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हिन्दू यदि इस बात को अब नहीं समझेगा, तो वह अपना भविष्य खुद चुन रहा है!

Shantanoo Mishra

भारत में आधुनिक लिबरल संस्कृति ने, हिन्दुओं को कई गुटों में बाँट दिया है। कोई इस धर्म को पार्टी से जोड़ कर देखता है या किसी को यह धर्म ढोंग से भरा हुआ महसूस होता है। किन्तु सत्य क्या है, उससे यह सभी लिब्रलधारी कोसों दूर हैं। यह सभी उस भेड़चाल का हिस्सा बन चुके हैं जहाँ आसिफ की पिटाई का सिक्का देशभर में उछाला जाता है, किन्तु बांग्लादेश में हो रहे हिन्दुओं के नरसंहार को, उनके पुराने कर्मों का परिणाम बताकर अनदेखा कर दिया जाता है। यह वह लोग है जो इस्लामिक आतंकवादियों पर यह कहते हुए पल्ला झाड़ लेते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन जब आतंकी बुरहान वाणी को सुरक्षा बलों द्वारा ढेर किया जाता है तो यही लोग उसे शहीद और मासूम बताते हैं। ऐसे ही विषयों पर मुखर होकर अपनी बात कहने और लिखने वाली जर्मन लेखिका मारिया वर्थ(Maria Wirth) ने साल 2015 में लिखे अपने ब्लॉग में इस्लाम एवं ईसाई धर्म पर प्रश्न उठाते हुए लिखा था कि "OF COURSE HINDUS WON'T BE THROWN INTO HELL", और इसके पीछे कई रोचक कारण भी बताए थे जिनपर ध्यान केंद्रित करना आज महत्वपूर्ण है।

कुरान, गैर-इस्लामियों के विषय में क्या कहता है,

मारिया वर्थ, लम्बे समय से हिंदुत्व एवं सनातन धर्म से जुड़े तथ्यों को लिखती आई हैं, लेकिन 2015 में लिखे एक आलेख में उन्होंने ईसाई एवं इस्लाम से जुड़े कुछ ऐसे तथ्यों को उजागर किया जिसे जानना हम सबके के लिए आवश्यक है। इसी लेख में मारिया ने हिन्दुओं के साथ बौद्ध एवं अन्य धर्मों के लोगों को संयुक्त राष्ट्र में ईसाई एवं इस्लाम धर्म के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की सलाह दी और इसके पीछे उन्होंने यह कारण बताया कि ईसाई एवं इस्लाम दोनों ही धर्मों के बुद्धिजीवी यह मानते हैं कि गैर-ईसाई या गैर-मुस्लिम नर्क की आग में जलेंगे। इसका प्रमाण देते गए उन्होंने क़ुरान की वह आयत साझा की जिसमें साफ-साफ लिखा गया है कि " जो काफिर होंगे, उनके लिये आग के कपड़े काटे जाएंगे, और उनके सिरों पर उबलता हुआ तेल डाला जाएगा। जिस से जो कुछ उनके पेट में है, और उनकी खाल दोनों एक साथ पिघल जाएंगे; और उन्हें लोहे की छड़ों से जकड़ा जाएगा।" (कुरान 22:19-22)

आपको बता दें कि इस्लाम धर्म में गैर-मुस्लिमों को 'काफिर', इस शब्द से सम्बोधित किया जाता है, और खासकर हिन्दुओं को मूर्ति-पूजक या काफिर जैसे कई उप-नामों से बुलाया जाता है। इसके साथ इस्लाम में, कुरान को आदेश के रूप में या एक नयमावली के रूप में देखा जाता है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि इस्लाम के अनुयायी कुरान में कही गई बातों को कभी अनदेखा नहीं करते। किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि जिहाद और आतंकवाद के लिए भी कुरान को ही उत्तरदायी ठहराया जाता है। इस बात को भी मारिया ने अपने लेख में साबित किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि "मानवता के लिए वैश्विक खतरा बन चुका आतंकी संगठन ISIS भी कुरान में कही बातों का ही पालन करता है। और ऐसे कई इस्लामिक आतंकवादी संघठन हैं जो कुरान के कारण ही युवाओं को आतंकी जिहाद के लिए उकसा रहे हैं।"

बाइबिल अधर्मियों के विषय में क्या कहता है,

बहरहाल, मारिया ने सिर्फ इस्लाम को ही अड़े हाथ नहीं लिया, बल्कि 'नर्क की आग' का प्रमाण बाइबिल से भी दिया। बाइबिल, मैथ्यू (13: 49/50) में यह कहा गया है कि "उम्र के अंत में(मृत्यु) ऐसा ही होगा। स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे और उन्हें धधकते हुए भट्ठे में डाल देंगे, जहां उन्हें रोना और गिड़गिड़ाना होगा।" आपको यह भी बता दें कि ईसाई धर्म के अनुयायी गैर-ईसाईयों की कड़ी निंदा करते हैं, उन्हें तरह-तरह के नामों से भी पुकारते हैं, जिसमें सबसे प्रचलित नाम 'अधर्मी' या 'Unholy' है। ईसाईयों की आम भाषा में समझें, तो अधर्मी वह व्यक्ति है जो ईसाई धर्म में विश्वास नहीं रखता। वह चाहे हिन्दू हो, बुद्ध हो या सिख।

अब इन दोनों पक्षों की बातों पर ध्यान दें ऐसा ही प्रतीत होता है कि इस्लाम या ईसाई धर्म के आलावा विश्व में सभी अन्य धर्म के लोग नरक की आग में जलेंगे। लेकिन मारिया ने अपने इस लेख में इस बात को चुनौती देते हुए लिखा है कि "हिंदुओं में आम तौर पर अन्य धर्मों के प्रति कोई द्वेष नहीं होता है और वह दूसरों के प्रति द्वेष रखते भी नहीं हैं। वह बाइबल और ईसाई धर्म का, या कुरान और इस्लाम का सम्मान करते हैं, वह भी बिना यह जाने कि उनमें क्या है। आमतौर पर वह यह भी नहीं देखते कि उनके सम्मान का कोई मोल नहीं है।"

पढ़ते समय इन पंक्तियों को दो परिप्रेक्ष्य से देखा जा सकता है, पहला यह कि हिन्दु 'वसुधैव कटुम्ब्कम' का पालन करते हुए सभी धर्मों का आँख मूंद कर आदर करते हैं या, यह पंक्तियाँ हिन्दुओं पर कटाक्ष हैं, कि वह बिना जाने किसी भी धर्म के प्रति अपना आदर प्रकट कर देते हैं। किन्तु, यह पंक्तियाँ आज के भारत पर सटीक लागू होती है, जहाँ कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी हिन्दुओं द्वारा तालिबान की इसलिए प्रशंसा की जाती है क्योंकि वह प्रेस कॉन्फ्रेंस करता है, और जब एक चर्च में ईसाई पादरी हजारों बच्चों का यौन शोषण करते हैं, तब 'पॉप' द्वारा केवल एक बार माफी मांगने पर उस घिनौने कृत्य को भुला दिया जाता है। किन्तु न तो किसी कथित लिब्रलधारी हिन्दू को देश-विदेश में हुए हिन्दुओं का नरसंहार याद है और न ही भारत के गौरवशाली हिन्दुओं का इतिहास ज्ञात है। आप सभी को इन लिब्रलधारियों की बातें सुनकर भी आश्चर्य होगा क्योंकि इनका मानना यह है कि मुगलों और अंग्रेजों से अधिक प्रगति भारत में कभी नहीं हुई!

इसी नब्ज को पकड़ते हुए मारिया ने अपने लेख में लिखा है कि "स्थिति की गहराई में उतरने की जरूरत है: दुनिया में हर दूसरे बच्चे को सिखाया जाता है कि परम-पिता परमेश्वर की नजर में हिंदू (और अन्य) एक समान नहीं हैं, और बच्चे इस पर विश्वास कर लेते हैं। वास्तव में, बच्चों को सिखाया जाता है कि, यदि वह (हिन्दू या अन्य धर्म) अपने तरीके नहीं सुधरते हैं और सही रास्ते पर नहीं आते हैं, तो वह अनंत काल के लिए नरक की आग में जलेंगे। यानि श्रीकृष्ण, श्री राम, माता सीता, ऋषि-मुनि, स्वामी विवेकानंद, बाबा रामदेव, श्री-श्री रविशंकर, माता अमृतानंदमयी, नरेंद्र मोदी, ऐश्वर्या राय, सचिन तेंदुलकर …, हर एक हिंदू- किसी पर दया नहीं दिखाई जाएगी। उन सभी को 'धधकती भट्टी' में फेंक दिया जाएगा।"

इस्लामी आतताइयों के अलावा ईसाई मिशनरियों ने हिन्दुओं का शोषण किया!

यदि, हम मारिया विर्थ के इस लेख पर ध्यान दें, और कुछ खबरों पर नजर दौड़ाएं तो हमें यह समझ आएगा कि किस तरह ऐसे कट्टरपंथी विचार को बढ़ावा मिल रहा है। इस कट्टरपंथी विचार का परिणाम भी मारिया ने लिखा है कि "आज की सबसे बड़ी समस्या, इस्लामी आतंकवाद के दावे में हैं कि, काफिरों को अल्लाह ने खारिज कर दिया है। ISIS, बोको हराम और अन्य लोग इस तरह के मैल (हिन्दू एवं अन्य धर्म) से धरती से छुटकारा पाना अपना पवित्र कर्तव्य मानते हैं।" आगे वह लिखती हैं कि "इस्लाम के कुछ अनुयायी अभी भी हत्याओं को अंजाम देते हैं। उन्हें मुसलमान की जगह, इस्लामवादी कहा जाता है। लेकिन जब तक कुरान में ऐसी आयतें हैं जो काफिरों को मारने का उपदेश देती हैं, और इस उपदेश में आधिकारिक सुधार नहीं किया गया है कि यह आयतें केवल इतिहास का उल्लेख करती हैं, साथ ही यह भी एक झूठ है कि वह मुसलमान नहीं हैं। एक तरफ हम उन युवाओं की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और दूसरी तरफ, हम उस कुरान का सम्मान करते हैं जिसका वह पालन करने का दावा करते हैं।"

यदि हम इस लेख से हटकर बात करें तो, हिन्दुओं की हत्याएं सिर्फ इस्लाम धर्म के कारण नहीं हुई, बल्कि कई ईसाई मिशनरियों ने भी हिन्दुओं की हत्या और असहनीय शोषण किया। ईसाई मिशनरी एवं इस्लामी ताकतों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाकर, हिन्दुओं को जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयास किया। किन्तु, भारत के वीरों ने ऐसा होने से रोका। छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, रानी अबक्का जैसे प्रतापी शासकों ने भारत की आन-बान-शान के लिए मुगल एवं मिशनरियों से लोहा लिया। और आगे उनके ही पग-चिन्हों पर चल कर चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, लक्ष्मीबाई जैसे देश भक्तों ने अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाई।

सनातन संस्कृति का पालन करता है हर एक हिन्दू!

'वसुधैव कुटुंबकम' इस भाव के अर्थ को अधिकांश हिन्दू जानते हैं, लेकिन जो नए हैं उन्हें बता दें कि इस भाव का अर्थ यह है कि 'सम्पूर्ण विश्व हमारा परिवार(कुटुंब) है।' यदि हम अतीत की मेज से धूल को हटाते हुए पन्ने पलटते हैं, तब हमें ज्ञात होता है केवल हिन्दुओं ने या सनातन धर्म के अनुयायियों ने ही इस भाव के अर्थ को समझा है और उसका पालन किया है। और ऐसा भी प्रतीत होता है कि आधुनिक विश्व ने कभी हिन्दुओं को नहीं अपनाया। कभी वह आदर नहीं दिया जिसका वह दावेदार है। सनातन धर्म ने श्रीमद्भागवत गीता एवं रामचरित मानस जैसे अनेकों अमूल्य-रत्नों को विश्व के समक्ष रखा। जिसमें न तो किसी जीव की(मनुष्य हो या जानवर की) हत्या का कार्य सौंपा गया है और न ही यह कहा गया कि सनातन धर्म को न मानने वाले लोग नरक की आग जलेंगे!

"इसपर भी मारिया ने बड़े मुखर अंदाज में लिखा है,

ईसाई धर्म: "केवल हमारे पास पूर्ण सत्य है"

इस्लाम: "केवल हमारे पास पूर्ण सत्य है।"

ईसाई धर्म: "भगवान ने अपने पुत्र यीशु के माध्यम से पूर्ण सत्य प्रकट किया है"

इस्लाम: "अल्लाह ने पैगंबर मोहम्मद के माध्यम से अंतिम सत्य प्रकट किया है।"

ईसाई धर्म: "सभी को अपने पुत्र के माध्यम से भगवान, पिता की पूजा करनी है।"

इस्लाम: "सभी को अल्लाह की इबादत करनी है।"

हालांकि, यह दोनों एक बात पर एक दूसरे से सहमत हैं कि "अधर्मियों और काफिरों को पृथ्वी से गायब होने की जरूरत है।"

यदि, हम इन बातों कि तुलना, जीवन के सार कहे जाने वाले गीता से करें तब ज्ञात होगा कि सनातनियों ने क्या सीखा है और क्यों वह अन्य धर्मों का आदर उतनी ही श्रद्धा से करते हैं! वह इसलिए क्योंकि गीता में श्री कृष्ण द्वारा कहा गया है कि "ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् | मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ||" अर्थात "जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण आते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे मार्ग का अनुकरण करते हैं।"

अंत में समझना हमें केवल यही है कि, हिन्दू यदि अब नहीं समझेगा, तो वह अपना भविष्य खुद चुन रहा है!

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