भारत के खनिजों की राजधानी कहा जाने वाला झारखंड खुद रोज़मर्रा की सुविधाओं के लिए तरस रहा है। [Pixabay] 
झारखण्‍ड

जहां धरती के नीचे है खजाना, वहां ऊपर क्यों है गरीबी का राज? झारखंड की अनकही कहानी

भारत के खनिजों की राजधानी कहा जाने वाला झारखंड खुद रोज़मर्रा की सुविधाओं के लिए तरस रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी विकास के नाम पर यहां की तस्वीर आज भी धुंधली है। तो सवाल ये है कि क्या सिर्फ संसाधन होना काफ़ी है?

न्यूज़ग्राम डेस्क

भारत के खनिजों की राजधानी कहा जाने वाला झारखंड खुद रोज़मर्रा की सुविधाओं के लिए तरस रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी विकास के नाम पर यहां की तस्वीर आज भी धुंधली है। तो सवाल ये है कि क्या सिर्फ संसाधन होना काफ़ी है? या उन संसाधनों को लोगों तक पहुंचना भी चाहिए? आखिर संसाधनों से भरपूर राज्य क्यों है इतनी गरीबी का शिकार? क्यों खनिजों से भरी यह धरती देश के सबसे पिछड़े और गरीब राज्यों में शामिल है?

रिपोर्ट्स क्या कहती हैं?


भारत के गरीबी राज्यों की सूचकांक में नीति आयोग के अक्सर रिपोर्ट्स आते रहते हैं नीति आयोग के रिपोर्ट्स के अनुसार बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश भारत के सबसे गरीब राज्यों में शामिल हैं। सूचकांक के अनुसार, बिहार की 51.91 प्रतिशत आबादी गरीब है। इसके बाद झारखंड का नंबर है। वहां की 42.16 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करती है। उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है, जहां के 37.79 प्रतिशत लोग निर्धन हैं। स्वच्छता से वंचित आबादी के मामले में झारखंड की रैंकिंग सबसे खराब है। आपको बता दें कि एक रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी के बाद अगर सबसे ज्यादा खनिज कहीं पाया जाता है तो वह भारत के झारखंड में है, लेकिन फिर भी झारखंड खनिज संपदा से समृद्ध होने के बाद भी पिछड़ा हुआ है। आखिर इसके कारण क्या हैं ? आइए समझते हैं।

झारखंड खनिज संपदा से समृद्ध होने के बाद भी पिछड़ा हुआ है। [Pixabay]

क्यों है झारखंड में इतनी गरीबी?

आपको बता दें कि झारखंड में कुल 32 प्रकार के खनिज पदार्थ मिलते हैं और यदि कोयले की बात करें तो पूरे भारत का एक तिहाई कोयला अकेले झारखंड के पास है। रांची धनबाद बोकारो सिंघम जैसे जिले खनिज से भरपूर है लेकिन फिर भी इन सभी के बावजूद यहां रहने वाले लोग काफी गरीब हैं।

भ्रष्टाचार का बढ़ता वर्चस्व

  • आपको बता दें कि इन खनिजों से आने वाला आए का बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार को चला जाता है। राज्य को सीमित रॉयल्टी मिलती है जो की एक राज्य को चलाने के लिए पर्याप्त बिल्कुल नहीं है।

  • झारखंड के गरीब होने का एक और कारण है यहां पे पाए जाने वाले माफिया। अब चुकी झारखंड में खनिज और खास तौर पर कोयल की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है तो यहां इस कोयले की चोरी करने वाले माफिया भी बहुत अधिक पाए जाते हैं। भ्रष्टाचार के मामले में तो झारखंड काफी ऊपर है जिसका असर यह होता है कि सरकार को टैक्स और इन माफिया के कारण में खनिज और कोयला का कोई भी लाभ नहीं मिल पाता।


  • खनन के ज्यादातर कॉन्ट्रैक्ट बड़ी बाहरी कंपनियों को दे दिए जाते हैं, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता। खनन के कारण हज़ारों आदिवासी और ग्रामीण अपने घरों से बेघर हो जाते हैं। पुनर्वास की योजना या तो अधूरी रहती है या कागज़ों तक सीमित होती है। नतीजतन, उनकी आजीविका भी छिन जाती है।

झारखंड के गरीब होने का एक और कारण है यहां पाए जाने वाले माफिया। अब चुकी झारखंड में खनिज और खास तौर पर कोयल की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है [Pixabay]

निजी सुविधाओं की कमी


  • झारखंड में साक्षरता दर लगभग 66.4% है, जो राष्ट्रीय औसत 74% से कम है। इससे लोगों को अच्छी नौकरियां और अवसर नहीं मिल पाते। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाएं की भी कमी देखने को मिली है यहां बड़े स्तर पर नही स्वास्थ्य केंद्र हैं और ना ही छोटे-छोटे जगह पर सरकारी अस्पताल की व्यवस्था।


  • सड़क, बिजली, इंटरनेट, परिवहन—झारखंड के कई हिस्सों में आज भी ये बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, जिससे निवेश और विकास रुक जाता है।


मजबूर आदिवासी


जब झारखंड और बिहार का विभाजन हुआ था तब सरकार का मुख्य मुद्दा ही यह था कि झारखंड में आदिवासी लोग अधिक है और उनकी सुरक्षा और उनके विकास के लिए झारखंड नाम के एक अलग राज्य का निर्माण किया जाएगा। लेकिन आज इन्हीं आदिवासियों की स्थिति सोचनीय है। आपको बता दें कि झारखंड की लगभग 26% आबादी आदिवासी है। यह प्रदेश आदिवासी संस्कृति और जंगलों का घर है। लेकिन जबसे खनन और उद्योगों का विस्तार हुआ, इन समुदायों की ज़मीनें छीनी गईं और उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया। सामाजिक असमानता और संसाधनों के असमान वितरण ने इन लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया।

झारखंड की लगभग 26% आबादी आदिवासी है। [Pixabay]

राजनीतिक अस्थिरता


राजनीतिक स्थिरता भी इस राज्य के गरीब होने का एक मुख्य कारण माना जा सकता है। यदि कोई राज्य अपनी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों के लिए भी तड़प रहा है तो उसका कारण वहां की सरकार है। झारखंड में अब तक 20 सालों में 10 से ज्यादा मुख्यमंत्री बन चुके हैं। यह राजनीतिक अस्थिरता राज्य की योजनाओं और विकास कार्यों को प्रभावित करती है। नीति बनती है लेकिन लागू नहीं हो पाती। और इसका सीधा असर यहां रहने वाले लोगों पर पड़ता है।

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यह कहना गलत नहीं होगा कि झारखंड की ज़मीन के नीचे भले ही सोना, कोयला और तांबा हो, लेकिन जब तक उस संपदा का लाभ यहां के लोगों तक नहीं पहुंचेगा, तब तक यह प्रदेश गरीब ही कहलाता रहेगा। संसाधनों के सही उपयोग, पारदर्शिता और जनहित को प्राथमिकता देकर ही झारखंड को उसके असली हक और विकास की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है। Rh/SP

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