ईरान (Iran) एक ऐसा देश जो मध्य पूर्व (Middle East) के मानचित्र में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है। एशिया (Asia) के दक्षिण-पश्चिम में स्थित यह देश, उत्तर में कैस्पियन सागर और दक्षिण में फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी से घिरा हुआ है। ईरान की सीमाएं पाकिस्तान (Pakistan), अफगानिस्तान (Afghanistan), तुर्कमेनिस्तान, तुर्की (Turkey) और इराक (Iraq) जैसे देशों से लगती हैं। इसके भूगोल, तेल भंडार, और रणनीतिक स्थिति के कारण यह सदैव अंतरराष्ट्रीय चर्चा में रहता है। हालांकि यह क्षेत्र अरब देशों (Arab Countries) से बहुत करीब है, परंतु एक बात जो हर किसी को चौंकाती है, वह यह है कि ईरान खुद को कभी भी 'अरब देश' (Arab Countries) नहीं मानता। न उसकी भाषा, न उसकी संस्कृति और न ही उसकी जातीय पहचान अरब जगत से मेल खाती है। यही कारण है कि यह प्रश्न कई बार उठता है, जब ईरान (Iran) भी उसी क्षेत्र में है, तो आखिर वह अरब देशों (Arab Countries) का हिस्सा क्यों नहीं है? आइए इसके बारे में जानतें हैं।
ईरान और अरब देश साथ होकर भी अलग
ईरान (Iran) और अरब देशों के बीच इतिहास, धर्म और भूगोल के कारण कई समानताएं हैं। ईरान(Iran) में बहुसंख्यक लोग इस्लाम धर्म का पालन करते हैं, जैसे कि सऊदी अरब, इराक, कतर और अन्य अरब राष्ट्रों में होता है। इसके अलावा ईरान (Iran) भी ओपेक (OPEC) जैसे संगठनों का हिस्सा है, जहां वह सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों के साथ मिलकर कच्चे तेल की रणनीतियाँ बनाता है। इतनी समानताओं के बावजूद ईरान की पहचान एक अरब देश की नहीं है।
वह "फारसी सभ्यता" से जुड़ा हुआ है, जिसका इतिहास अरबों से बहुत पुराना और अलग है। ईरान (Iran) और अरब देशों (Arab Countries) के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान तो हुआ, पर पहचान का अंतर बना रहा। आइए जानें वो ठोस कारण जिनकी वजह से ईरान को आज भी अरब दुनिया से अलग माना जाता है।
अरबी नहीं, फारसी है ईरान की पहचान
ईरान (Iran) की आधिकारिक भाषा 'फारसी' (Persian) है, जिसे 'फार्सी' भी कहा जाता है। वहीं अरब देशों की भाषा 'अरबी' (Arabic) है। ये दोनों भाषाएँ पूरी तरह अलग हैं, न उनकी लिपि एक है, न व्याकरण और न उच्चारण। फारसी भाषा इंडो-ईरानी भाषाओं से जुड़ी है, जबकि अरबी सेमेटिक भाषाओं का हिस्सा है। फ़ारसी की अपनी एक विशिष्ट लिपि है, जो अरबी वर्णमाला से ली गई है, लेकिन इसकी शब्दावली, व्याकरण और भाषाई मूल अरबी से बिल्कुल अलग हैं।
इसके विपरीत, अरबी एक सेमिटिक भाषा है और मध्य पूर्व तथा उत्तरी अफ्रीका के 20 से ज़्यादा देशों की आधिकारिक भाषा है। हालाँकि फ़ारसी में कुछ अरबी उधार के शब्द शामिल हैं, खासकर इस्लाम के प्रभाव के कारण , फिर भी यह एक अलग भाषा बनी हुई है जो अरबी के साथ परस्पर अस्पष्ट है।
जातीयता और नस्ल की भिन्नता
ईरानी (Iran) लोग फारसी मूल के होते हैं, जबकि अरब देशों (Arab Countries) की आबादी मुख्य रूप से सेमेटिक नस्ल से आती है। यह फर्क केवल नाम का नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक परंपराओं, पहनावे, खान-पान और इतिहास में भी साफ नजर आता है। अधिकांश ईरानी फ़ारसी जातीय समूह से संबंधित हैं, जो देश की लगभग 60% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हालाँकि ईरान (Iran) में अज़ेरी, कुर्द, लूर, बलूची और अरब जैसे कई अन्य जातीय अल्पसंख्यक भी हैं, फिर भी ऐतिहासिक रूप से फ़ारसी देश में प्रमुख जातीय समूह रहे हैं। दूसरी ओर, अरब मुख्य रूप से अरब प्रायद्वीप और उत्तरी अफ्रीका तथा लेवेंट के क्षेत्रों में निवास करते हैं। सऊदी अरब, इराक, जॉर्डन, मिस्र और सीरिया जैसे देशों की अधिकांश आबादी खुद को अरब मानती है। अरबी भाषा के प्रचलन के कारण अरबों में समान सांस्कृतिक विशेषताएँ और गहरा भाषाई संबंध है ।
ऐतिहासिक अंतर
ईरान (Iran) का इतिहास एक और महत्वपूर्ण पहलू है जो इसे अरब देशों से अलग करता है। 550 ईसा पूर्व में साइरस महान द्वारा स्थापित प्राचीन फ़ारसी साम्राज्य , इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक था, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक उपलब्धियों और परिष्कृत शासन के लिए जाना जाता था। फ़ारसी लोगों ने एक विशाल सभ्यता विकसित की, जो प्रभावशाली स्थापत्य कला, कला, साहित्य और विज्ञान एवं दर्शन में प्रगति से परिपूर्ण थी।
अचमेनिद , पार्थियन और सस्सानियन साम्राज्य सबसे प्रभावशाली फ़ारसी साम्राज्यों में से थे जिन्होंने ईरान की संस्कृति और पहचान को आकार दिया। इसके विपरीत, अरब इतिहास सातवीं शताब्दी ईस्वी में इस्लाम के उदय से गहराई से जुड़ा है । पैगंबर मुहम्मद ने अरब प्रायद्वीप के कबीलों को एकजुट किया, जिससे इस्लामी खिलाफत का तेज़ी से विस्तार हुआ, जो अंततः पूरे मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और उसके बाहर तक फैल गया। इससे एक विशाल अरब-इस्लामी सभ्यता का उदय हुआ जिसने कई क्षेत्रों और संस्कृतियों को प्रभावित किया, जिसमें वर्तमान ईरान के कुछ हिस्से भी शामिल हैं।
शिया बनाम सुन्नी इस्लाम
ईरान (Iran) और अधिकांश अरब देशों के बीच सबसे बड़ा और स्पष्ट अंतर उनका इस्लामिक मतभेद है। जहां ईरान (Iran) दुनिया का सबसे बड़ा शिया मुसलमानों का केंद्र है, वहीं अरब देशों में बहुसंख्यक सुन्नी मुसलमान रहते हैं। शिया और सुन्नी इस्लाम के सिद्धांतों में बुनियादी फर्क हैं, जैसे, पैगंबर मोहम्मद के उत्तराधिकारी को लेकर उनकी मान्यताएं।
शिया मुस्लिम पैगंबर के दामाद हज़रत अली को उनका सही उत्तराधिकारी मानते हैं, जबकि सुन्नी खलीफा व्यवस्था को मान्यता देते हैं। यह मतभेद केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक संरचना को भी प्रभावित करता है। ईरान, अपनी शिया विचारधारा के कारण, सीरिया, इराक और हिज़बुल्ला जैसे संगठनों का समर्थन करता है, जबकि सऊदी अरब जैसे सुन्नी देश अक्सर इनसे विरोध में रहते हैं।
सांस्कृतिक पहचान: नवरोज से लेकर कव्वाली तक अलग राह
ईरान (Iran) की संस्कृति अरब देशों से बिल्कुल अलग और विशिष्ट है। वहां की पहचान फारसी सभ्यता से जुड़ी हुई है, जो इस्लाम से पहले की हजारों वर्षों पुरानी है। ईरान (Iran) आज भी नवरोज मनाता है, फारसी नववर्ष, जो वसंत ऋतु में आता है और प्रकृति की नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार अरब देशों में नहीं मनाया जाता। इसके अलावा, ईरान (Iran) की साहित्यिक परंपरा भी अलग है, हाफिज, उमर खय्याम, और रूमी जैसे फारसी कवियों का आज भी वहां गहरा प्रभाव है, जबकि अरब संस्कृति में धार्मिक कविता और सूफी शैली ज्यादा लोकप्रिय है।
वास्तुकला की बात करें तो ईरान (Iran) की पारसी शैली की इमारतें, रंगीन टाइलवर्क और गुंबदों से सजी मस्जिदें उसे विशेष बनाती हैं। वहीं, अधिकांश अरब देशों की पहचान रेगिस्तान, ऊंट, सफेद पोशाक (थोब) और एकरंगी स्थापत्य से जुड़ी है। ईरान की यही सांस्कृतिक विरासत उसे अरब नहीं, फारसी बनाती है, गर्व के साथ।
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ईरान (Iran) एक ऐसा देश है जो भूगोल से भले ही अरब जगत के करीब हो, लेकिन उसकी आत्मा फारसी है। भाषा, जातीयता, धर्म की व्याख्या और इतिहास इन सभी क्षेत्रों में ईरान की विशिष्ट पहचान है। वह अरब नहीं है, और इस बात पर वह गर्व करता है। तो अगली बार जब आप किसी को ईरान को "अरब देश" कहते सुनें, तो उन्हें बताइए कि, ईरान की पहचान उसकी प्राचीन फारसी आत्मा में बसती है, जो खुद में एक गौरवशाली इतिहास समेटे हुए है। [Rh/SP]