मनाली का हिडिंबा देवी मंदिर1553 ईस्वी में कुल्लू के राजा बहादुर सिंह द्वारा बनवाया गया था।  (AI)
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मनाली का हिडिंबा देवी मंदिर: महाभारत से जुड़ी आस्था, आपदा से बचाव की प्रार्थना और राजघराने की अनोखी परंपरा

मनाली (Manali) का हिडिंबा देवी मंदिर (Hidimba Temple) सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि महाभारत (Mahabharat) काल से जुड़ी गाथाओं, अनोखी वास्तुकला और लोकपरंपराओं का जीवित प्रतीक है। आपदाओं से बचाव के लिए की जाने वाली विशेष पूजा और दशहरे से जुड़ी अनूठी परंपराएँ इसे हिमाचल की आस्था का अद्वितीय तीर्थस्थल बनाती हैं।

न्यूज़ग्राम डेस्क

हिमाचल प्रदेश का मनाली (Manali) केवल प्राकृतिक सौंदर्य के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी आस्था और धार्मिक मान्यताओं के लिए भी प्रसिद्ध है। देवदार के घने जंगलों के बीच बसा हिडिंबा देवी मंदिर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यह मंदिर महाभारत (Mahabharat) काल से जुड़ा हुआ माना जाता है और स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है। जब-जब आपदा आती है, यहां के लोग देवी हिडिंबा की शरण में पहुंचकर प्रार्थना और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। बीते दिनों जब प्रदेश में बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से हाहाकार मचा, तो लोगों ने मंदिर में रात-दिन पूजा शुरू कर दी।

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

मनाली का हिडिंबा देवी मंदिर (Hidimba Temple)1553 ईस्वी में कुल्लू के राजा बहादुर सिंह द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर पगौड़ा शैली में बना है और इसकी लकड़ी की छतों व अद्भुत नक्काशी को देखने देश-दुनिया से श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं। यहां देवी की प्रतिमा नहीं है, बल्कि उनके चरण चिह्नों की पूजा की जाती है। माना जाता है कि यह चरण चिह्न एक विशाल चट्टान पर बने हैं, जिनका आकार सामान्य मानव से कहीं बड़ा है। इससे यह विश्वास और गहरा होता है कि देवी हिडिंबा विशालकाय रही होंगी।

हिडिंबा मंदिर की कथा सीधे-सीधे महाभारत काल से जुड़ी है।

महाभारत काल की कथा

हिडिंबा मंदिर (Hidimba Temple) की कथा सीधे-सीधे महाभारत (Mahabharat) काल से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब पांडव अपने वनवास के दौरान मनाली क्षेत्र में पहुंचे, तो यहां हिडिंब नामक राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। हिडिंब अपनी शक्ति और आतंक के लिए पूरे क्षेत्र में मशहूर था। उसने पांडवों को पकड़ने की योजना बनाई, लेकिन भीम ने उससे युद्ध कर उसका वध कर दिया।

भीम की वीरता और साहस से प्रभावित होकर हिडिंबा ने उससे विवाह कर लिया। उनके विवाह से घटोत्कच का जन्म हुआ, जिसने महाभारत युद्ध में पांडवों की ओर से एक वीर योद्धा के रूप में हिस्सा लिया। बाद में हिडिंबा ने कठोर तपस्या की और देवी का स्वरूप धारण कर लिया। तभी से उन्हें देवी हिडिंबा के रूप में पूजा जाने लगा।

एक अन्य लोककथा के अनुसार, हिडिंबा ने प्रतिज्ञा ली थी कि जो भी उनके भाई हिडिंब को युद्ध में पराजित करेगा, वही उनका पति बनेगा। जब भीम ने हिडिंब को हराया, तो उन्होंने भीम से विवाह कर लिया। विवाह के बाद जब पांडव अपना वनवास पूरा कर आगे बढ़ गए, तो हिडिंबा अपने पुत्र घटोत्कच के साथ मनाली के डूंगरी क्षेत्र में रह गईं और यहीं तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर लोगों ने उन्हें देवी स्वरूप मान लिया।

भीम की वीरता और साहस से प्रभावित होकर हिडिंबा ने उससे विवाह कर लिया।

आस्था और मान्यता

हिडिंबा देवी को स्थानीय लोग शक्ति और संरक्षण की देवी मानते हैं। विश्वास है कि वह आज भी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और संकट के समय उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। जब भी कोई आपदा आती है, लोग मंदिर में एकत्र होकर विशेष पूजा और अनुष्ठान करते हैं। हाल ही में प्रदेश में आई प्राकृतिक आपदा बाढ़ और भूस्खलन से बचाव की गुहार लगाते हुए लोगों ने मंदिर में रात-दिन पूजा का आयोजन किया।

कुल्लू क्षेत्र में इस पूजा को छोटी जगती कहा जाता है। इसमें देवी-देवताओं से प्रार्थना की जाती है कि प्रकृति के प्रकोप को रोका जाए और लोगों पर दया की जाए। माना जाता है कि देवी हिडिंबा के आदेश से ही यह अनुष्ठान होता है। देवी का संदेश भी दिया गया कि देवस्थलों से हो रही छेड़छाड़ बंद की जाए, अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

हिडिंबा देवी का कुल्लू दशहरा उत्सव से गहरा संबंध है। कुल्लू के राजघराने की आराध्य देवी मानी जाने वाली हिडिंबा को दादी कहा जाता है। परंपरा के अनुसार, जब दशहरा के दौरान देवी हिडिंबा आती हैं, तो पूरा राजपरिवार उनसे मिलने के लिए छिप जाता है। यह इसलिए किया जाता है क्योंकि देवी को परिवार की सबसे वरिष्ठ सदस्य माना जाता है। उनके बुलाने पर ही राजपरिवार बाहर आता है और उनका आशीर्वाद लेता है। इसके बाद ही रघुनाथ जी की रथयात्रा निकाली जाती है।

हिडिंबा देवी का कुल्लू दशहरा उत्सव से गहरा संबंध है।

हिडिंबा देवी का राजघराने से संबंध

किंवदंती है कि भगवान कृष्ण ने हिडिंबा से कहा था कि यदि वह पांडवों के साथ जाएंगी तो हमेशा राक्षसी कहलाएंगी। लेकिन यदि वह मनाली के शरवरी माता मंदिर के पास तपस्या करेंगी, तो उन्हें कुल देवी का स्थान मिलेगा। हिडिंबा ने कठोर तपस्या की और मां भगवती ने उन्हें वरदान दिया। एक समय बाद कुल्लू के एक राजवंशी ने उन्हें दादी के रूप में पूजाना शुरू किया और तभी से उन्हें कुल्लू राजघराने की दादी कहा जाने लगा।

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आज हिडिंबा देवी मंदिर (Hidimba Temple) सिर्फ धार्मिक महत्व का स्थान नहीं, बल्कि पर्यटन का भी बड़ा केंद्र है। हर साल मई महीने में हिडिंबा मेला लगता है, जिसमें स्थानीय संस्कृति, परंपराएं और लोककलाएं देखने को मिलती हैं। मंदिर की अनूठी वास्तुकला, इसकी पौराणिक कथा और स्थानीय लोगों की आस्था इसे और भी विशेष बना देती है।

हाल के दिनों में जब हिमाचल प्रदेश में बारिश और बाढ़ ने काफी क्षति पहुँचाया, तब मनाली और कुल्लू के लोग फिर से हिडिंबा देवी की शरण में पहुंचे। मंदिर में लगातार पूजा, हवन और विशेष अनुष्ठान किए जा रहे हैं। लोगों का विश्वास है कि देवी हिडिंबा उनकी रक्षा करेंगी और आपदाओं से बचाएंगी।

आज हिडिंबा देवी मंदिर सिर्फ धार्मिक महत्व का स्थान नहीं, बल्कि पर्यटन का भी बड़ा केंद्र है।

निष्कर्ष

हिडिंबा देवी मंदिर (Hidimba Temple) केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हिमाचल की संस्कृति, पौराणिक इतिहास और आस्था का जीवित प्रतीक है। इस मंदिर से हमें यह सिख मिलता है कि किस तरह प्राचीन कथाएं और परंपराएं आज भी लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। महाभारत (Mahabharat) काल से लेकर आधुनिक समय तक, हिडिंबा देवी की कथा लोगों की श्रद्धा और विश्वास को जीवित रखती है। [Rh/PS]

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