दिल्ली का लाल क़िला सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं है, बल्कि भारत के इतिहास, सत्ता और संस्कृति का भी प्रतीक है। [Wikimedia commons] 
दिल्ली

लाल क़िला क्यों बना भारत की पहचान और सत्ता का प्रतीक ?

लाल क़िला ( Red Fort ) सिर्फ एक पुरानी इमारत नहीं, बल्कि भारत की बदलती हुकूमत, लड़ाइयों, आज़ादी की गवाही देने वाला इतिहास है। यह क़िला मुग़लों से लेकर आज़ाद भारत और सम्मान का प्रतीक माना जाता है।

न्यूज़ग्राम डेस्क

दिल्ली का लाल क़िला ( Red Fort ) सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं है, बल्कि भारत के इतिहास, सत्ता और संस्कृति का भी प्रतीक है। मुग़ल शासकों की शान, ब्रिटिश राज की राजनीति और भारत की आज़ादी उम्मीदें, तीनों का गवाह है ये लाल पत्थरों से बना लाल क़िला।

लाल क़िला ( Red Fort ) का निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहां ने 17वीं सदी में करवाया। वह उस समय आगरा में राज कर रहे थे, लेकिन उन्हें वह किला छोटा लगने लगा। अपनी बेग़म मुमताज़ की मृत्यु के बाद वह आगरा से मन हटाना चाहते थे। साल 1639 में उन्होंने दिल्ली के यमुना नदी के किनारे एक नए शहर 'शाहजहानाबाद'  जिसे आज 'पुरानी दिल्ली कहते हैं, और एक भव्य किला जिसे हम आज लाल क़िला ( Red Fort )कहते हैं, उसके के निर्माण का आदेश दिया। 1648 में यह किला बनकर तैयार हो गया उसके बाद सम्राट शाहजहां ने यहां प्रवेश किया।

इस क़िले को 'लाल क़िला'( Red Fort ) इसलिए कहा गया क्योंकि इसका निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ था। यह पत्थर फतेहपुर सीकरी के पास की खानों से लाया गया था। इसका असली नाम 'क़िला-ए-मुबारक' था, लेकिन समय के साथ लाल पत्थर से बना होने के कारण इसे लाल क़िला ( Red Fort ) कहा जाने लगा।

सत्ता और संघर्ष की कहानियां

लाल क़िला ( Red Fort ) सत्ता के संघर्ष और षड्यंत्रों का भी मुख्य गवाह रहा है। औरंगजेब के बाद मुग़ल साम्राज्य धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगा। 1739 में ईरान के शासक नादिर शाह ने हमला करके मयूर सिंहासन और कोहिनूर हीरा लूट लिया। फिर अफ़गान, मराठा, सिख, और ब्रिटिश सभी ने दिल्ली पर अधिकार जमाने की कोशिश की। उसके बाद 1757 में अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली पर कब्जा किया। मुग़लों के नाम पर शासन चलता रहा, लेकिनअब भी असली ताक़त दूसरों के हाथों में थी।

1803 में अंग्रेज़ों ने दिल्ली को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र अब सिर्फ नाम के शासक रह गए थे। असली सत्ता ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और फिर ब्रिटिश सरकार के पास थी। 1857 की क्रांति में जब भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह किया, तो उन्होंने बहादुर शाह ज़फ़र को नेता घोषित कर दिया। यह विद्रोह असफल रहा और अंग्रेजों ने दिल्ली पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया।

1857 के विद्रोह के बाद बहादुर शाह ज़फ़र पर लाल क़िला ( Red Fort ) में ही मुक़दमा चला। दीवान-ए-आम में यह ऐतिहासिक ट्रायल हुआ और उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया गया। उनके बेटों की हत्या कर दी गई और मुग़ल राज का अंत हो गया। इसके बाद लाल क़िला ( Red Fort ) अंग्रेज़ों की छावनी बन गया। दीवान-ए-आम को अस्पताल बना दिया गया, दीवान-ए-ख़ास को आवास, और शाही महलों को गोदामों में बदल दिया गया। शाही छतों की सोने-चांदी की सजावट भी गायब कर दी गई।

1857 के विद्रोह के बाद बहादुर शाह ज़फ़र पर लाल क़िला में ही मुक़दमा चला। Wikimedia commons

1940 के दशक में जब सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद फौज ने ‘चलो दिल्ली’ का नारा दिया, तब लाल क़िला ( Red Fort ) एक बार फिर स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया। तीन अफसर शाहनवाज़ ख़ान, प्रेम सहगल और गुरुबख्श सिंह ढिल्लन को यहीं बंद करके उन पर मुक़दमा चलाया गया। यह मुक़दमा आज़ादी के आंदोलन में बड़ा मोड़ साबित हुआ।

स्वतंत्र भारत में लाल क़िला की भूमिका

15 अगस्त 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यहीं से भारत का तिरंगा फहराया और भारत की आज़ादी की घोषणा की। तब से हर साल प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर यहीं से देश को संबोधित करते हैं। साल 2003 तक लाल क़िला ( Red Fort ) सेना के कब्जे में रहा, लेकिन अब यह भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है। 2007 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया।

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26 जनवरी 2021 को, कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध कर रहे कुछ प्रदर्शनकारी लाल क़िले पर चढ़ गए और वहां निशान साहिब झंडा (जिसे सिख ध्वज भी कहा जाता है ) फहरा दिया। इस घटना को लेकर लोगों में रोष दिखाई दिया। कई लोगों ने इसे ऐतिहासिक स्मारक की गरिमा को ठेस पहुंचाना कहा।

निष्कर्ष

लाल क़िला ( Red Fort ) केवल एक पुरानी इमारत नहीं है यह भारत की सत्ता, संघर्ष और संस्कृति की जीवित कहानी है। मुग़लों की शान, ब्रिटिशों का शासन और स्वतंत्र भारत का गौरव सब इसकी दीवारों में दर्ज है। हर ईंट कुछ कहती है, हर दरवाज़ा इतिहास के किसी पल का गवाह है। यही कारण है कि लाल क़िला ( Red Fort ) आज भी सिर्फ ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि भारत के आत्मसम्मान का प्रतीक बना हुआ है। Rh/PS

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