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फिर गरम हुआ मराठा आरक्षण का मुद्दा: जानिए क्या है मराठों की मांग

मराठा आरक्षण आज महाराष्ट्र का सबसे गर्म मुद्दा बन गया है। गांव से लेकर शहर तक हर जगह यही चर्चा है कि मराठा आरक्षण क्यों ज़रूरी है और सरकार क्यों इसे लागू नहीं कर पा रही। यह मांग अब सिर्फ सामाजिक या आर्थिक मुद्दा नहीं रही, बल्कि राजनीति और चुनाव का भी बड़ा सवाल बन चुकी है। हर पार्टी जानती है कि मराठा समाज बड़ा वोट बैंक है, इसलिए मराठा आरक्षण पर कोई भी साफ़ जवाब देने से बचती है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

मराठा आरक्षण की मांग की शुरुआत

मराठा आरक्षण की मांग अचानक शुरू नहीं हुई। 1990 के दशक से ही यह आवाज़ उठती आई है। उस समय भी मराठा किसान कर्ज़ में डूबे थे, उनकी फसलें बरबाद हो रही थीं और पढ़े-लिखे युवा नौकरी के लिए भटक रहे थे। लेकिन असली ताक़त इस आंदोलन को 2016 में मिली, जब “मराठा क्रांति मोर्चा” शुरू हुआ। लाखों लोग बिना किसी हंगामे के सड़कों पर उतरे और शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन किया। छोटे बच्चे, महिलाएं और बुज़ूर्ग सब इसमें शामिल हुए। यह पहली बार था जब मराठा (Maratha) समाज ने इतनी शांत और एकजुट ताक़त दिखाई।

2018 में महाराष्ट्र (Maharashtra) सरकार ने 16% मराठा आरक्षण देने का कानून बनाया। मराठा समाज को लगा कि अब उनकी पीढ़ियों की मेहनत सफल हुई। लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस आरक्षण को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 50% से ज़्यादा आरक्षण नहीं हो सकता, और मराठा आरक्षण उस सीमा को तोड़ता है। इसके बाद से मराठा समाज खुद को धोखा खाया हुआ महसूस करता है। सरकार ने कुछ राहतें जैसे छात्रवृत्ति, नौकरी की तैयारी के लिए हॉस्टल और कर्ज़ माफी दीं, लेकिन यह सब असली मांग के सामने बहुत छोटा लगा।

मराठा आरक्षण और जाति जनगणना

मराठा आरक्षण की सबसे बड़ी अड़चन है, सबूत की कमी। संविधान कहता है कि आरक्षण केवल उन जातियों को दिया जा सकता है जो “सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी” हों। लेकिन इसके लिए ठोस आंकड़े चाहिए। आज तक भारत में पूरी जाति जनगणना नहीं हुई। यही कारण है कि मराठा आरक्षण अदालत में टिक नहीं पाया। अगर जाति जनगणना होगी तो साफ़ हो जाएगा कि मराठा समाज में कितने लोग गरीब हैं, कितने अनपढ़ हैं और कितने खेती पर निर्भर हैं। बिना इस डेटा के मराठा आरक्षण सिर्फ राजनीति का खेल लगता है।

मराठा समाज कहता है कि वे संख्या में बड़े हैं, लेकिन उनकी हालत कमज़ोर है। ज़्यादातर लोग खेती करते हैं और खेती आज घाटे का सौदा बन चुकी है। फसल खराब होती है, कर्ज़ बढ़ता है और किसान आत्महत्या (Farmer Suicide) कर लेते हैं। पढ़ाई में भी गांव के बच्चों को अच्छे स्कूल और कोचिंग नहीं मिलती, इसलिए वे नौकरी की दौड़ में पीछे रह जाते हैं। इन हालातों में मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) उनके लिए सहारा है। लेकिन दूसरी ओर कानून कहता है कि आरक्षण की सीमा 50% है। अगर मराठा आरक्षण जोड़ दिया जाए तो यह सीमा टूटेगी और दूसरी जातियों का हक़ मारा जाएगा। यही इस मांग की सबसे बड़ी दिक़्क़त है।

मराठा समाज कहता है कि वे संख्या में बड़े हैं, लेकिन उनकी हालत कमज़ोर है।

राजनीति और मराठा आरक्षण

मराठा आरक्षण ने नेताओं को मुश्किल में डाल दिया है। अगर वे मराठा आरक्षण का समर्थन करते हैं तो ओबीसी जातियां गुस्सा हो जाती हैं। अगर विरोध करते हैं तो मराठा समाज नाराज़ हो जाता है। इसलिए नेता एक तरह से दो नावों पर सवार हैं। वे बार-बार कहते हैं कि “हम मराठा आरक्षण के पक्ष में हैं,” लेकिन अदालत और संविधान का हवाला देकर कोई पक्का कदम नहीं उठाते। इससे मराठा समाज को लगता है कि नेता सिर्फ वोट लेने के लिए मीठी बातें कर रहे हैं।

चुनावों पर असर

महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में मराठा समाज की ताक़त बहुत बड़ी है। विधानसभा (Vidhan Sabha) और लोकसभा (Lok Sabha) दोनों चुनावों में इनका वोट परिणाम तय कर सकता है। इसलिए हर पार्टी मराठा आरक्षण पर “हाँ भी कहती है और ना भी नहीं कहती।” अगर मराठा आरक्षण दिया गया तो ओबीसी (OBC) और अन्य समाज अलग हो जाएंगे। अगर नहीं दिया गया तो मराठा समाज गुस्से में वोट बदल देगा। इसीलिए यह मुद्दा हर चुनाव के समय सबसे अहम बन जाता है।

मराठा आरक्षण का दूसरी जातियों पर असर

मराठा आरक्षण सिर्फ मराठों का मुद्दा नहीं है। इसका असर बाकी समाजों पर भी पड़ता है।

ओबीसी समाज (OBC): इन्हें सबसे बड़ा डर है कि अगर मराठा आरक्षण मिला तो उनकी सीटें कम हो जाएंगी। इसलिए वे खुलकर विरोध कर रहे हैं।

दलित और आदिवासी (Dalit and Adivasi): सीधे असर में नहीं हैं, लेकिन जाति जनगणना होने पर उनकी स्थिति भी बदल सकती है।

सामान्य वर्ग (General): पहले से ही 50% से ज़्यादा आरक्षण की वजह से इनके पास कम मौके हैं। मराठा आरक्षण मिलने पर इनकी मुश्किल और बढ़ जाएगी।

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क्या मराठा आरक्षण असली समाधान है?

यह सवाल सबसे बड़ा है। मराठा आरक्षण कुछ हद तक मदद करेगा, जैसे बच्चों को कॉलेज में सीट मिलेगी या नौकरी में थोड़ी आसानी होगी। लेकिन क्या यही समाज की असली समस्या है? असली मुश्किल है, खराब शिक्षा (Education), खेती में संकट और बेरोज़गारी (Unemployment) । अगर सरकारी स्कूलों में अच्छे टीचर भेजे, गांवों में कॉलेज खोले, किसानों को सही दाम दिलवाए और युवाओं को स्किल ट्रेनिंग दे, तो यह आरक्षण से भी बड़ा काम होगा। मराठा आरक्षण एक सहारा है, लेकिन असली इलाज नहीं।

मराठा आरक्षण एक सहारा है, लेकिन असली इलाज नहीं।

निष्कर्ष

मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) की लड़ाई लंबे समय से चल रही है। समाज का दर्द असली है, लेकिन समाधान आसान नहीं है। अदालत की शर्तें, राजनीति की चालें और अलग-अलग समाज का विरोध इसे और कठिन बना देता है। जब तक जाति जनगणना (Census) और ठोस सुधार नहीं होंगे, तब तक मराठा आरक्षण आधा-अधूरा ही रहेगा। असली बदलाव तब आएगा जब सरकार आरक्षण के साथ-साथ शिक्षा, खेती और रोज़गार पर भी उतना ही ध्यान देगी। तभी मराठा आरक्षण की लड़ाई खत्म होगी और समाज को सही न्याय मिलेगा। [Rh/Eth/BA]

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