भारत एक ऐसा देश है जहां हर धर्म, हर जाति, हर भाषा के लोग रहते हैं। [Pixabay] 
महाराष्‍ट्र

भाषा प्रेम या राजनीति? महाराष्ट्र में क्यों थोपी जा रही है मराठी?

भारत एक ऐसा देश है जहां हर धर्म, हर जाति, हर भाषा के लोग रहते हैं। भारत वैसे ही जाति के आधार पर और धर्म के आधार पर बंटा हुआ है, ऐसे में महाराष्ट्र में होने वाली भाषा को लेकर विवाद अब यह भी सवाल खड़ी कर रही है कि क्या हिंदुओं को अब भाषा के आधार पर भी बांट दिया जाएगा?

न्यूज़ग्राम डेस्क

काफी समय से सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं और यह वीडियो महाराष्ट्र का है जहां पर हिंदी बोलने को लेकर वहां के लोग और सरकार के द्वारा उन्हें बेइज्जत किया जा रहा है। थप्पड़ मारते हुए वीडियो बनाई जा रहे हैं और मराठी बोलने को लेकर दबाव दिया जा रहा है। ऐसे में एक सवाल खड़ा होता है की महाराष्ट्र में मराठी भाषा प्रेम की भाषा है या सिर्फ राजनीति का एक माध्यम? इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा होता है कि आखिर महाराष्ट्र में मराठी भाषा को बोलने के लिए वहां के हिंदी भाषी लोगों पर दबाव क्यों बनाया जा रहा है? मराठी भाषा को लेकर एक नई बहस छिड़ी है, और यह बहस मातृभाषा की नहीं, मजबूरी में बोली जा रही मराठी की है।


क्या भाषा के आधार पर हो रहा है हिंदुओं का बंटवारा?

भारत एक ऐसा देश है जहां हर धर्म, हर जाति, हर भाषा के लोग रहते हैं। भारत वैसे ही जाति के आधार पर और धर्म के आधार पर बंटा हुआ है, ऐसे में महाराष्ट्र में होने वाली भाषा को लेकर विवाद अब यह भी सवाल खड़ी कर रही है कि क्या हिंदुओं को अब भाषा के आधार पर भी बांट दिया जाएगा? मुंबई और पुणे जैसे बहुभाषी शहरों में गैर-मराठी भाषियों की एक बड़ी संख्या रहती है। यहां हिंदी, उर्दू, गुजराती, कन्नड़, तेलुगु और अन्य भाषाएं बोलने वाले लोग भी बसे हैं। लेकिन राजनीतिक पार्टियों, सामाजिक संगठनों और प्रशासन की ओर से मराठी को ज़रूरी बनाने की कोशिशें अब सवालों के घेरे में हैं। हालांकि सोचने वाली बात यह है की महाराष्ट्र में मराठी बोलने वाले लोग 80% हैं लेकिन मराठी बोलने का जो दबाव है वह केवल साधारण लोगों पर बनाया जाता है, किसी फिल्म स्टार या किसी बड़े नेताओं पर नहीं। सोचने वाली बात यह भी है कि महाराष्ट्र के मुंबई में बॉलीवुड जो की हिंदी सिनेमा के लिए प्रचलित है उसकी नींव रखी हुई है लेकिन फिर भी मराठी भाषा को लेकर दबाव आम जनता पर बना हुआ है।

मराठी बोलने का जो दबाव है वह केवल साधारण लोगों पर बनाया जाता है [Pixabay]

मराठी को लेकर जबरदस्ती के आरोप

सोशल मीडिया पर कई सारे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिसमें मराठी भाषा बोलने को लेकर लोगों पर दबाव बनाया जा रहा है। हालांकि महाराष्ट्र की सरकार बहुत पहले से मराठी भाषा के समर्थक रही है लेकिन अब यह समर्थन अत्याचार में बदल रहा है।

  • दुकानों और मॉल्स में काम करने वाले कर्मचारियों को मराठी बोलने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

  • यदि ग्राहक से मराठी में संवाद नहीं किया गया, तो फाइन या कार्रवाई की चेतावनी दी जाती है।

  • स्कूलों और कॉलेजों में भी गैर-मराठी छात्रों पर मराठी बोलने का दबाव डाला जा रहा है।

  • कुछ राजनीतिक संगठनों ने तो "मराठी नहीं, तो नौकरी नहीं" जैसे नारे भी दे दिए।

इस तरह की घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या अब महाराष्ट्र में रहने के लिए मराठी बोलना अनिवार्य है? क्या यह लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन नहीं?

क्या है मराठी भाषा का इतिहास

मराठी महाराष्ट्र की मुख्य भाषा है। साथ ही यह भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल एक मान्यता प्राप्त भाषा है। मराठी इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की इंडो-आर्यन शाखा में आती है। मराठी एक समृद्ध और पुरानी भाषा है. साथ ही यह पूरी तरह से स्वतंत्र और पूर्ण विकसित भाषा है. मराठी भाषा का इतिहास और विकास प्राचीन संस्कृत भाषा से हुआ था. संस्कृत से जन्मी भाषाओं में से एक प्राकृत थी जो आम लोगों के बीच बोली जाती थी। प्राकृत की कई उप-भाषाएं थीं, जिनमें से एक थी महाराष्ट्री प्राकृत, जो विशेष रूप से महाराष्ट्र क्षेत्र में बोली जाती थी. वहीं समय के साथ महाराष्ट्री प्राकृत से जैन अपभ्रंश का जन्म हुआ, जो लेखन और बोली दोनों में इस्तेमाल होने लगी. इसके बाद, जैन अपभ्रंश से प्राचीन मराठी का विकास हुआ (1000 से 1300 ईस्वी के बीच), जिसमें मराठी भाषा का शुरुआती रूप देखने को मिलता है फिर 1300 से 1800 ईस्वी के बीच मध्य मराठी का दौर आया, जिसमें मराठी साहित्य की शुरुआत हुई।

महाराष्ट्र का यह रिकॉर्ड रहा है कि वहां की पॉलीटिकल पार्टी हमेशा से वोट बैंक के लिए मराठी को लेकर काफी दबाव डालते रहे हैं। [X]

भारतीय संविधान देता है हर भाषा की आज़ादी

भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को भाषाई स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। कोई भी व्यक्ति अपनी पसंद की भाषा में बोल सकता है, पढ़ सकता है और लिख सकता है। भारत की भाषाई विविधता इसकी सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है। लेकिन जब किसी विशेष भाषा को बाकी भाषाओं पर थोपा जाता है, तो यह लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों पर चोट करता है। यह बात भी सही है कि हर राज्य की अपनी राजकीय भाषा होती है, जैसे कि महाराष्ट्र की मराठी, तमिलनाडु की तमिल और पश्चिम बंगाल की बांग्ला। लेकिन यह भाषा संचालन के लिए होती है, न कि आम नागरिक पर जबरदस्ती थोपने के लिए।महाराष्ट्र में हिंदी भाषी, उर्दू भाषी, गुजराती और दक्षिण भारतीय भाषाओं को बोलने वाले लाखों लोग रहते हैं। वे यहां काम करते हैं, टैक्स भरते हैं, इस राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं। क्या केवल मराठी न बोलने की वजह से उनके साथ दूसरे दर्जे का व्यवहार होना चाहिए? भाषा का सम्मान जरूरी है, लेकिन अन्य भाषाओं का अपमान करके नहीं। विविधता को दबाकर एकता नहीं लाई जा सकती। अगर मराठी को आगे बढ़ाना है, तो प्रेम से, शिक्षा से, प्रोत्साहन से, न कि डर और दबाव से।

वोट बैंक के लिए होते है यह अत्याचार

महाराष्ट्र का यह रिकॉर्ड रहा है कि वहां की पॉलीटिकल पार्टी हमेशा से वोट बैंक के लिए मराठी को लेकर काफी दबाव डालते रहे हैं। महाराष्ट्र में लगभग 80% जनसंख्या मराठी बोलने वाली है और वहां की सरकार को उन्हीं 80% लोगों का समर्थन चाहिए जिसकी वजह से मराठी को लेकर समय-समय पर विवाद देखने को मिलते हैं और जबरदस्ती लोगों के द्वारा उसे अपनाने के लिए कहा जाता है।

मराठी मानुस" जैसे नारे, चुनावी मंचों पर "मराठी की रक्षा" की बातें, ये सब सियासी स्क्रिप्ट का हिस्सा लगने लगी हैं। [X]

मराठी मानुस" जैसे नारे, चुनावी मंचों पर "मराठी की रक्षा" की बातें, ये सब सियासी स्क्रिप्ट का हिस्सा लगने लगी हैं। जब भी चुनाव नजदीक आते हैं, भाषा और अस्मिता के मुद्दे उछाले जाते हैं। लेकिन इनका अंत आम नागरिक के बीच भय और विभाजन के रूप में होता है। क्या कोई भाषा इतनी कमजोर है कि उसे बचाने के लिए ज़बरदस्ती करनी पड़े? यह हाल सिर्फ महाराष्ट्र में नहीं है कर्नाटक में भी भाषा को लेकर कट्टरता देखने को मिली है।

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मराठी महाराष्ट्र की आत्मा है, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन किसी भी भाषा का गौरव तब तक ही टिकता है, जब तक वह स्वतंत्रता के साथ सीखी और अपनाई जाती है। यदि कोई भाषा डर, दबाव और दमन से लोगों पर थोपी जाए, तो वह गर्व की नहीं, विवाद की वस्तु बन जाती है। [Rh/SP]

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