शिवजी को सुनाई। वही जब शिव जी से पार्वती को अपने पिछले जन्म की कहानी पता चली तो उन्होंने जाना कि कामदेव तो निर्दोष है और उनके पिछले जन्म में यानी कि दक्ष प्रसंग ने उन्हें अपमानित होना पड़ा था जिससे विचलित दक्ष की पुत्री सती ने आत्मदाह कर लिया था और अब फिर से उसी सती ने माता पार्वती के रूप में जन्म लेकर फिर से भगवान शिव को ही चाहा। इस सब में कामदेव तो उनका सहयोग कर रहे थी लेकिन फिर भी शिव की नजरों में कामदेव दोषी है क्योंकि कामदेव प्रेम शरीर तक सीमित रखते हैं और उसे वासना में बदलने का अवसर देते हैं।
लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं और खुशियां मनाते हैं (Unspalsh)
आखिरकार शिवजी ने कामदेव को जीवित किया और उनका नाम मनसिज रख दिया। उन्होंने कामदेव से कहा कि तुम अशरीरी हो। जिस दिन कामदेव को जीवित किया गया उस दिन फागुन मास की पूर्णिमा ही थी और लोगों ने रात में होलिका दहन किया था। जिसके बाद सुबह तक होली की आग में वासना जल चुकी थी और प्रेम प्रकट हो चुका था। इसीलिए कामदेव विजय उत्सव मनाने लगे इसी दिन को होली का दिन कहा जाता है। लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं और खुशियां मनाते हैं।
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