Who Was Vibhishana's Daughter : माता सीता ने त्रिजटा को वरदान दिया था कि कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन उन्हें भी देवी स्वरूप में पूजा जाएगा। (Wikimedia Commons) 
धर्म

जानिए कौन है विभीषण की पुत्री, बनारस में है इनका मंदिर, केवल एक दिन लगती है भक्तो की भीड़

विभीषण की पुत्री का वर्णन बहुत सुंदर और अच्छे विचारों वाली राक्षसी के रूप में किया गया है। वे राक्षस कुल में जन्म लेने वाली बहुत बुद्धिमान स्त्री थीं।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Who Was Vibhishana's Daughter : रामायण में कई ऐसे पात्र हैं जिनके बारे में लोग आज भी नहीं जानते हैं। उनमें से ही एक विभीषण की पुत्री हैं। ये सभी जानते हैं की विभीषण भगवान राम के भक्त थें पर उनकी बेटी के बारे में रामायण में कोई जानकारी नहीं मिलती है। विभीषण की पुत्री का वर्णन बहुत सुंदर और अच्छे विचारों वाली राक्षसी के रूप में किया गया है। वे राक्षस कुल में जन्म लेने वाली बहुत बुद्धिमान स्त्री थीं। कहा जाता है कि भले ही रावण बहुत बलवान था और वह किसी से नहीं डरता था, परंतु वह विभीषण की बेटी से डरता था।

रावण की भतीजी थी त्रिजटा

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, विभीषण की बेटी का नाम त्रिजटा था अर्थात वह रावण की भतीजी हुईं। त्रिजटा की माता का नाम शरमा था। जब माता सीता ने रावण को उसके महल के अंदर रहने से इनकार किया था, तब उन्हें अशोक वाटिका में रखा गया। तब रावण ने राक्षसियों को उनके रक्षक के रूप में नियुक्त किया। सभी राक्षसियां माता सीता को रावण से विवाह करने के लिए मनाने लगीं, तभी त्रिजटा ने अपनी साथी राक्षसियों को खूब डांटा और माता सीता से क्षमा मांगने को कहा।

जब माता सीता ने रावण को उसके महल के अंदर रहने से इनकार किया था, तब उन्हें अशोक वाटिका में रखा गया। (Wikimedia Commons)

क्यों डरता था रावण

त्रिजटा अशोक वाटिका में रहती थीं, लेकिन उन्हें हथियारों और जादुई क्षमताओं का ज्ञान था। वे अपनी दिव्य शक्ति से माता सीता को हर घटना की जानकारी देती रहती थीं। त्रिजटा बाहर से जितनी सामान्य दिखती थीं वह बिल्कुल इसके विपरीत थीं। वह जो कुछ भी कहती थी वह हमेशा सच होता था। रावण यह भी जानता था कि त्रिजटा भगवान विष्णु से प्रेम करती थी और उनकी पूजा करती थी।

बनारस में है इनका मंदिर

माता सीता ने त्रिजटा को वरदान दिया था कि कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन उन्हें भी देवी स्वरूप में पूजा जाएगा। रावण के वध के बाद जब माता सीता वापस लौट रही थीं, तब उन्होंने त्रिजटा को काशी में विराजमान होने की बात कहकर उन्हें एक दिन की देवी होने का वरदान दिया था। तब से कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन उनकी पूजा होती चली आ रही है। यहां साल में एक दिन भक्तों की भीड़ लगी होती है और भक्त मूली-बैंगन का भोग लगाकर विशेष रूप से उनकी पूजा करते हैं।

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