साल 1985 में जब देश की बागडोर राजीव गांधी के हाथों में थी, तब हुआ एक बड़ा स्कैंडल [Sora Ai] 
इतिहास

एक स्कैंडल जिसने सरकारी सिस्टम की सबसे कमजोर कड़ी को बेनकाब कर दिया

यह वही कहानी है जब देश की सबसे ताक़तवर कुर्सी से जुड़े दस्तावेज़ सरेआम उड़ाए जा रहे थे, और किसी को भनक तक नहीं थी। ये सिर्फ एक स्कैंडल नहीं था, बल्कि एक ऐसा आईना था जिसने सिस्टम की सबसे कमजोर कड़ी को उजागर कर दिया।

Sarita Prasad

साल 1985 (1985 Scandal) में जब देश की बागडोर राजीव गांधी के हाथों में थी, तब हुआ एक बड़ा स्कैंडल जिसने पूरे सरकार की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा कर दिया था। उस समय राजीव गांधी (Rajiv Gandhi Government) को एक आधुनिक और टेक्नोलॉजी-फ्रेंडली नेता के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन ठीक उसी दौर में भारत सरकार के भीतर से एक ऐसी खबर निकली जिसने पूरे सत्ता तंत्र की नींव हिला दी। वो खबर थी एक खतरनाक जासूसी स्कैंडल की, जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय यानी PMO से बेहद गोपनीय दस्तावेज (Confidential Documents Of 1985) चुपचाप लीक किए जा रहे थे।

राजीव गांधी को एक आधुनिक और टेक्नोलॉजी-फ्रेंडली नेता के रूप में देखा जा रहा था। [Wikimedia Commons]

इस सनसनीखेज मामले का मुख्य किरदार बना एक नाम “कूमार नारायण”(Coomar Narain), जो सरकारी अफसर बनकर ऐसा खेल खेल रहा था, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। रक्षा मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक, हर जगह की गोपनीय सूचनाएं लीक हो रही थीं, और सरकार को इसकी भनक तक नहीं थी। जब पर्दा उठा, तो सामने आई देश के भीतर की सबसे बड़ी जासूसी साज़िश, जिसने न केवल राजीव गांधी सरकार (Rajiv Gandhi Government) की साख पर सवाल खड़े कर दिए, बल्कि पूरे प्रशासनिक सिस्टम की सुरक्षा व्यवस्था को भी कटघरे में खड़ा कर दिया।

यह वही कहानी है जब देश की सबसे ताक़तवर कुर्सी से जुड़े दस्तावेज़ सरेआम उड़ाए जा रहे थे, और किसी को भनक तक नहीं थी। ये सिर्फ एक स्कैंडल नहीं था, बल्कि एक ऐसा आईना था जिसने सिस्टम की सबसे कमजोर कड़ी को उजागर कर दिया।

जब एक स्टेनोग्राफर ने रची स्कैंडल की पूरी कहानी

सरकारी सिस्टम में स्टेनोग्राफरों को अक्सर पर्दे के पीछे रहने वाले कर्मचारी माना जाता है, लेकिन 1980 के दशक में एक स्टेनोग्राफर ने ऐसा जाल बुना, जिसने भारत सरकार की नींव को हिला दिया। नाम था कूमार नारायण (Coomar Narain) एक ऐसा व्यक्ति जो टाइपिस्ट भर नहीं था, बल्कि सत्ता के गलियारों में घूमती गोपनीय जानकारियों को पहचानने और उन्हें भुनाने का हुनर जानता था। कूमार नारायण का जन्म 1925 में कोयंबटूर में हुआ था। 1949 में उन्होंने दिल्ली आकर विदेश मंत्रालय में स्टेनोग्राफर की नौकरी शुरू की। कुछ समय बाद उन्होंने नौकरी छोड़ी और एक इंजीनियरिंग उपकरण कंपनी में काम करने लगे। पर असल पहचान उन्हें 1980 के दशक में एक बड़े जासूसी कांड (Big Espionage Case) के मुख्य किरदार के रूप में मिली।

नारायण को इस बात का गहरा बोध था कि कैसे स्टेनोग्राफर और निजी सचिव गोपनीय दस्तावेज़ों तक सबसे पहले पहुंचते हैं। [Sora Ai]

नारायण को इस बात का गहरा बोध था कि कैसे स्टेनोग्राफर और निजी सचिव गोपनीय दस्तावेज़ों तक सबसे पहले पहुंचते हैं। उन्हें पता था कि इन काग़ज़ों की कीमत सिर्फ काग़ज़ की नहीं, सत्ता की होती है। इसी सोच के साथ उन्होंने पीएमओ समेत कई मंत्रालयों से बेहद संवेदनशील दस्तावेज़ इकट्ठा करने शुरू कर दिए, और उन्हें अलग-अलग विभागों या निजी कंपनियों तक पहुंचाया। इस पूरे षड्यंत्र में उन्होंने अपने पुराने संपर्कों और कुछ और सहयोगियों की मदद से सरकार की गोपनीयता को व्यापार का ज़रिया बना लिया।

यह मामला सिर्फ जासूसी नहीं था, बल्कि पूरे प्रशासनिक सिस्टम में भरोसे की उस कड़ी पर हमला था, जो हर सरकारी दस्तावेज को सुरक्षित समझती थी। स्टेनोग्राफर की कुर्सी पर बैठा यह एक शख्स, चुपचाप भारत सरकार की आंतरिक सूचनाओं को लीक कर रहा था, और किसी को भनक तक नहीं थी।

गुप्त दस्तावेजों का जाल: जब हर मंत्रालय में थे कुमार नारायण के अपने लोग

कुमार नारायण (Coomar Narain) कोई आम व्यक्ति नहीं थे। भले ही वो एक समय में सिर्फ़ एक स्टेनोग्राफर थे, लेकिन उन्होंने सरकार के लगभग हर अहम मंत्रालय में अपने गहरे संपर्क बना लिए थे। विदेश मंत्रालय से अपना करियर शुरू करने वाले नारायण को अच्छी तरह पता था कि कहां से कौन सी जानकारी निकाली जा सकती है और किससे निकाली जा सकती है। वो सिर्फ़ खुद ही नहीं, बल्कि उन्होंने ऐसा नेटवर्क तैयार कर लिया था जो पीएमओ, रक्षा, गृह और वित्त जैसे मंत्रालयों तक फैला हुआ था।

कुमार नारायण (Coomar Narain) कोई आम व्यक्ति नहीं थे। भले ही वो एक समय में सिर्फ़ एक स्टेनोग्राफर थे, लेकिन उन्होंने सरकार के लगभग हर अहम मंत्रालय में अपने गहरे संपर्क बना लिए थे। [Sora Ai]

कई स्टेनोग्राफ़र और निजी सचिव उनके संपर्क में थे जो अहम दस्तावेजों की कॉपी बनाकर उन्हें देते थे। इन कागज़ों में कैबिनेट नोट्स, विदेश नीति के मसौदे, रक्षा सौदों के ब्यौरे और कई बार भारत की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी जानकारियाँ तक शामिल थीं। कुमार नारायण (Coomar Narain) अपने संपर्कों के ज़रिए इन दस्तावेजों को न सिर्फ़ हासिल करता, बल्कि कुछ ख़ास लोगों तक पहुँचाता भी था, जिसके बदले उसे पैसे मिलते थे। ये एक सूचना की काली मंडी जैसी बन चुकी थी, जिसमें सत्ता के गलियारों की सबसे बड़ी बातें बिक रही थीं, और कोई शक भी नहीं कर पा रहा था।

श्रीलंका बैठक में हुआ स्कैंडल का खुलासा

1985 की शुरुआत में जब भारत और श्रीलंका के बीच एक अहम बैठक होनी थी, तब किसी को अंदाजा भी नहीं था कि इसी मुलाकात से एक बड़े जासूसी स्कैंडल (Big Espionage Case) का भंडाफोड़ होगा। इस बैठक में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से संबंधित कुछ बेहद गोपनीय दस्तावेज श्रीलंकाई अधिकारियों के पास पहले से मौजूद थे। भारतीय प्रतिनिधिमंडल यह देखकर हैरान रह गया कि बातचीत शुरू होने से पहले ही श्रीलंका को भारत के प्रस्तावों और रणनीतियों की पूरी जानकारी थी। शुरुआत में तो इसे संयोग माना गया, लेकिन जब दो-तीन बैठकों में लगातार ऐसा होने लगा, तो भारतीय एजेंसियों को शक हुआ कि कहीं न कहीं से बेहद संवेदनशील जानकारी लीक हो रही है।

1985 की शुरुआत में जब भारत और श्रीलंका के बीच एक अहम बैठक होनी थी, तब किसी को अंदाजा भी नहीं था कि इसी मुलाकात से एक बड़े जासूसी स्कैंडल (Big Espionage Case) का भंडाफोड़ होगा। [Sora Ai]

इसके बाद खुफिया एजेंसियों ने सतर्कता बढ़ाई और दस्तावेजों के ट्रैकिंग पर काम शुरू किया। जांच में सामने आया कि कुछ गोपनीय दस्तावेज़ों की कॉपी सरकार के उच्चस्तरीय अधिकारियों के अलावा भी किसी और तक पहुंच रही थी। इसने पूरे सरकारी तंत्र को हिला कर रख दिया। धीरे-धीरे कड़ियाँ जुड़ती गईं और शक की सुई कूमार नारायण की ओर घूमने लगी, जिनके पास विदेश मंत्रालय और पीएमओ से जुड़े कई संपर्क थे। यही वह मोड़ था, जहां से एक गुप्त दस्तावेज़ों के व्यापारी की पोल खुलनी शुरू हुई और सरकार को यह समझ आया कि घर के अंदर ही कोई अपने राज़ बाहर फैला रहा था।

विदेशी जासूसों से गुप्त रिश्ता: फ्रेंच एजेंसी से जुड़े थे कूमार नारायण

जांच में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि कूमार नारायण (Coomar Narain) का संपर्क फ्रांस की खुफिया एजेंसी डीजीएसई (DGSE) से था। वह कई वर्षों से फ्रांसीसी एजेंटों को भारत सरकार से जुड़े गोपनीय दस्तावेज़ सौंप रहे थे। डीजीएसई उन्हें इन जानकारियों के बदले पैसे और अन्य सुविधाएं देती थी। नारायण न केवल खुद यह जानकारी देता था, बल्कि उसने मंत्रालयों के कुछ कर्मचारियों को भी इस गोरखधंधे में शामिल कर लिया था। फ्रेंच एजेंसी भारत की विदेश नीति, रक्षा रणनीति और आर्थिक योजनाओं तक की जानकारी ले रही थी और यह सब एक स्टेनोग्राफर के जरिए हो रहा था।

जांच में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि कूमार नारायण (Coomar Narain) का संपर्क फ्रांस की खुफिया एजेंसी डीजीएसई (DGSE) से था। [X]

शक की सूई कैसे घूमी कूमार नारायण की ओर?

1985 में जब भारत और श्रीलंका के बीच एक संवेदनशील बैठक होनी थी, तभी उस बैठक से जुड़े गोपनीय बिंदु अचानक ही विदेशी मीडिया में लीक हो गए। सरकार के कान खड़े हो गए कि इतनी महत्वपूर्ण जानकारी बाहर कैसे गई? जांच शुरू हुई और सबसे पहले उन मंत्रालयों की निगरानी बढ़ाई गई जो इस बैठक से जुड़े थे। सूत्रों ने बताया कि कुछ दस्तावेज़ों की भाषा हूबहू वही थी जो टाइप की गई थी। यहीं से शक स्टेनोग्राफरों पर गया।

कड़ी निगरानी और इंटरसेप्ट के ज़रिए एक ऐसा नाम सामने आया जो कई मंत्रालयों में “दोस्ताना संबंधों” के लिए मशहूर था, कूमार नारायण। [Sora Ai]

कड़ी निगरानी और इंटरसेप्ट के ज़रिए एक ऐसा नाम सामने आया जो कई मंत्रालयों में “दोस्ताना संबंधों” के लिए मशहूर था, कूमार नारायण। उनकी गतिविधियों को ट्रैक किया गया तो पता चला कि वो एक ही दिन में कई अलग-अलग मंत्रालयों के अधिकारियों से मिलते हैं और दस्तावेजों को बिना अधिक पूछताछ के इधर-उधर ले जाते हैं। इसके बाद खुफिया एजेंसियों ने उनकी कॉल्स, मीटिंग्स और बैंक ट्रांज़ेक्शन पर नज़र रखनी शुरू की। कई अनऑथराइज़्ड दस्तावेजों की फोटोकॉपी उनके संपर्कों के पास मिलने लगी। धीरे-धीरे साफ़ हो गया कि कूमार नारायण ही इस जासूसी नेटवर्क की जड़ हैं।

जासूसी का जाल: जब I.B. के दस्तावेज़ हुए लीक और नामों की लिस्ट आई सामने

1985 का यह जासूसी कांड तब और ज़्यादा गंभीर हो गया, जब जांच के दौरान इंटेलिजेंस ब्यूरो (I.B.) के बेहद संवेदनशील दस्तावेज़ों की फोटोस्टेट कॉपी कुछ ऐसे लोगों के पास पाई गई, जिनका सरकार से कोई सीधा संबंध नहीं था। ये दस्तावेज़ प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) और रक्षा मंत्रालय की संयुक्त बैठकों से जुड़े थे, जिनमें देश की सुरक्षा, रणनीति और कूटनीति से संबंधित गोपनीय जानकारियां थीं। जांच में सामने आया कि कूमार नारायण ही इस लीक के मुख्य सूत्रधार थे, लेकिन वो अकेले नहीं थे।

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उनके साथ कम से कम सात और लोग इस नेटवर्क का हिस्सा थे, जिनमें से कुछ सरकारी कर्मचारी थे और कुछ निजी कंपनियों में काम करते थे। इनमें से एक महिला टाइपिस्ट, दो सरकारी बाबू और एक निजी कंपनी का अधिकारी भी शामिल था, जो विदेशों को जानकारी बेचने का माध्यम बना। खास बात यह थी कि इन सभी लोगों की पहुंच उच्च स्तर के दस्तावेज़ों तक थी, और वे कूमार नारायण के ज़रिए इनकी फोटोकॉपी बनवा कर बाहर पहुंचा रहे थे। जांच एजेंसियों ने जैसे-जैसे छानबीन तेज़ की, कई चौंकाने वाले नाम सामने आए, जिससे सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के बीच चिंता की लहर दौड़ गई।

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छापेमारी, तिहाड़ की सलाखें और नारायण का कबूलनामा: जब सच्चाई सामने आई

जैसे-जैसे जांच एजेंसियों ने जासूसी कांड की परतें खोलनी शुरू कीं, कूमार नारायण पर संदेह गहराता गया। आखिरकार इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीम ने उनके ऑफिस और घर पर छापेमारी की। इस दौरान कई महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेज़ों की फोटोकॉपी, टाइप की गई रिपोर्ट्स और कुछ संदिग्ध कागज़ बरामद हुए, जो सीधे-सीधे उन्हें जासूसी से जोड़ते थे। सबूत इतने पुख्ता थे कि पुलिस ने उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया। पूछताछ के दौरान नारायण ने आखिरकार अपना जुर्म कबूल कर लिया।

इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीम ने उनके ऑफिस और घर पर छापेमारी की। [X]

उन्होंने माना कि वो कई सालों से अलग-अलग मंत्रालयों के कर्मचारियों से जान-पहचान बढ़ाकर महत्वपूर्ण कागज़ हासिल करते थे, और उन्हें विदेशी एजेंसियों तक पहुंचाते थे। उनकी गिरफ्तारी के बाद पूरे सरकारी तंत्र में भय और अविश्वास का माहौल बन गया। सवाल उठने लगे कि एक पूर्व स्टेनोग्राफर कैसे इतने बड़े स्तर पर गोपनीय जानकारी लीक कर सकता था, और उसे इतने वर्षों तक किसी ने पकड़ा क्यों नहीं? नारायण का कबूलनामा सरकार के लिए एक बड़ा झटका था, जिसने सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया। [Rh/SP]

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