Master Surya Sen, जिनके शव को अंग्रेजों ने समुद्र में फेंक दिया था
Master Surya Sen, जिनके शव को अंग्रेजों ने समुद्र में फेंक दिया था  Wikimedia Commons
इतिहास

Master Surya Sen, जिनके शव को अंग्रेजों ने समुद्र में फेंक दिया था

Prashant Singh

12 जनवरी 1934 को अंग्रेजी हुकूमत द्वारा एक क्रांतिकारी को फांसी दी गई, और अंतिम संस्कार ना करके उन्हें एक लोहे के पिंजरे में बंद करके बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) में फेंक दिया गया। और, इतिहास के पन्नों में उस महान व्यक्तित्व का कोई उल्लेख भी नहीं करता। आज हम बात कर रहे हैं 22 मार्च 1894 को अविभाजित बंगाल के चटगांव (Chittagong) में जन्मे मास्टर सूर्य सेन (Master Surya Sen) की। इस अभूतपूर्व व्यक्तित्व को लोग 'मास्टर दा' (Master da) कह कर भी बुलाते थे। Surya Sen पेशे से एक अध्यापक थे और आत्मा से एक क्रांतिकारी।

वो जब 1916 में, इंटरमीडियेट की पढ़ाई कर रहे थे, तब उनके एक अध्यापक ने उनको क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित किया।

'द हीरो ऑफ चटगांव' के नाम से प्रख्यात मास्टर दा ने, अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के लिए की प्रयास किये, जिसमें चिटगांव शस्त्रागार डकैती सबसे दुस्साहसिक प्रयासों में से थी। चिटगांव विद्रोह (Chittagong Armoury Raid) के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरुआत इंडियन रिपब्लिकन आर्मी (IRA) के गठन के साथ हुआ। इसके बाद, 18 अप्रैल 1930 को भारत के महान क्रान्तिकारी सूर्य सेन के नेतृत्व में सशस्त्र भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा चटगांव (अब बांग्लादेश में) में पुलिस और सहायक बलों के शस्त्रागार पर छापा मार कर उसे लूटने का प्रयास किया गया था। इस क्रांति का परिणाम ये आया कि चटगांव कुछ दिन के लिए अंग्रेजी शासन से आजाद हो गया।

सूर्य सेन को अंततः अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और उनके साथ ऐसी बर्बरता बरती जिसकी कल्पना से भी रूह कांप उठे।

इस संग्राम में दो लड़कियों प्रीतिलता वाद्देदार और कल्पना दत्त ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कहा जाता है कि जब प्रीतिलता ने देखा कि वो अंग्रेजों द्वारा पकड़ी जाने वाली है तो उसने जहर खाकर मातृभमि के लिए जान दे दिया, जबकि कल्पना दत्त को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और आजीवन कारावास की सजा दे दी।

अपनी सत्ता को डगमगाता देख अंग्रेज बर्बरता पर उतर आए, जिसमें उन्होंने महिलाओं और बच्चों तक को भी नहीं छोड़ा। इसके बाद सूर्य सेन को अंततः अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और उनके साथ ऐसी बर्बरता बरती जिसकी कल्पना से भी रूह कांप उठे। कहा जाता है की अंग्रेजों ने उनके सारे दांत हथौड़े से तोड़ दिए, गुठने तोड़ दिए, सभी नाखूनों को नोंच निकाला। इसके बाद उनके बेहोश शरीर को फांसी तक घसीटते हुए ले गए। जिसके बाद एक अन्य क्रांतिकारी तारकेश्वर दस्तीदार के साथ उन्हें फांसी दे दी गई। इसके बाद अंग्रेजों ने उनका अंतिम संस्कार ना करके उन्हें पिंजरे में डाल कर बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया।

Surya Sen की एक चिट्ठी मिलती है जो उन्होंने अपने दोस्तों के नाम लिखी थी और जिसके शब्द बहुत ही ज्यादा मार्मिक हैं,

"मेरा मस्तिष्क अनंत की ओर उड़ा जा रहा है …ऐसे सुमधुर, ऐसे नाजुक, ऐसे गंभीर मौके पर, मैं तुम्हारे लिए क्या पीछे छोड़ जाऊं? केवल एक ही चीज, जो है मेरा सपना, एक सुनहरी सपना – आजाद भारत का सपना… 18 अप्रैल 1930 की तारीख ना भूलना, चिटगांव के पूर्वी विद्रोह का दिन… अपने दिलों के केंद्र में उन देशभक्तों के नाम लिख लो जिन्होंने भारत की आजादी की वेदी पर अपने प्राण दिए।"

भारत का राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement) किसी भौगोलिक सीमा का मोहताज नहीं था बल्कि ये समूचे अखंड भारत में विस्तृत था। पर आज यह प्रश्न उठता है कि हम मास्टर सूर्य सेन जैसे प्रतिष्ठित क्रांतिकारियों की क्या केवल इसलिए बात नहीं करते क्योंकि उनका जन्मस्थल अब हमारे देश में नहीं रहा? पर हमे भूलना नहीं चाहिए कि इस आजादी की वेदी पर हमारे कई गुमनाम दीवानों ने अपनी बलि चढ़ाई है। इन दीवानों ने जब जंग लड़ी तो इन्हें पता भी नहीं था कि जिस भूमि के लिए ये लड़ रहे हैं, वो एक दिन बँट जाएगी। इसलिए हममें से हर एक भारतीय का कर्तव्य है कि हम इन क्रांतिकारी के महान उदाहरणों के बारे में जानें और उन्हें सम्मान दें।

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